Author: Bikram Singh Bhandari

बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

बूढ़ी दिवाली 2024 :- “देश भर में अपनी अलग और अनोखी संस्कृति के लिए प्रसिद्ध उत्तराखंड के जौनसार बावर क्षेत्र और हिमाचल के कुछ क्षेत्रों में दिवाली 01 दिसम्बर 2024 को मनाई जाएगी । जिसे पहाड़ की बूढ़ी दिवाली कहते हैं। यह पर्व दीपावली के ठीक एक माह बाद मनाया जाता है। और इसी के साथ उत्तरकाशी की गंगा घाटी में मंगसीर बग्वाल और यमुना घाटी में देवलांग बड़े धूम धाम से मनाई जाती है। जैसा कि हमे ज्ञात है, कि समस्त गढ़वाल  में 4 बग्वाल मनाई जाती है। इन बग्वालों मे गढ़वाल, कुमाऊं और जौनसार उत्तराखंड की तीनों संस्कृतियों…

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छोटी दीपावली के दिन यमदीप जलाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन दक्षिण में चौमुखी दिया जलाने से परिवार में अकालमृत्यु का खतरा कम होता है। इसी प्रकार उत्तराखंड में इस रात यमदीप उत्सव या यमदीप मेला होता है।उत्तराखंड गढ़वाल मंडल के जनपद रुद्रप्रयाग के अन्तर्गत  क्वीलाखाल (2000 मी.) में दीपावली के  एक दिन पहले  कूर्मासनी देवी के मंदिर में मनाया जाने वाला यमदीपोत्सव या यमदीप मेला उत्तराखंड की किसी पुरानी सांस्कृतिक परम्परा का एक महत्वपूर्ण भाग है। इस अवसर पर यहां के ग्रामवासी देवी कूर्मासनी (तुल. कोटासिनी) के सुसज्जित डोले को गाजे-बाजों के साथ गांव के लगभग डेढ़…

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मित्रों आज आपके लिए ,उत्तराखंड के प्रसिद्ध जनकवि  स्व श्री गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ की प्रसिद्ध कविता, जनगीत उत्तराखंड मेरी मातृभूमि (Uttarakhand meri matra bhumi lyrics) शब्दों में लाये है। गिरीश तिवारी गिर्दा का यह गीत ( कविता ) उत्तराखंड में बहुत प्रसिद्ध है। आंदोलन में, सामूहिक गीतों में, स्कूलों में इस गीत का विशेष प्रयोग होता है। कई उत्तराखंड के कई लोग गिर्दा की कविता व्हाट्सप और फेसबुक स्टेटस बना कर उत्तराखंड के लिए अपना प्यार दिखाते हैं। गिरीश तिवारी गिर्दा – गिरीश तिवारी गिर्दा का जन्म उत्तराखंड, अल्मोड़ा जिले के हवालबाग ब्लॉक के ज्योली नामक गाँव मे सन 1945 में…

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सारांश (Summary): ऐपण कला (Aipan Art of Uttarakhand) उत्तराखंड की कुमाऊं संस्कृति की एक अत्यंत समृद्ध और आध्यात्मिक लोककला है, जो विशेष रूप से शुभ अवसरों, त्योहारों और धार्मिक अनुष्ठानों में भूमि, दीवारों, मंदिरों और आसनों पर बनाई जाती है। इस कला में चावल के पिसे घोल (विस्वार), गेरू, हल्दी और रोली का उपयोग होता है। ऐपण न केवल सजावटी चित्र हैं, बल्कि ये देवताओं का आवाहन और सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत भी माने जाते हैं। यह कला पीढ़ी दर पीढ़ी मां से बेटी को हस्तांतरित होती है। आज के युग में इसका व्यवसायीकरण हुआ है, लेकिन इसके पारंपरिक रूप…

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गौचर मेला : चमोली गढ़वाल के गौचर नामक नगर में लगने वाला यह ऐतिहासिक मेंला उत्तराखंड का औधोगिक मेला के नाम से भी प्रसिद्ध है। अलकनंदा नदी के किनारे बसा रमणीय स्थल गौचर समुद्रतल से लगभग 8000 मीटर उचाई पर स्थित है। गौचर बद्रीनाथ जाने वाले मार्ग पर पड़ने वाला विशाल मैदानी हिस्सा है। यहाँ प्रतिवर्ष 14 नवंबर से 20 नवंबर तक यहाँ प्रसिद्ध गौचर मेला आयोजित किया जाता है। यह मेला व्यापारियों और पहाड़ के लोगों के लिए एक विशेष आकर्षण है। गौचर में एक हवाई अड्डा भी है, जिसका निर्माण 1998 -2000 में किया गया था। गौचर मेला…

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आज दिनांक 4 नवंबर 2023 को राजकीय इंटर कालेज लोधियाखान विद्यालय में रोहित फाउंडेशन के तृतीय वार्षिकोत्सव के उपलक्ष में एक समारोह का आयोजन किया गया था। इस अवसर पर क्षेत्र के विधायक श्री प्रमोद नैनवाल जी भी उपस्थित थे। रोहित फाउंडेशन के तृतीय वार्षिकोत्सव पर रा ई का लोधियाखान को दो कप्यूटर प्रदान किये गए। रोहित फाउंडेशन काफी समय से शिक्षा ,स्वास्थ ,कृषि और पर्यावरण के क्षेत्र में सुचारु रूप से कार्यरत है। यह संस्था ग्रामीण बच्चों को शिक्षा के लिए आर्थिक सहायता देना और उनके स्वर्णिम भविष्य के मार्ग में आने वाली बाधाओं को हल करने का कार्य…

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उत्तराखंड में ऐसे कई नाम है जिनके पीछे गढ़ शब्द का प्रयोग होता है। वस्तुतः मध्यकाल में समस्त उत्तराखंड क्षेत्र इन गढ़ियों के शासकों द्वारा प्रशासित था। इनकी अपनी सामंती ठकुराई होती थी। और इनके अपने छोटे छोटे दुर्ग होते थे जिन्हे गढ़ ,गढ़ी  कोट या बुंगा कहते थे। इनका निर्माण पहाड़ी  ऊपर किसी समतल भूमि पर किया था। कुमाऊं गढ़वाल में सभी राजवंशो के गढ़ों के अलावा इनके सामंतो भी अपने गढ़ होते थे। इनमे अधिकतर केवल नाम के रह  हैं अब। गढ़वाल जो पहले “केदारखंड’ के नाम से जाना जाता था। वर्तमान गढ़वाल का नामकरण ही गढ़वाल के…

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नारायण आश्रम की स्थापना 1936 में श्री नारायण स्वामी जी ने की थी। यह पिथौरागढ़ से 136 किमी दूर है। और तवाघाट से 14 किमी दूर है। नारायण आश्रम समुद्रतल से 2734 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह आश्रम धारचूला स्टेशन से 23 किमी दूर है। प्रकृति की सुरम्य वादियों में बसा यह आश्रम ध्यान योग की गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध है। नारायण आश्रम उत्तराखंड का इतिहास – नारायण स्वामी का जन्म दक्षिण एक सम्पन्न परिवार में हुवा था। किन्तु इनके मन में युवास्था में ही वैराग्य उत्पन्न हो गया था। अपने सम्पन्न परिवार का त्याग कर ये हिमालय…

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उत्तराखंड का घेस गांव: घेस गांव (ghes village Uttarakhand) उत्तराखंड का हर्बल गांव के नाम से प्रसिद्ध है। हिमालय की तलहटी में बसा यह गांव जड़ी बूटियों के साथ-साथ अपनी नैसर्गिक सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध है। इसे जड़ी बूटियों वाला गांव भी कहते हैं। घेस गांव हिमालय के नजदीक चमोली जिले के देवाल ब्लॉक में स्थित है। इस गांव के लिए एक प्रसिद्ध कहावत है। घेस जिसके आगे नहीं देश । जड़ी-बूटियों का उत्पादन होता है – घेस गांव मे परम्परागत खेती के साथ जड़ी बूटीयों का उत्पादन भी किया जाता है। ग्रामवासी अतीस,कटकी, कर, पुष्करगोल, चिरायता और वन ककड़ी…

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अश्विन माह जिसे पहाड़ो में आशोज के नाम से जाना जाता है। और यह अशोज का महीना जबरदस्त खेती के काम का प्रतीक माना जाता है। क्योंकि इस महीने खरीफ की फसलों के साथ घास भी काटी जाती है। और अधिक मात्रा में होने के कारण इसे घास के लुटे बनाकर स्टोर किया जाता है। काम -काज का पर्याय है आशोज का महीना – अश्विन यानि सितम्बर और अक्टूबर में मोटा अनाज मडुवा ,झंगोरा आदि और धान की फसल ,और दाल दलहन इसके साथ घास ये सब एक साथ तैयार होते हैं। इतनी सारी फसलें एक साथ तैयार होने के…

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