Tuesday, April 29, 2025
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पहाड़ की बेटी को न्याय देने हरिद्वार आये गोल्ज्यू।

पहाड़ की बेटी को न्याय : आज उत्तराखंड की एक ऐसी बेटी की कहानी बताने जा रहे हैं ,जिसकी पूरी कहानी पढ़ने के बाद आप उसके हौसले ,उसके संघर्ष को नमन किये बिना नहीं रह पाओगे !

आजकल गढ़ी चंपावती के सर्वोच्च न्यायधीश यानी गोल्ज्यू महाराज उत्तराखंड की यात्रा पर हैं। गोल्ज्यू सन्देश यात्रा के अंतर्गत पूरे उत्तराखंड का भ्रमण कर रहे हैं। बात है 06 नवंबर 2024 की ,आज गोल्ज्यू की यात्रा का पड़ाव होना था धर्म नगरी हरिद्वार में। इधर हरिद्वार के एक न्यायालय में एक पहाड़ की बेटी न्याय की प्रतीक्षा कर रही थी , आठ साल 4 माह लम्बे चले उसके केस का आज निर्णय का दिन था।

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दिल में धुकधुकी सी थी ,जाने क्या होगा ? जीतूंगी या हारूंगी ? मन ही मन अपने पहाड़ के सर्वोच्च न्यायाधीश भगवान् गोल्ज्यू को और मायके के सभी देवी देवताओं को भी याद कर रही थी ..! आखिर आठ साल का संघर्ष था ,अपने आप को सही सिद्ध करने की जिद थी ! कहीं ना कहीं ये भी पता था कि आज गोल्ज्यू हरिद्वार आ रहे हैं , जब सर्वोच्च न्यायाधीश आ रहे हैं तो डर किस बात का !

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लेकिन आज हरिद्वार न्यायालय के जज साहब ने सुबह बताया की निर्णय 2 बजे होगा, 2 बजकर 25 मिनट हो गए निर्णय नहीं आया , आज निर्णय मिलना मुश्किल लग रहा था ,लग रहा था आज भी जज साहब नई तारीख दे देंगे ,और फिर निर्णय टल जायेगा ! फिर निराश होकर वो पहाड़ की बेटी गोल्ज्यू को याद करने लगी ! दिन के 3 बजे के आसपास का समय होगा ! इधर गोल्ज्यू की संदेश यात्रा हरिद्वार में शुरू हो गई थी और वैसे ही न्यायालय में जज साहब ने उस पहाड़ की बेटी की फाइल मंगा ली ! और निर्णय देना शुरू कर दिया ! निर्णय पहाड़ की बेटी के पक्ष में आया , प्रतिद्वंदी को दो साल की जेल हुई !

निर्णय से खुश ,आखों में आसूं भरे हुए कोर्ट से निकली और सीधे दुकान से गोल्ज्यू के लिए मिठाई लेकर और टोपियां लेकर दौड़ पड़ी अपने मैतु देव गोल्ज्यू से मिलने हर की पैड़ी ! वहां गोल्ज्यू ने उसके माथे पर अपना आशीर्वाद बभूत का टीका लगाया और बोले ,” त्वील मजाक समझ रऔछी ने ! लै देख मी ऐ ग्यू पे ! ” अर्थात तुझे भरोसा नहीं था ना कि मै आऊंगा , या तुझे लगा था तुझे न्याय मिलेगा कि नहीं ! ले मै आ गया तेरे घर ! इतना सुनकर उसकी आखें डबडबा गई ! समझ गई कोई साथ हो न हो मेरे गोल्ज्यू मेरे साथ हैं !

हरिद्वार में गोलज्यू के दर्शन और पहाड़ की बेटी की कहानी सुने यहाँ –

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अब आते हैं मूल कहानी पर ! बात आज से आठ साल पहले 2016 में प्राथमिक विद्यालय लालढांग बहद्राबाद हरिद्वार की है , पहाड़ में गरीब परिस्थितियों में पढ़ लिख कर शिक्षिका बनी एक पहाड़ की बेटी पर उसी विद्यालय के प्रधानाध्यापक ने दुष्कर्म की कोशिश की ,छेड़ छाड़ की ! पीड़िता ने इसकी शिकायत पुलिस थाने में की तो पहले वे भी टालते रहे लेकिन बाद में मीडिया में खबर उछलने के बाद मुकदमा दर्ज कर लिया गया !

इधर विभाग के अधिकारीयों ने भी खास साथ नहीं दिया ,उल्टा अपराधी प्रधानाध्यापक के साथ मिलकर पीड़िता को शिकायत वापस लेने को कहा गया, आपत्तिजनक सवाल पूछ कर मनोबल कम करने की कोशिश की गई । मामले को दबाने की कोशिश की गई। मगर पीड़िता पहाड़ की बेटी भी डटी रही।

जब उसे बचने के लिए कुछ न मिला तो उसने पीड़िता का मनोबल गिराने के लिए अलग अलग तरीके से फसाने की कोशिश की । उधर पति प्राइवेट नौकरी वाला , ऊपर से इतना बड़ा मुकदमा ! मगर पहाड़ की बेटी ने फिर भी हार नहीं मानी ,उसने न्यायपालिका क्षेत्र हरिद्वार में रहकर ,सिलाई बुनाई ,महिला समूहों के साथ मिलकर स्वरोजगार शुरू किया अपने बच्चों की पढाई और मुकदमे के लिए पैसे जुटाने शुरू किये।

पहाड़ की बेटी

घर से दूर हरिद्वार में रहकर अपने बच्चे भी पाले और अपने सम्मान की लड़ाई जारी रखी। बीच में जब भी मनोबल टूटा तो गोल्ज्यू को याद कर लिया ! मैतु देवों को याद कर लिया ! आँसुओं की यात्रा को आखों में ही रोक लिया लेकिन मनोबल नहीं गिरने दिया ! इसी साहस और संघर्ष का फल है कि आठ साल बाद ही सही हरिद्वार न्यायालय ने प्रधानाध्यापक सुभाष चंद्र पुत्र जसराम सिंह को दोषी माना और उसे दो अलग -अलग धाराओं में एक –एक साल का सश्रम कारावास और दो हजार के अर्थदंड की सजा सुनाई। हालाकि न्याय की यह यात्रा पीड़िता के लिए आसान नहीं रही ,और आगे भी उसे लड़ते रहना होगा ..!

वास्तव में अगर आप किसी भी लक्ष्य के लिए पूरी लगन से मेहनत करते हो तो सफलता जरूर मिलती है ,और उस सफलता के लिए प्रकृति की सकारात्मक शक्तियां भी आपका साथ देती हैं।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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