डंगरिया, जिसे स्थानीय रूप से धामी या पश्वा भी कहा जाता है, उत्तराखंड की अनूठी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपरा का प्रतीक है। यह परंपरा उस व्यक्ति पर आधारित है, जो स्थानीय देवी-देवताओं या आत्माओं का माध्यम बनता है। यह व्यक्ति जागर अनुष्ठान के दौरान देवताओं की वाणी बोलता है और जनसामान्य की समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है। डंगरिया का अर्थ और भूमिका : डंगरिया शब्द की उत्पत्ति ‘डंगर’ (पशु) से मानी जाती है। यह इसलिए क्योंकि माना जाता है कि डंगरिया देवी-देवताओं का वाहन बनता है। इसलिए उसे पश्वा भी कहते हैं। जागर अनुष्ठान के दौरान, देवता या भूत-प्रेत…
Author: Bikram Singh Bhandari
मकर संक्रांति के अवसर पर उत्तराखंड पौड़ी गढ़वाल के यमकेश्वर विकास खंड में थल के नजदीक के मैदान में लगने वाला यह गिंदी मेला या गेंद मेला,(gindi mela ) उत्तराखंड के प्रसिद्ध मेलों में गिना जाता है। गिंदी मेले का आयोजन प्रतिवर्ष अजमेर और उदयपुर पट्टियों के बीच डांडामंडी में लंगूर पट्टी के दोनों भागों के बीच थल नदी के मैदान में किया जाता है। इसके अलावा भी कई स्थानों पर इस प्रकार के मेलों का आयोजन किया जाता है। लेकिन डांडामंडी का गेंद मेला अधिक प्रसिद्ध है। गेंद मेला उत्तराखंड : त्यौहार व् मनोरजन के अलावा मेले का धार्मिक…
उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में मकर संक्रांति को विशेष तौर पर मनाया जाता है। सीमांत क्षेत्र जोशीमठ में इसे चुन्या त्योहार ( chunya tyohar ) के नाम से जाना जाता है। यह पर्व चमोली जनपद में बड़े उत्साह और परंपरागत रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। क्या है चुन्या त्योहार : जोशीमठ क्षेत्र के 50 से अधिक गांवों में मकर संक्रांति के दो- तीन दिन पहले से ही इस त्यौहार की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। सात प्रकार के अनाज ( दाल चावल झंगोरा इत्यादि ) की पहले से ही कुटाई और पिसाई कर ली जाती है। यह कार्य भी…
उत्तराखंड की संस्कृति का असली रूप रंग यहाँ के मेलों में समाहित है। उत्तराखंड के मेलों में ही यहाँ की संस्कृति का रूप निखरता है। हिन्दुओं के पवित्र माह माघ में मनाये जाने वाले महापर्व मकर संक्रांति को उत्तराखंड में खिचड़ी संग्रात ,घुघुतिया त्यौहार आदि नाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर जहाँ गढ़वाल में माघ मेला उत्तरकाशी और गिंदी मेला का आयोजन होता है , वही कुमाऊं में सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक मेला उत्तरायणी मेला का आयोजन होता है। इसे स्थानीय भाषा में उत्तरायणी कौतिक भी कहते हैं। कुमाऊं की स्थानीय भाषा में मेले को कौतिक कहा जाता है। प्रस्तुत…
बागेश्वर उत्तराखंड का इतिहास : धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अत्यंत समृद्ध है। सरयू और गोमती नदियों के संगम पर स्थित यह नगर उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल का प्रमुख तीर्थस्थल है। स्कंदपुराण के ‘वागीश्वर महात्म्य’ में बागेश्वर को मार्कण्डेय मुनि की तपस्थली और भगवान शिव के व्याघ्र रूप से जोड़ा गया है। यहां स्थित व्याघ्रेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना और यहां होने वाले उत्तरायणी मेले का ऐतिहासिक महत्व है। यह स्थान न केवल आध्यात्मिकता का केंद्र है, बल्कि कत्यूरी, चंद और मनकोटी शासकों के शासनकाल से जुड़े व्यापारिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र भी रहा है। बागेश्वर उत्तराखंड…
गढ़वाली भाषा में “चकड़ैत”शब्द का उपयोग पुराने समय में राजा के गुप्तचरों या चुगली करने वालों के लिए किया जाता था। वर्तमान में यह शब्द उस व्यक्ति को दर्शाता है जो कानाफूसी करता है या दूसरों की चुगली करता है। यह लेख “चकड़ैत” शब्द की व्युत्पत्ति, ऐतिहासिक संदर्भ, और सामाजिक-राजनीतिक विकास का अध्ययन करता है। इसके अलावा, यह शब्द के सांस्कृतिक और प्रशासनिक प्रभावों को भी उजागर करता है। परिचय : गढ़वाली संस्कृति में “चकड़ैत” शब्द ने समय के साथ कई रूप बदले हैं। प्रारंभ में यह राजसी गुप्तचरों को संदर्भित करता था, लेकिन आज यह शब्द आमतौर पर चुगली…
अल्मोड़ा का चमत्कारी पत्थर – उत्तराखंड का अल्मोड़ा जिला अपने खूबसूरत पहाड़ों, घने जंगलों और समृद्ध सांस्कृतिक धरोहरों के लिए जाना जाता है। लेकिन सल्ट मनीला क्षेत्र का सैंकुड़ा गांव अब एक और वजह से प्रसिद्ध हो गया है – यहां का एक विशालकाय पत्थर, जिसे स्थानीय भाषा में “ठुल ढुंग” कहा जाता है। यह पत्थर न सिर्फ पर्यटकों को आकर्षित कर रहा है, बल्कि गांव के विकास का केंद्र बन गया है। एक सपने से शुरू हुई कहानी सैंकुड़ा गांव के रहने वाले विक्रम सिंह बंगारी लंदन में नौकरी करते थे। गांव की छोटी-छोटी पगडंडियों और पहाड़ों के बीच उनका…
उत्तराखंड की टोंस नदी, हिमालय की गोद से निकलकर देहरादून जिले के कालसी के पास यमुना नदी में मिलने तक, अपनी गहराई, सुंदरता और समृद्ध सांस्कृतिक महत्व की गाथा कहती है। यह केवल एक नदी नहीं, बल्कि एक कहानी है, जो सदियों से उत्तराखंड के इतिहास, संस्कृति और लोककथाओं का हिस्सा रही है। टोंस नदी का उद्गम और प्रवाह : टोंस नदी उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित टोंस ग्लेशियर से निकलती है। यह ग्लेशियर लगभग 20,720 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। लगभग 250 किलोमीटर तक फैली इस नदी का प्रवाह ऊबड़-खाबड़ इलाकों, गहरी घाटियों और घने जंगलों से…
कुली बेगार आंदोलन उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी के दौरान उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक ऐतिहासिक और प्रभावशाली जनआंदोलन था। यह आंदोलन जनता के शोषण और अन्याय के विरुद्ध खड़ा हुआ, जिसने न केवल स्थानीय समाज को एकजुट किया बल्कि राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में भी अपना योगदान दिया। कुली बेगार प्रथा क्या थी? ब्रिटिश शासन के दौरान, जब कोई अंग्रेज अधिकारी भ्रमण, शिकार, या शोध के लिए पहाड़ों में आता था, तो स्थानीय पटवारी और ग्राम प्रधान का दायित्व होता था कि वे उसके लिए कुली (मजदूर) की व्यवस्था करें। ग्रामवासियों के नाम ग्राम प्रधान के…
कुमाऊनी संस्कृति : भारत एक विशाल देश है। यहाँ लगभग 150 करोड़ लोग और 2000 से भी अधिक जातियां रहती हैं। भारत में तकरीबन 544 स्थानीय भाषाएँ बोली जाती है। और अनेकों छोटे बड़े राज्यों में बटा भारत देश में नीले आसमान के नीचे अनेकों क्षेत्रीय संस्कृतियां फलती फूलती हैं। कहीं बड़े बड़े पहाड़ हैं तो कहीं कही समुंद्र के किनारे हैं। इन्ही भौगोलिक विशेषताओं ने यहाँ क्षेत्र विशेष की संस्कृति का निर्माण हुवा है। कुमाऊनी संस्कृति – कुमाऊनी संस्कृति उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं क्षेत्र में विकसित हुई एक समृद्ध और विविध सांस्कृतिक धरोहर है। यह संस्कृति न केवल अपनी…