Ganga dussehra dwar patra mantra – पौराणिक मान्यताओं के आधार पर बताया जाता है कि जेष्ठ शुक्ल दशमी को माँ गंगा का अवतरण धरती पर हुवा था। इस अवसर पर सनातन धर्म को मानने वाले गंगा दशहरा पर्व मनाते हैं। गंगा दशहरा के अवसर पर उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के निवासी विशेष मन्त्रों से अभिमंत्रित गंगा दशहरा द्वारा पत्र अपने द्वारों पर चिपकाते हैं। इस पत्र के बारे में कहा जाता है ,कि इसमें लिखे मन्त्रों के प्रभाव से नकारात्मक शक्तियां घर से दूर रहती हैं।
कैसे शुरू हुई यह परंपरा –
गंगा दशहरा द्वार पत्र के बारे में कहा जाता है कि , जब धरती पर माँ गंगा अवतरण हो रहा था ,तब सप्तऋषि कुमाऊं क्षेत्र में तपस्या कर रहे थे। माँ गंगा के धरती आगमन पर उन्होंने अपनी कुटियों में जल छिड़क कर ,अपने आश्रम द्वारों पर विशेष अभिमंत्रित द्वार पत्र लगाए। तब से कुमाऊं मंडल में यह परम्परा चली आ रही है। इसके बारे में यह उल्लेख्य है कि यह उत्सव पर्वतीय पारम्परिक त्योहारों में नहीं आता है। यह उत्तराखंड आकर बसने वाले पुरोहितों की देन है।
गंगा दशहरा द्वार पत्र के मंत्र ( ganga dussehra dwar patra mantra )
विभिन्न देवी देवताओं के चित्रों से बना इस पत्र में एक विशेष मन्त्र लिखा रहता है। जिसके बारे में कहते हैं कि इससे अभी व्याधियों से रक्षा होती है। गंगा दशहरा द्वार पत्र का वो मन्त्र इस प्रकार है –

अगस्त्यश्च पुलस्त्यश्च वैशम्पायन एव च ।
र्जैमिनिश्च सुमन्तुश्च पञ्चैते वज्रवारका: ।।
मुनेःकल्याणमित्रस्य जैमिनेश्चाऽनुकीर्तनात् ।
विद्युदग्नि भयं नास्ति लिखितं गृहमण्डले ।।
यत्रानुपायी भगवान् दद्यात्ते हरिरीश्वरः।
भङ्गो भवति वज्रस्य तत्र शूलस्य का कथा ।।

इस पत्र को कुलपुरोहित अपने यजमानो को सौपते हैं और बदले में दक्षिणा प्राप्त करते हैं।
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