Monday, April 28, 2025
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फादर्स डे उत्तराखंड में | Father’s day in Uttrakhand

फादर्स डे उत्तराखंड में (Father’s day  in Uttrakhand )

मित्रो आज फादर्स डे है। वैसे देखा जाय तो , मा बाप को खुश करने या प्यार करने के लिए कोई स्पेशल डे की जरूरत नही है। हर दिन माँ का है। हर दिन पिता जी का है। उनसे तो हम हैं। लेकिन अगर दिन बनाया गया है,तो उसे भी मनाना चाहिए, और उस दिन अन्य दिनों से दोगुनी प्यार,खुशी माननी चाहिए। हम पहाड़ी हैं , अतएव हम फादर्स डे पहाड़ी में , ही मनाएंगे। इस उपलक्ष में हमने  पिता पर कविता कुमाउनी में लिखी है। अच्छी लगे तो शेयर जरूर कीजिएगा।

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कुमाउनी में पिता को बाज्यू , ओबा, पापा, बाब, बाबू आदि नामों से पुकारते हैं।

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      “बाज्यू बाज्यू कभहे न कोय ” 

               ( फादर्स डे उत्तराखंड में )

ईजा ईजा रोज कुनू, बाज्यू बाज्यू कभे न कोय।

दिन भर कमर तोड़, काम करबे ,

ब्याव कने द्वी रवाट ल्यानी, बाज्यूक कोई नि होय।।

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बाज्यू आपुण फाटि कपड़ पैरनी, हमर फैशन पुर कर दिनी।

आपुण लिजी पेट भरी रवाट हो न हो, हमर पेट पुर भर दिनी।।

ईजा ईजा रोज कुनु, बाज्यू बाज्यू कभहे न कोय।….

उ नांछिना याद , जब बाज्यूक कंध में बैठी म्याल घुमछि।

जब बाज्यूक कंध मा बैठी दूनी देखछि,और दुनियाक हाल देखछि।।

ईजक दिलक बात सब समझनी, बाज्यूक मन के कोई नि समझ सकन।

सबुके बाज्यूक गुस्स देखि, बाज्यूक मन मा कदुक प्यार छू कोई न देख सकन।।

ईजा ईजा रोज कुनू, बाज्यू बाज्यू कभे न कोय….

सबुक पीड़ , सबुक आंसू ,बाज्यूल पोछि, बाज्यूक दुख कैले नि देखी।

सबुल पेट भर खा्य बाज्यूक भूख कैले नि देखी।।

बाज्यूल तुमुल दूनी दिखायी, हमार स्वीण पुर कर,

आपुण स्वीण भूलि गया ।

बाज्यू तुम कष्ट खै बे हमुकु मैस बने गया, हम तुमुगु भूलि गया।।

ईजा ईजा रोज कूनो, बाज्यू बाज्यू कभे न कोय….

स्वरचित – बिक्रम सिंह भंडारी

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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