Tuesday, November 21, 2023
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शकुनाखर | कुमाऊं मंडल के संस्कार गीतों की अन्यतम विधा।

शकुनाखर –

शकुनाखर कुमाऊं मण्डल के संस्कार गीतों की एक विशेष विधा है। शकुन का अर्थ होता है ,शगुन सूचक और आखर शब्द का अर्थ होता है ,अक्षर अर्थात शगुन सूचक अक्षर। धार्मिक कार्यों अथवा मांगलिक कार्यों के शुरू में गाए मंगल गीत ,जिनका उद्देश्य विवाह ,यज्ञोपवीत व् नामकरण आदि मंगलकार्यों के आरम्भ से अंत तक निर्विघ्नपूर्वक संपन्न किये जाने की कामना से अपना आशीर्वाद देने के लिए देवी देवताओं को आमंत्रित करना और सम्बंधित परिवारजनों की दीर्घायु व् सुखशांति की कामना करने वाले गीतों को शकुनाखर कहा जाता है। गढ़वाल मंडल में इन्हे मांगल गीत कहते हैं।

शकुनाखर गीत के बोल | Shakunakhar lyrics –

प्रस्तुत लेख में शकुनाखर का अर्थ के साथ कुमाउनी सामाजिक जीवन में प्रयुक्त कुछ शकुनाखर गीतों के बोल संकलित कर रहें हैं।

मंगलाचरण

शकूना दे शकूना दे सव सिद्ध, काज ये अति नीको शूकना बोल्या ।

दाईना बजन छन, शॅख शब्द, दैणी तीर भरियो कलेश ।

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अति नीको सो रंगोलो, पटलोआँचली कमलै को फूल ।

सोही फूलू मौलावन्त, गणेश रामीचन्द्र लछीमन लवकुश,

जीवा जनम आध्या अम्बरू होय ।

सोही पाट पैरी रहना, सिद्धि बुद्धि सीतादेही बहुराणी ।

आयुवन्ती पुत्रवन्ती होय सोही फूलू मोलावन्त

(परिवार को पुरुषों के नाम )

जीवा जनम आध्या अम्बरू होय ।

सोही पाट पैरी रहा, सिद्धि बुद्धि

(परिवार की महिलाओं के नाम सुन्दरी, मंजरी आदि)

आयुवन्ती पुत्रवन्ती होय ।।

गणेश पूजा के शकुनाखर –

 

जय जय गणपति, जय जय ए ब्रह्म सिद्धि विनायक ।

एक दंत शुभकरण, गंवरा के नंदन, मूसा के वाहन ।

सिंदुरी सोहे, अगनि बिना होम नहीं, ब्रह्म बिना वेद नहीं,

पुत्र धन्य काजु करें, राजु रचें।

मोत्यूं मणिका हिर-चौका पुरीयलै,

तसु चौखा बैइठाला रामीचन्द्र लछीमन विप्र ऐ।

जौ लाड़ी सीतादेही, बहुराणी, काजुकरे, राजु रचै॥

फुलनी है, फालनी है जाइ सिवान्ति ऐ ।

फूल ब्यूणी ल्यालो बालो आपू रुपी बान ऐ॥

निमंत्रण/ सुवाल पथाई के शकुन आखर :-

 

सूवा रे सूवा, बनखंडी सूवा,

रे जा सूवा घर-घर न्यूत दी आ।

हरियाँ तेरो गात, पिंगल तेरो ठून,

रत्नन्यारी तेरी आँखी, नजर तेरी बांकी,

जा सूवा घर-घर न्यूत दी आ ,गौं-गौं न्यूत दी आ।

नौं न पछ्याणन्यू, मौ नि पछ्याणन्यूं, कै घर कै नारि

दियोल?

राम चंद्र नौं छु, अवध पुर गौ छु, वी घर की नारी कैं न्यूत

दी आ ।

सूवा रे सूवा, बनखंडी सूवा,

जा सूवा घर घर न्यूत दी आ

गोकुल गौं छू, कृष्ण चंद्र नौं छु, वी घर की नारी कैं न्यूत

दी आ।

सूवा रे सूवा, बनखंडी सूवा, जा सूवा घर-घर न्यूत दी

आ।

कैलाश गौ छू, शंकर उनर नु छू, वी घवी नारी न्यूत दी

आ।

सूवा रे सूवा, बनखंडी सूवा,

जा सूवा घर-घर न्यूत दी आ

अघिल आधिबाड़ी, पछिल फुलवाड़ी, वी घर की नारी

कैं न्यूत दी आ ।

हस्तिनापुर गौं छ, सुभद्रा देवी नौं छ, वी का पुरुष को

अरजुन नौं छ,

वी घर, वी नारि न्यूंत दी आ ।

सूवा रे सूवा, बणखंडी सूवा,

जा सूवा घर-घर न्यूत दी आ

मंगल स्नान के शकुन आखर –

उमटण दइए मइए मैल छूटाइये।
गंगा जमुना मिलिआए तो बालों नवाइए, कलेश मराइए,
भाई बहिन मिलि आए तो नवाइए।।
हलदी के घर जाओ तो हलद मौलाइए।
तेली के घर जावो तो तेल मौलाइए।।
कुमकुम केसर परिमल अंग सुहाइए।
किन ए उ पंडित ले हलद मौलाइ।
तो हलद की शोभा ए,
किन ए उ सोहागिलि लै घोटा घोटाई ।
तो हलद रंगीलो,
किन ए उ पहिरन जोग्य तो हलद की शोभाये ।
रामीचंद्र, लछीमण हलद मोलाइ तो हलद की शोभाये ।
सीता देहि लै, बहूरांणि लै हलद घौटाई, तो हलद कि शोभाये।
लव कुश पहिरन जोग्य, तो हलद की शोभाये ॥

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