Tuesday, April 29, 2025
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फाइव स्टोन गेम के नाम से विश्व प्रसिद्ध है पहाड़ का दाणी , नौगि ,गुट्टा खेल।

पांच पत्थरों से खेला जाने वाला खेल विश्व के कई शहरों में फाइव स्टोन गेम ( five stones game) के नाम से जाना जाता है। यह खेल जापान चीन ,स्पेन ,इटली , अफ्रीका सिंगापुर आदि देशों में पारंपरिक खेल के तौर पर खेला जाता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि विश्व के कई देशों का पारम्परिक खेल फाइव स्टोन गेम के नाम से प्रसिद्ध यह खेल उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों का पारंपरिक खेल दाणी या नौगी है ,या इसे गुट्टा खेल भी कहते हैं। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र ही नहीं अपितु भारत के कई राज्य की किशोरी लड़कियां इस खेल को खेल कर बड़ी हुई है।

भारत में यह खेल बंगाल,केरल तमिलनाडु ,राजस्थान आदि राज्यों में पारम्परिक रूप से खेला जाता है। फाइव स्टोन गेम (five stones game ) कौशल और समन्वय का खेल है। यह खेल कई चरणों में पूरा होता है। पहाड़ के समाज में भी यह खेल सदियों से एक पारंपरिक खेल के रूप में खेला जाता है। हालाँकि आजकल की बच्चियां रील्स इत्यादि देख कर या उन्हें बनाकर बड़ी हो रही हैं ,लेकिन पहले खेल और मनोरंजन के उतने साधन नहीं थे ,यही गिट्टा ,दाणी खेलकर बच्चियां अपना मनोरंजन करती थी। और लड़को का गिल्ली डंडा या गिर खेल इत्यादि होते थे।

फाइव स्टोन गेम
फाइव स्टोन गेम ( five stones game )

फाइव स्टोन गेम या पांच पत्थरों का खेल –

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फाइव स्टोन गेम के नाम से प्रसिद्ध यह पारम्परिक खेल विश्व में कहीं नेकबोन्स के नाम से भी जाना जाता है। भारत में गुट्टी या गट्टी या दाणी आदि नामों से जाना जाता है। इसे खेलने के लिए पांच पत्थरों की आवश्यकता पड़ती है। कई जगह यह आड़ू की गुठली से भी खेला जाता है। प्राचीन काल में यह कहीं बकरियों के घुटने की हड्डियों से भी खेला जाता था। कहीं वर्गाकार या गोल पांच डाइज भी बनाई जाती है। वैसे यह खेल मुख्यतः पांच पत्थरों से ही खेला जाता है।

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पांच पत्थरों का खेल भारत का एक प्राचीन और पारंपरिक खेल है, जो न केवल मनोरंजन प्रदान करता है बल्कि मानसिक चपलता और शारीरिक समन्वय को भी बढ़ावा देता है। यह खेल बच्चों से लेकर वयस्कों तक के बीच लोकप्रिय है और आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में इसका आकर्षण बना हुआ है। हालंकि बढ़ती डिजिटल क्रांति के कारण आजकल के बच्चे अपने इन पारंपरिक खेलों से दूर होते जा रहे हैं।

फाइव स्टोन खेल के नियम और खेलने का तरीका  –

इस खेल को खेलने के लिए पांच छोटे पत्थरों की आवश्यकता होती है। ये पत्थर आकार में गोल और हल्के होने चाहिए ताकि उन्हें आसानी से फेंका और पकड़ा जा सके। खेल में विभिन्न चरण होते हैं, और प्रत्येक चरण में खिलाड़ी को विशेष तरीके से पत्थरों को उठाना या फेंकना होता है।

फाइव स्टोन गेम

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फाइव स्टोन खेल खेलने के मुख्य चरण –

  • पहला चरण:भी पत्थरों को ज़मीन पर फैला दिया जाता है। खिलाड़ी एक पत्थर को ऊपर फेंकता है और बाकी पत्थरों को एक-एक करके उठाता है, फिर फेंके गए पत्थर को पकड़ता है।
  • दूसरा चरण : अब पत्थरों को दो-दो के समूह में उठाया जाता है।
  • तीसरा चरण: तीन पत्थरों को एक बार में और चौथे को अलग से उठाया जाता है।
  • चौथा चरण: सभी चार पत्थरों को एक बार में उठाकर फेंके गए पत्थर को पकड़ना होता है।
  • अंतिम चरण: एक विशेष तरीके से सभी पत्थरों को उठाने का प्रयास किया जाता है।

फाइव स्टोन खेल या गुट्टा के खेल का महत्व –

यह खेल केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में भी मदद करता है। एकाग्रता और समन्वय: इस खेल में पत्थरों को फेंकने और पकड़ने की प्रक्रिया से हाथ और आंखों का समन्वय बेहतर होता है।

  • सामाजिक सम्पर्क : इसे आमतौर पर समूह में खेला जाता है, जिससे बच्चों को सामाजिक संबंध और टीम भावना सीखने का मौका मिलता है।
  • परंपरा और संस्कृति: पांच पत्थरों का खेल भारतीय संस्कृति और पारंपरिक मूल्यों का हिस्सा है, जो पीढ़ियों से हस्तांतरित हो रहा है।

आधुनिक युग में खेल का स्थान

हालांकि आधुनिक खेल और तकनीक के दौर में इस खेल की लोकप्रियता थोड़ी कम हो गई है, लेकिन यह अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों और पारंपरिक त्योहारों में देखा जाता है। आज के समय में, इसे बच्चों के बीच दोबारा प्रचलित करने के लिए स्कूलों और सामुदायिक कार्यक्रमों में शामिल किया जा सकता है। इससे बच्चों के व्यक्तित्व ,एकग्रता को विकसित करने में मदद मिलेगी। और आजकल के बच्चो को जो मोबाइल की लत लग चुकी है उसे दूर करने में मदद मिलेगी।

निष्कर्ष :

पांच पत्थरों का खेल  न केवल एक मनोरंजक गतिविधि है, बल्कि यह हमारे समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी है। इसे पुनर्जीवित करके न केवल बच्चों को उनकी जड़ों से जोड़ा जा सकता है, बल्कि उनके मानसिक और शारीरिक कौशल को भी विकसित किया जा सकता है। यह खेल हमारी भारतीय परंपरा की सरलता और सादगी का एक खूबसूरत उदाहरण है।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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