Friday, March 29, 2024
Homeइतिहासहल्द्वानी का इतिहास | History of Haldwani in hindi

हल्द्वानी का इतिहास | History of Haldwani in hindi

हल्द्वानी उत्तराखंड का सबसे बड़ा व्यापारिक नगर है। हल्द्वानी नगर नैनीताल जिले में 29 डिग्री 13 डिग्री उत्तरी अक्षांश तथा 79 -32′ डिग्री पूर्वी देशांतर में समुद्रतल से 1434 फ़ीट की ऊंचाई पर नैनीताल के पाद प्रदेश में स्थित है। कुमाऊं का द्वार माने जाने वाला हल्द्वानी पंद्रहवी शताब्दी से पहले हल्दु (कदम्ब ) के पेड़ों अलावा बेर ,शीशम ,कंजु ,तुन खैर ,बेल तथा लैंटाना जैसी झाड़ियों और घास का मैदान था। सोलहवीं शताब्दी के बाद राजा रूपचंद के शाशन में पहाड़ी लोगों ने शीतकाल में यहाँ आना शुरू किया।

सन 1815 में अंग्रेजों ने गोरखों को सम्पूर्ण उत्तराखंड से मार भगाया तब अंग्रेजों ने कुमाऊं में ई. गार्डनर को शाशक बनाकर भेजा। गार्डनर ने पहली बार यहाँ सरकारी बटालियन तैनात की। इनके बाद अगले कुमाऊं कमिश्नर जार्ज विलियम ट्रेल ने हल्दूवनी नामक गावं को  हल्द्वानी नमक नगर का स्वरूप दिया

कुमाऊं कमिश्नर जार्ज विलियम ट्रेल ने हल्द्वानी की खोज की 

सन 1834 में कुमाऊं कमिश्नर जार्ज विलियम ट्रेल द्वारा व्यापारिक मंडी के रूप में स्थपित किये जाने और 1860 में  हेनरी रैमजे कमिश्नर द्वारा तराई की तहसील का मुख्यालय बनाये जाने तक यह स्थान मात्र एक ग्राम था। जो वर्तमान में सर्वसम्पन्न नगर के रूप में विकसित हो गया है। 1856 में हेनरी रैमजे कुमाऊं के कमिश्नर बने। उन्होंने अपने रहने के लिए हल्द्वानी में एक बंगला भी बनवाया। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में 17 सितम्बर 1857 में स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा हल्द्वानी शहर पर अधिकार कर लिया गया। लेकिन अगले अंग्रेजों ने फिर इसे अपने अधिकार में ले लिया। 1882 में कुमाऊं कमिश्नर हेनरी रैमजे ने काठगोदाम से नैनीताल तक सड़क बनवाई। 1883 -84 में बरेली से काठगोदाम तक रेल लाइन बिछाई गई। 24 अप्रेल 1884 में लखनऊ से हल्द्वानी रेल पहुंची।

हल्द्वानी नाम क्यों पड़ा  ?

Best Taxi Services in haldwani

इस क्षेत्र में हल्दू  (कदम्ब ) नामक इमारती लकड़ी के पेड़ों की अधिकता के कारण हल्द्वानी  का नाम हल्दू वनी पड़ा जो बाद में हल्द्वानी हो गया। 1834 के समय , हल्द्वानी का पुराना नाम पहाड़ का बाजार था। इस नगर को कुमाऊं का द्वार भी कहते हैं।

सन 1885 में यहां पर टाउन एरिया कमेटी की तथा 1897 में नगरपालिका की स्थापना की गई। 1899 में हल्द्वानी में तहसील कार्यालय खोला गया था। सन 1929 में अल्मोड़ा यात्रा पर आए महात्मा गांधी भी यहां आए थे। सन 1937 में यहां नागरिक चिकित्सालय खोला गया ।1942 में हल्द्वानी -काठगोदाम नगरपालिका परिषद का गठन किया गया । उस समय इसे चतुर्थ श्रेणी की नगरपालिका का दर्जा दिया गया था। फिर दिसंबर 1966 में इसे प्रथम श्रेणी का दर्जा दे दिया गया । उसके बाद मई 2011 में इसे  नगर निगम का दर्जा मिल गया ।

हल्द्वानी

यहां क्या फेमस है ?

यह पहाड़ों पर जाने की पहली सीढ़ी है। यह उत्तराखंड का तीसरी बड़ी नगरपालिका है। हल्द्वानी में भी भारत के अन्य नगरों की तरह कई प्रसिद्ध और ऐतिहासिक ,धार्मिक स्थान और प्राकृतिक स्थान हैं।  जिनमे से हल्द्वानी की पहली पहचान वहां की ऐतिहासिक मंडी है। इसके अलावा यहाँ घूमने के लिए गौला बैराज , भुजियाघाट का सूर्य गावं की प्राकृतिक सुंदरता। शीतला देवी मंदिर। काली चौड़ मंदिर और कालू सिद्ध मंदिर हैं।

इन्हें भी पढ़े -:

थकुली उडियार – एक ऐसी गुफा जिसके अंदर थाली बजने की आवाज आती है।

भंडारी गोलू देवता की पौराणिक गाथा। ” भनारी ग्वेल ज्यूक कहानी “

लाल चावल उत्तराखंड उत्तरकाशी जिले के रवाई क्षेत्र की खास पहचान !

मुंशी हरि प्रसाद टम्टा , उत्तराखंड में दलित और शोषित जातियों के मसीहा।

हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें ।

Follow us on Google News
Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
RELATED ARTICLES
spot_img
Amazon

Most Popular

Recent Comments