Monday, April 28, 2025
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शकुनाखर – कुमाऊं मंडल के संस्कार गीतों की अन्यतम विधा

शकुनाखर कुमाऊं मण्डल के संस्कार गीतों की एक विशेष विधा है। शकुन का अर्थ होता है, शगुन सूचक और आखर शब्द का अर्थ होता है, अक्षर अर्थात शगुन सूचक अक्षर। धार्मिक कार्यों अथवा मांगलिक कार्यों के शुरू में गाए मंगल गीत, जिनका उद्देश्य विवाह, यज्ञोपवीत व नामकरण आदि मंगलकार्यों के आरम्भ से अंत तक निर्विघ्नपूर्वक संपन्न किये जाने की कामना से अपना आशीर्वाद देने के लिए देवी देवताओं को आमंत्रित करना और सम्बंधित परिवारजनों की दीर्घायु व सुखशांति की कामना करने वाले गीतों को शकुनाखर कहा जाता है। गढ़वाल मंडल में इन्हे मांगल गीत कहते हैं।

शकुनाखर गीत लिरिक्स –

प्रस्तुत लेख में शकुनाखर का अर्थ के साथ कुमाउनी सामाजिक जीवन में प्रयुक्त कुछ शकुनाखर गीतों के बोल संकलित कर रहें हैं।

मंगलाचरण

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शकूना दे शकूना दे सव सिद्ध, काज ये अति नीको शूकना बोल्या ।
दाईना बजन छन, शॅख शब्द, दैणी तीर भरियो कलेश ।
अति नीको सो रंगोलो, पटलोआँचली कमलै को फूल ।
सोही फूलू मौलावन्त, गणेश रामीचन्द्र लछीमन लवकुश,
जीवा जनम आध्या अम्बरू होय ।
सोही पाट पैरी रहना, सिद्धि बुद्धि सीतादेही बहुराणी ।
आयुवन्ती पुत्रवन्ती होय सोही फूलू मोलावन्त
(परिवार को पुरुषों के नाम )
जीवा जनम आध्या अम्बरू होय ।
सोही पाट पैरी रहा, सिद्धि बुद्धि
(परिवार की महिलाओं के नाम सुन्दरी, मंजरी आदि)
आयुवन्ती पुत्रवन्ती होय ।।

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गणेश पूजा के शकुनाखर –

जय जय गणपति, जय जय ए ब्रह्म सिद्धि विनायक।
एक दंत शुभकरण, गंवरा के नंदन, मूसा के वाहन।
सिंदुरी सोहे, अगनि बिना होम नहीं, ब्रह्म बिना वेद नहीं,
पुत्र धन्य काजु करें, राजु रचें।
मोत्यूं मणिका हिर-चौका पुरीयलै,
तसु चौखा बैइठाला रामीचन्द्र लछीमन विप्र ऐ।
जौ लाड़ी सीतादेही, बहुराणी, काजुकरे, राजु रचै॥
फुलनी है, फालनी है जाइ सिवान्ति ऐ।
फूल ब्यूणी ल्यालो बालो आपू रुपी बान ऐ॥

शकुनाखर - कुमाऊं मंडल के संस्कार गीतों की अन्यतम विधा

निमंत्रण/ सुवाल पथाई के शकुन आखर लिरिक्स –

सूवा रे सूवा, बनखंडी सूवा,
रे जा सूवा घर-घर न्यूत दी आ।
हरियाँ तेरो गात, पिंगल तेरो ठून,
रत्नन्यारी तेरी आँखी, नजर तेरी बांकी,
जा सूवा घर-घर न्यूत दी आ ,गौं-गौं न्यूत दी आ।
नौं न पछ्याणन्यू, मौ नि पछ्याणन्यूं, कै घर कै नारि
दियोल?
राम चंद्र नौं छु, अवध पुर गौ छु, वी घर की नारी कैं न्यूत
दी आ ।
सूवा रे सूवा, बनखंडी सूवा,
जा सूवा घर घर न्यूत दी आ
गोकुल गौं छू, कृष्ण चंद्र नौं छु, वी घर की नारी कैं न्यूत
दी आ।
सूवा रे सूवा, बनखंडी सूवा, जा सूवा घर-घर न्यूत दी
आ।
कैलाश गौ छू, शंकर उनर नु छू, वी घवी नारी न्यूत दी
आ।

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सूवा रे सूवा, बनखंडी सूवा,
जा सूवा घर-घर न्यूत दी आ
अघिल आधिबाड़ी, पछिल फुलवाड़ी, वी घर की नारी
कैं न्यूत दी आ।
हस्तिनापुर गौं छ, सुभद्रा देवी नौं छ, वी का पुरुष को
अरजुन नौं छ,
वी घर, वी नारि न्यूंत दी आ।
सूवा रे सूवा, बणखंडी सूवा,
जा सूवा घर-घर न्यूत दी आ

इन्हे भी पढ़े: सोमेश्वर के प्रसिद्ध मालपुए ,विलुप्त होते पारम्परिक स्वाद का आखिरी ठिकाना।

मंगल स्नान के शकुनाखर  –

उमटण दइए मइए मैल छूटाइये।
गंगा जमुना मिलिआए तो बालों नवाइए, कलेश मराइए,
भाई बहिन मिलि आए तो नवाइए।।
हलदी के घर जाओ तो हलद मौलाइए।
तेली के घर जावो तो तेल मौलाइए।।
कुमकुम केसर परिमल अंग सुहाइए।
किन ए उ पंडित ले हलद मौलाइ।
तो हलद की शोभा ए,
किन ए उ सोहागिलि लै घोटा घोटाई।
तो हलद रंगीलो,
किन ए उ पहिरन जोग्य तो हलद की शोभाये।
रामीचंद्र, लछीमण हलद मोलाइ तो हलद की शोभाये।
सीता देहि लै, बहूरांणि लै हलद घौटाई, तो हलद कि शोभाये।
लव कुश पहिरन जोग्य, तो हलद की शोभाये॥

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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