कुमाऊं में लोक देवता ग्वेल देवता के साथ अवतरित होने वाले लोक देवता कलुवा को कुमाऊं में ग्वेल देवता का प्रमुख सहयोगी और भाई माना जाता है। कुमाऊं में लोक देवता ग्वेल देवता के साथ अवतरित होने वाले लोक देवता कलुवा को कुमाऊं में ग्वेल देवता का प्रमुख सहयोगी और भाई माना जाता है। इतिहासकार और उत्तराखंड के शोधकर्ता यह मानते हैं कि कलुवा एक नागपंथी सिद्ध थे। अपनी सिद्धियों के कारण उसने नाथपंथ में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया था। कलुवा वीर के सम्बन्ध में कुमाऊं और गढ़वाल में अलग अलग संकल्पनाएँ पायी जाती हैं। कुमाऊं में प्रचलित कहानियों…
Author: Bikram Singh Bhandari
उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों के लोग वीर साहसी होते हैं। इतिहास गवाह है उत्तराखंड के कुमाउनी और गढ़वाली क्षेत्रों के वीरों ने समय -समय पर अपनी वीरता और साहस का प्रदर्शन किया है। ऐसी वीरता और साहस को देख कर अंग्रेजों ने गढ़वाल राइफल और कुमाऊं रेजिमेंट की स्थापना की। आजादी के बाद से ही कश्मीर की समस्या भारत के लिए बड़ी समस्या बना है। बटवारे के बाद से ही पाकिस्तान कश्मीर को हड़पने के लिए सारे अनैतिक रास्ते अपनाता रहा है। सन 1947 में पाकिस्तान ने कश्मीर को हड़पने के लिए कबाइली युद्ध छेड़ दिया था। भारत की तरफ…
काठगोदाम का इतिहास – भारत के पूर्वोत्तर रेलवे के अंतिम विरामस्थल के रूप में जाने जाने वाला कुमाऊं के प्रवेशद्वार के नाम से प्रसिद्ध यह क़स्बा नैनीताल जिले में गौला नदी के तट पर स्थित है। सन 1975 में अंग्रेजों के कुमाऊं अधिग्रहण से पहले यह एक छोटा सा गावं था, जिसका नाम बाड़खोड़ी या बाडाखोड़ी था। या यूँ कह सकते हैं कि काठगोदाम का पुराना नाम बाड़खोड़ी या बाडाखोड़ी था। यह क्षेत्र चंद शाशनकाल में रुहेले आक्रमणकारियों और लुटेरों को रोकने की प्रमुख घाटी थी। राजा कल्यानचंद जी के राज में उनके सेनापति शिवदेव जोशी ने 1743 -44 में…
पौराणिक मान्यताओं के आधार पर बताया जाता है कि जेष्ठ शुक्ल दशमी को माँ गंगा का अवतरण धरती पर हुवा था। इस अवसर पर सनातन धर्म को मानने वाले गंगा दशहरा पर्व मनाते हैं। गंगा दशहरा के अवसर पर उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के निवासी विशेष मन्त्रों से अभिमंत्रित गंगा दशहरा द्वारा पत्र अपने द्वारों पर चिपकाते हैं। इस पत्र के बारे में कहा जाता है ,कि इसमें लिखे मन्त्रों के प्रभाव से नकारात्मक शक्तियां घर से दूर रहती हैं। कैसे शुरू हुई परम्परा – दशहरा द्वार पत्र के बारे में कहा जाता है कि , जब धरती पर माँ गंगा …
शकुनाखर कुमाऊं मण्डल के संस्कार गीतों की एक विशेष विधा है। शकुन का अर्थ होता है, शगुन सूचक और आखर शब्द का अर्थ होता है, अक्षर अर्थात शगुन सूचक अक्षर। धार्मिक कार्यों अथवा मांगलिक कार्यों के शुरू में गाए मंगल गीत, जिनका उद्देश्य विवाह, यज्ञोपवीत व नामकरण आदि मंगलकार्यों के आरम्भ से अंत तक निर्विघ्नपूर्वक संपन्न किये जाने की कामना से अपना आशीर्वाद देने के लिए देवी देवताओं को आमंत्रित करना और सम्बंधित परिवारजनों की दीर्घायु व सुखशांति की कामना करने वाले गीतों को शकुनाखर कहा जाता है। गढ़वाल मंडल में इन्हे मांगल गीत कहते हैं। शकुनाखर गीत लिरिक्स -…
उत्तराखंड को देवभूमि क्यों कहते हैं? इस बात को इसमें निहित कई तथ्य हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि, हमारी देवभूमि में कई देवी देवताओं की लीला स्थली और क्रीड़ा स्थली रही है। अनेक ऋषियों, मुनियों, साधु, संतों की तपस्थली और जपस्थली से इन महान दिव्य आत्माओं की चरण रज से यह भूमि और भी पावन पवित्र होकर कण-कण भी इसका दिव्यमय होकर के इस भूमि को भी और इस भूमि के उन अनगिनत सूक्ष्म रजकणी का स्पर्श ही हमारा मन आनंद और रोमांच से रोमांचित हो जाता है, तभी तो यहां दृश्य और अदृश्य रूप से…
हाल ही में भारत के केरल राज्य में धर्मांतरण और आतंकवाद पर आधारित हिंदी फिल्म द केरला स्टोरी पुरे देश के सिनेमाघरों में रिलीज हुई है। हालाँकि कई जगह इसका विरोध हो रहा और अधिकतर लोग इसे पसंद कर रहे हैं और इसका समर्थन कर रहें हैं। और इसे सत्यघटना पर आधारित मान रहें है। फिल्म ‘The Kerala story ’ पर एक विशेष एजेंडा फिल्म होने के आरोप लग रहे हैं। इस फिल्म में दिखाया गया है कि केरल में लगभग 30000 लड़कियों का धर्मपरिवर्तन हुवा है। फिल्म खराब है या सही है इसका निर्णय तो दर्शक लेंगे। मगर इस…
अप्रैल मई के माह में पहाड़ों में रवि की फसल तैयार होती है। रवि की फसल में मुख्य खाद्यान गेहू होता है। पहाड़ों में गेहू की फसल के काम के दौरान अधकच्चे गेहूं से एक विशेष स्नेक्स बनाते हैं, जिसे पहाड़ी भाषा उमी कहते हैं। पहाड़ो में गेहूं की फसल तैयार हो जाने पर फसल की कटाई के समय उसकी हरी बालियों को आग में भून कर और ठंडा करके भुने हुए दानों को उमी कहा जाता है। ये दाने चबाये जाने पर विशेष स्वादिष्ट लगते हैं। बाद में इसके खाजा या चबेने के रूप प्रयोग किया जाता है। इसके…
उत्तराखंड के लजीज व्यंजनों की तरह, उत्तराखंड के मालपुए काफी पसंद किये जाते हैं। उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में यह व्यंजन काफी पसंद किया जाता है। विशेषकर अल्मोड़ा जिले की सोमेश्वर के प्रसिद्ध मालपुए काफी पसंद किये जाते हैं। मालपुए पहाड़ी क्षेत्रों की एक प्रसिद्ध मिठाई हुवा करती थी, जो आज लगभग विलुप्त हो गई है। प्रसिद्ध हैं सोमेश्वर प्रसिद्ध के मालपुए – उत्तराखंड के सोमेश्वर के मालपुए काफी प्रसिद्ध है। यदि आप कौसानी यात्रा पर हैं और अल्मोड़ा कौसानी रुट पर जा रहे हैं तो बीच में सोमेश्वर बाजार में सोमेश्वर के प्रसिद्ध मालपुओं का स्वाद लेना न भूलें।…
उत्तराखंड के सभी जिलों में मोदीजी के मन की बात कार्यक्रम के 100 वें एपीसोड को को बड़े चाव के साथ सुना गया। भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने इस कार्यक्रम हेतु जमीनी स्तर से बहुत अच्छी मेहनत की थी जिसके फलस्वरूप लाखों की संख्या में लोगों ने उत्तराखंड में मन की बात कार्यक्रम को सुना। शिक्षा विभाग द्वारा पहली नोटिस जारी कर दिया गया था कि सभी विद्यार्थियों और शिक्षकों को इस कार्यक्रम का हिस्सा बनना है तथा भारतीय जनता पार्टी के बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं ने कड़ी लगन और मेहनत के साथ इस कार्यक्रम को सफल बनाने के…