Thursday, May 22, 2025
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भंडारी गोलू देवता की लोक गाथा। ” भनारी ग्वेल ज्यूक कहानी “

भंडारी गोलू– ग्वेल ज्यू का ये मंदिर बागेश्वर के कांडापड़ाव से लगभग सात किलोमीटर दूर पिथौरागढ़  के सीमांत गांव ढलौनासेरा में स्थित है। यहाँ ग्वेलज्यू को न्यायकारी देवता के रूप में पूजा जाता है। इस पर एक पौराणिक लोकगाथा भी है जो इस प्रकार है।

ढलौनासेरा गांव में पहले भंडारी जाती के लोग रहते थे। ढलौनासेरा की  जमीन काफी उपजाउ थी।  वहां उन्नत किस्म के धानों का उत्पादन होता था। अभी भी पहाड़ में सेरा वाली जो भी भूमि काफी उपजाऊ और धानों के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध होती है। कहते हैं वहां अधिक उपजाऊ जमीन होने के कारण भंडारी लोग अपने साथ कंडारी जाती के लोगों को भी ले आये या उपजाऊ जमीन का पता करके कही से विस्थापित होकर आ गए। धीरे -धीरे कंडारी जाती के लोग अपना वर्चस्व बढ़ाते गए ,और भंडारी जाती के आदि पुरुष ( बुजुर्ग ) से समस्त ढौनासेरा की समस्त उपजाऊ जमीन छीन ली।

रोते ,बिलखते परेशान होकर  भंडारियों के पूर्वज कालू भंडारी चम्पावत  चले गए। भूखे प्यासे, परेशान रोते बिलखते ,समस्त देवी देवताओं को याद करने लगे। एक दिन वहां उन्हें एक तुमड़ी मिली ,जिसमे से आवाज आई कि ,मुझे इस तुमड़ी के अंदर कर के रखा है। तुम ये तुमड़ी का ढक्क्न खोल कर ,उसमे अपनी खून की कुछ बुँदे डाल कर ,मुझे आजाद करवाने में मेरी मदद कर दो!

पहले तो कालू भंडारी थोड़ा घबरा गया, फिर उसने हिम्मत करके पूछा ,”ऐसा  करके मुझे क्या मिलेगा? ” और तुम कौन हो ? तब फिर तुमड़ी के अंदर से जवाब आया ,” मै चोटी शैतान हूँ, मुझे मनुष्यों का खून बहुत अच्छा लगता है! लेकिन तुम घबराओ मत! तुम्हे मैं कुछ नहीं करूँगा, तुम्हारे साथ मै देवतुल्य व्यवहार करूँगा। यदि तुम मुझे इस तुमड़ी से आजाद करा दोगे तो मै कंडारियों से तुम्हारी उपजाऊ जमीन वापस दिलवा दूंगा।

जमीन वापस दिलाने के नाम पर कल्लू भंडारी के जख्म हरे हो गए। बदले की भावना से आक्रोशित होकर अपने गांव की तरफ चल पड़ा। चोटी शैतान ने उसे कह रखा था कि अपनी गावं की सीमा से , तुम्बी के अंदर अपनी कुछ खून की डालकर मुझे छोड़ देना ! फिर देखना मै क्या करता हूँ! काल भंडारी अपनी गांव की सीमा में पंहुचा तो ,उसने देखा उसके वसिखेत ,कुनखेत के खेतों में कई जोड़े बैल खेत जोत रहे थे। खूब हसीं -मजाक चल रहा था। यह देख उसकी आखों में आंसू छलक गए! फिर उसको याद आई कि वह यहाँ अकेला है ,कही कंडारियों ने उसे देख लिया तो,उसे कही मार ना दे ! इसी घबराहट में उसके हाथ से तुमड़ी छूट गई। और उस तुमड़ी में से आजाद हुए चोटी शैतान ने देखते ही देखते ,कंडारियों के दर्जनों बैल मार दिए। कंडारियों को मार कर उनका खून पीने लगा। यह देख कालू भंडारी घबरा गया ! वह डर कर भागने लगा! उसे भागते देख ,चोटी शैतान बोलै ,तू डर मत तुझे कुछ नहीं करूँगा! चोटी शैतान ने कई कंडारी मार दिए। और कई अपनी जान बचाकर भाग निकले। ढलौनासेरा एकदम खाली हो गया! और वहां शैतान लग गया।

वह चोटी शैतान भंडारी जाती के लोगों को छोड़ कर ,किसी को नहीं छोड़ता था। जो भी बाहर से वहां आता उसे वो खा जाता था। भंडारी जाती के लोगो को उसने वचन दिया था ,इसलिए वचनवद्धता के कारण उनको जीवित छोड़ देता था। अंत में परेशान होकर भंडारी चम्पावत गोलू देवता के मंदिर में गया। वहां उसने न्याय की गुहार लगाई। तब भगवान गोरिया एक शिला के रूप में भंडारी के साथ ढौनासेरा आये। उन्होंने उस चोटी शैतानं को साधा और उससे वचन लेकर वहां देवरूप में स्थापित किया। और स्वय शिला रूप में आये थे ,वे वहाँ भंडारी गोलू या भनारी ग्वेल ज्यू के नाम से विख्यात हुए। और ढलौनासेरा के भंडारी उनके पुजारी होते हैं।

कहते हैं ढलौनासेरा के ग्वेल ज्यू तत्काल न्याय करते है। बेटी बहुओं की पुकार बहुत जल्दी सुनते हैं। 

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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