Author: Bikram Singh Bhandari

बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

हम इस लेख में उत्तराखंड की स्थापना पर निबंध का संकलन कर रहें हैं। उम्मीद है हमारा यह संकलन विद्यार्थी मित्रों के लिए सहायक होगा। हिमराज हिमालय के अंचल में फैला हुवा उत्तराखंड प्रदेश अपने गगन चुम्बी हिम शिखरों और रमणीक उपत्यकाओं के कारण प्राचीन काल से ही प्रकृति प्रेमियों ,पवित्र तीर्थस्थलों ,शांति एवं तपसाधना के लिए प्रसिद्ध रहा है। उत्तराखंड नवंबर 2000 से पहले यह उत्तर प्रदेश का एक मंडलीय भाग था। जो 09 नवंबर 2000 को भारत के सत्ताइसवें और हिमालयी क्षेत्रों के ग्यारहवे राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। उत्तराखंड की स्थापना – आजादी के बाद…

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सीतावनी रामनगर : उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में नैनीताल जिले के रामनगर कस्बे से 20 किलोमीटर दूरी पर कोसी नदी और दाबका नदियों के बीच पहाड़ की घाटी में घने साल के वनो के बीच इस स्थान को वाल्मीकि आश्रम और माता सीता की तपोस्थली माना जाता है। सीतावनी मंदिर के बारे में बताया जाता है कि यह मंदिर त्रेतायुग से यहाँ स्थापित है। सीता माँ का यह मंदिर रामनगर वन प्रभाग के अंतर्गत आता है। सीतावनी रामनगर का पौराणिक इतिहास जुड़ा है माँ सीता और लव कुश से – सीतावनी रामनगर के बारे में लोकमान्यताओं में कहा जाता है…

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उत्तराखंड का लोकपर्व इगास बग्वाल उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में दीपावली के ठीक ग्यारह दिन बाद, देवउठनी एकादशी के दिन एक लोक पर्व मनाया जाता है, जिसे इगास बग्वाल के नाम से जाना जाता है। इगास बग्वाल का अर्थ होता है एकादशी के दिन मनाई जाने वाली बग्वाल या दीपवाली। पहले बग्वाल के रूप में पत्थर युद्ध का अभ्यास होता था। और यह बग्वाल अधिकतर दीपावली के आस पास मनाई जाती थी। इसलिए पहाड़ों में दीपावली के पर्व को बग्वाल कहा जाता है। धीरे धीरे प्रशासनिक व्यवस्था में परिवर्तन होते रहे और बग्वाल के रूप में पत्थर युद्ध अभ्यास की…

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जाखन देवी अल्मोड़ा- उत्तराखंड में प्राचीन काल विभिन्न जातियों और संस्कृतियों का निवास रहा है। जिन्होंने मिलकर उत्तराखंड की एक समृद्ध संस्कृति का निर्माण किया है। उत्तराखंड के प्राचीन निवासियों में यक्ष ,गन्धर्व ,खस आदि प्रमुख रहे हैं। यहाँ यक्षों का प्रभाव आदिकाल से ही काफी रहा है। उत्तराखंड में अलकनंदा नदी के किनारे बसी थी यक्षनगरी अलकापुरी। कहते हैं उत्तराखंड की लोककला ऐपण में भी यक्ष संस्कृति का प्रमुख योगदान है। यक्षों के बसाये अनेक मंदिर और उनसे जुड़े अनेक मंदिर है उत्तराखंड में  उन्ही मंदिरो में से अल्मोड़ा में स्थित माँ जाखन देवी का मंदिर बहुत प्रसिद्ध है।…

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कोट कांगड़ा देवी उत्तराखंड : वैसे तो कोट कांगड़ा देवी का मूलस्थान हिमाचल के कांगड़ा जनपद के मुख्यालय में है किन्तु इसका एक मंदिर कुमाऊं मण्डल के अल्मोड़ा जनपद की रानीखेत तहसील में उसके मुख्यालय से रानीखेत-चौखुटिया रोड पर उत्तर की तरफ 38 किमी. तथा अल्मोड़ा से उत्तर पश्चिम की ओर समुद्र की सतह से 1540 मी. की ऊंचाई पर स्थित अल्मोड़ा जिला के द्वाराहाट नामक कस्बे में स्थित है। इसे यहां के चौधरी और शाह  लोगों की कुलदेवी कहा जाता है। चौधरी और शाह लोग नवरात्रों और अन्य शुभ अवसरो पर यहाँ पूजा अर्चना करते हैं। और शाह चौधरी लोगो…

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समूह ग के अंतर्गत तकनीकी पदों में भर्ती – उत्तराखंड में तकनीकी पदों का इन्तजार कर रहे लोगों के लिए अच्छी खबर है। उत्तराखंड अधीनस्थ चयन आयोग ने उत्तराखंड में समूह ग के अंतर्गत निकली तकनीकी संवर्ग पदों पर भर्ती निकाली है। उत्तराखण्ड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा विभिन्न विभागों के समूह ‘ग’ के प्रारूपकार के रिक्त 140 पदों, टैक्नीशियन ग्रेड-2 (विद्युत) के रिक्त 21 पदों, टैक्नीशियन ग्रेड-2 (यांत्रिक) के रिक्त 09 पदों, नलकूप मिस्त्री के रिक्त 16 पदों, प्लम्बर के रिक्त 01 पद, मेंटिनेस सहायक के रिक्त 01 पद, इलैक्ट्रिशियन के रिक्त 01 पद, इस्ट्रूमेंट रिपेयर के रिक्त 03…

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उत्तराखंड की एक सुन्दर घाटी हर्षिल घाटी जो प्राकृतिक सुंदरता के मामले में विश्व प्रसिद्ध है। उतना ही प्रसिद्ध इस घाटी का इतिहास है। इस घाटी के राजमा और सेव के बारे में सबको पता है कि वे विश्व प्रसिद्ध हैं। लेकिन अधिकतर लोग हर्षिल घाटी को राजमा और सेव की सौगात देने वाले फेड्रिक विल्सन या हुलसन साहब के बारे में नहीं जानते हैं। फेड्रिक ई विल्सन को कोई राजा कहता है तो कोई डाकू और कोई ठेकेदार कहता है। कौन था हर्षिल का राजा फेड्रिक विल्सन – फेड्रिक ई विल्सन के बारे में कहते हैं कि वह ब्रिटिश…

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विभाण्डेश्वर महादेव मंदिर – उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में द्वाराहाट नगर को मंदिरों का नगर उत्तर की द्वारिका भी कहा जाता है। इसी मंदिरो के नगर में काशी विश्वनाथ के महत्त्व के बराबर महत्त्व रखने वाला महादेव का मंदिर है जिसे विभाण्डेश्वर महादेव कहा जाता है। जीर्णोद्वार की बाट जोहता कुमाऊं का पौराणिक मंदिर विभाण्डेश्वर महादेव: पौराणिक महत्व रखने वाला यह मंदिर आज दिन प्रतिदिन जीर्ण अवस्था में जा रहा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार संभवतः जब से इस मंदिर का निर्माण हुआ है तब से इसका जीर्णोद्धार नहीं हुवा है। वर्तमान देख रेख करता श्री गोपाल जोशी जी से…

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स्वाला गांव की वास्तविक कहानी : क्या आप जानते  हो उत्तराखंड में एक गांव ऐसा है जहाँ केवल भूत रहते हैं। और उस गांव को उत्तराखंड का भूतिया गांव या घोस्ट विलेज ऑफ़ उत्तराखंड के नाम से प्रसिद्ध है। अब आप बोलोगे आधुनिक ज़माने में कहाँ भूत -प्रेत होते हैं ? बात तो सही है आधुनिक टैक्नोलॉजी के दौर में भूत प्रेत की बात औचित्यहीन लगती है। लेकिन ! देवभूमि उत्तराखंड में सब संभव है। यहाँ जितना विश्वास देवों पर या दैवीय शक्तियों पर किया जाता है ,उतना ही विश्वास भूत प्रेतों के अस्तित्व पर भी किया जाता है। और…

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ब्रह्म कपाल बद्रीनाथ – मित्रों आजकल पितृपक्ष चल रहे हैं , लोग अपने पूर्वजों को तर्पण देते हैं। कई लोग अपने पितरों की मुक्ति के लिए घरों में तर्पण करते हैं और कई लोग बड़े बड़े तीर्थों जैसे गया ,हरिद्वार इत्यादि में पिंडदान करते हैं। पितरों के तर्पण के लिए गया तीर्थ को सबसे अच्छा तीर्थ माना गया है। ऐसा माना जाता है कि गया में पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। भारत में पितरों को समर्पित गया के अलावा एक और तीर्थ है , जिसका नाम है ब्रह्म कपाल। कहते हैं जिन पितरों को गया…

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