बूढ़ी दिवाली 2024 – हिमालयी क्षेत्रों में दीपावली एक से अधिक बार मनाने की परम्परा है। उत्तराखंड से लेकर हिमाचल प्रदेश तक पहाड़ी इलाकों में बूढ़ी दिवाली मनाने की परम्परा है। यह बूढ़ी दिवाली हिमालयी क्षेत्रों में अपनी अपनी सुविधानुसार मनाई जाती है। उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र और गढ़वाल के कुछ हिस्सों में में हरिबोधनी एकादशी के दिन बूढ़ी दिवाली इगास और बूढ़ी दिवाली के रूप में मनाई जाती है। इसके बाद मुख्य दीपावली के ठीक एक महीने बाद जौनपुर उत्तरकाशी की गंगाघाटी में मंगसीर बग्वाल के रूप में बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है। वहीं रवाई घाटी में बूढी दीवाली…
Author: Bikram Singh Bhandari
घुघुतिया उत्तराखंड का प्रसिद्ध लोकपर्व है। यह लोकपर्व प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के दिन मनाया जाता है। इस दिन आटे और गुड़ के साथ मिलाकर विशेष पकवान घुघुते बनाये जाते हैं। घुघुतिया के दिन घुघुते बनाने के पीछे अनेक लोककथाएं और किवदंतियां जुड़ी हैं। जिसमे से अधिकतम कहानियाँ आपको पता ही होगा। अगर नहीं पता तो इस पोस्ट के अंत में घुघुतिया पर्व से जुडी कथाओं का लिंक दे रहे हैं ,जरूर पढियेगा। अब आते आज के शीर्षक की मूल कहानी पर। घुघुतिया के दिन घुघुतों के साथ ढाल तलवार भी बनाते हैं ,और साथ में हुड़का रस्सी और लकड़ी लाने…
पहाड़ के दास : वैसे तो दास शब्द का सामान्य अर्थ है ‘अधीनस्थ सेवक’, या गुलाम जिसके ‘क्रीतदास’, ‘ऋणदास’ आदि कई रूप होते हैं, किन्तु उत्तराखंड की देववाद की शब्दावली में इसका अर्थ होता है दलित वर्गीय वह व्यक्ति जो ढोल आदि लोकवाद्यों के साथ लोकदेवताओं के चरित्रगान के माध्यम से उनके धामियों,पश्वाओं,डंगरियों में उनका अवतरण कराता है। पहाड़ो के लोकदेवता उन्हें गुरु के रूप में संबोधित करते हैं। और उनके आदेशों का पालन करते हैं। उनके पास पहाड़ के देवताओं को बुलाने से लेकर उनको नियंत्रित करने और उनसे सवाल जवाब करने और उन्हें वापस भेजने की कला भी…
देवलांग पर्व रवाईं घाटी का लोकोत्सव है। रवाईं घाटी अर्थात यमुना घाटी के विशेष त्योहारों में शामिल है देवलांग । बूढ़ी दीवाली या मंगसीर बग्वाल की तरह देवलांग भी बड़ी दीवाली के ठीक एक माह बाद मनाई जाती है। रवाईं घाटी की समृद्ध संस्कृति का प्रतीक है देवलांग उत्सव :- रवाईं घाटी की बनाल पट्टी के गावँ दो दलों में बटे है। एक दल का नाम साठी है, जबकि दूसरे दल का नाम पांसाई। ये दोनों दल एक माह पूर्व से देवलांग की तैयारियां शुरू कर देते हैं। देवलांग मनाने के लिए पहले छिलकों की व्यवस्था की जाती है। और…
मलयनाथ स्वामी उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के लोकदेवता हैं। यह उत्तराखंड के कुमाऊं के पूर्वी क्षेत्र सीरा एवं अस्कोट के लोकदेवता हैं। इनका मंदिर डीडीहाट के नजदीक सीराकोट दुर्ग के पुराने खंडहरों के बीच स्थित है। मलयनाथ देवता के बारे में कहा जाता है कि मलयनाथ सम्भवतः कोई मल्ल राजकुमार था। इनके मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहाँ ब्राह्मणों का प्रवेश निषिद्ध है। मलयनाथ स्वामी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहाँ पूजा केवल क्षत्रिय और जागर गान करने वाले करते हैं। इनकी जागर चार दिन की होती है , जिसे चौरास कहते हैं। मलयनाथ…
पद्म का वृक्ष को उत्तराखंड के पहाड़ों की लोक संस्कृति में देव वृक्ष कहा जाता है। पहाड़ों में इस वृक्ष का बहुत महत्व है। पद्म के पेड़ की लकड़ी पहाड़ो में चन्दन की लकड़ी के बराबर पवित्र मानी जाती है। पद्म का वृक्ष का वैज्ञानिक परिचय – पद्म का वृक्ष का वानस्पतिक नाम प्रुन्नस सीरासोइडिस है। यह रोजेसी कुल का पौधा है। इस पेड़ का हिंदी नाम पद्म या पदखम है। अंग्रेजी में पद्म के पेड़ को बर्ड चेरी (Bird cherry ) के नाम से जाना जाता है। उत्तराखंड के पहाड़ों में इसे पयाँ ,पया ,पयों आदि नामो से जाना…
हरिबोधिनी एकादशी – मुख्य दीपावली के बाद जो एकादशी आती है उसे हरिबोधनी एकादशी कहते है। सनातन धर्म की पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान् विष्णु चार माह की योगनिद्रा के बाद उठते हैं। इस दिन को उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में इगास बग्वाल और कुमाऊं में बुढ़ दियाई यानि बूढी दीपावली मनाई जाती है। बग्वाल का अर्थ जहाँ पत्थर युद्ध या उसका अभ्यास होता है। प्राचीन काल में पहाड़ों के राजा महाराज ,सामंत अपनी पत्थर आयुध टुकड़ी से बरसात बाद के त्योहारों पर पत्थर युद्ध का अभ्यास करवाते थे ,संभवतः इसलिए कालान्तर में पत्थर युद्ध का अभ्यास तो…
पहाड़ की बेटी को न्याय : आज उत्तराखंड की एक ऐसी बेटी की कहानी बताने जा रहे हैं ,जिसकी पूरी कहानी पढ़ने के बाद आप उसके हौसले ,उसके संघर्ष को नमन किये बिना नहीं रह पाओगे ! आजकल गढ़ी चंपावती के सर्वोच्च न्यायधीश यानी गोल्ज्यू महाराज उत्तराखंड की यात्रा पर हैं। गोल्ज्यू सन्देश यात्रा के अंतर्गत पूरे उत्तराखंड का भ्रमण कर रहे हैं। बात है 06 नवंबर 2024 की ,आज गोल्ज्यू की यात्रा का पड़ाव होना था धर्म नगरी हरिद्वार में। इधर हरिद्वार के एक न्यायालय में एक पहाड़ की बेटी न्याय की प्रतीक्षा कर रही थी , आठ साल…
उत्तराखंड स्थापना दिवस की शुभकामनाएं : मित्रों 09 नवंबर 2000 उत्तराखंड राज्य की स्थापना भारत के 27 वे राज्य के रूप में हुई। जैसा की हमने अपने पूर्व लेखों में बताया की आजादी के बाद उत्तराखंड के पहाड़वासियों को यह बात धीरे धीरे समझ में आने लगी थी की हम सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से धीरे धीरे पिछड़ते जा रहे हैं। पहाड़ी समाज लगातार उपेक्षा का शिकार हो रहा था। इन्ही सब चीजों को मध्यनजर रखते हुए , पहाड़ के निवासियों ने एक सपनो के राज्य उत्तराखंड की कल्पना की। और इसी कल्पना को सार्थक रूप देने के लिए पहाड़…
उत्तराखंड स्थापना दिवस पर कविता – 09 नवंबर 2000 को भारत के 27 वे राज्य के रूप में उत्तरांचल राज्य का गठन हुवा था। और 01 जनवरी 2007 से उत्तराँचल का नाम उत्तराखंड कर दिया गया। प्रतिवर्ष 09 नवंबर के दिन उत्तराखंड के निवासी अपने राज्य का स्थापना दिवस मनाते हैं। प्रस्तुत पोस्ट में उत्तराखंड स्थापना दिवस पर कविता का संकलन किया गया है। इस पोस्ट में दो कविताओं का संकलन किया गया है। इन कविताओं में पहली कविता उत्तराखंड के प्रसिद्ध कवि श्री नारायण सिंह बिष्ट जी का कविता संग्रह धज में से लिया गया है। उत्तराखंड स्थापना दिवस पर…