Wednesday, April 24, 2024
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कुली बेगार आंदोलन, एक अमानवीय यातना का के खिलाफ विद्रोह।

उन्नीसवीं शताब्दी में अंग्रेजों के शाशन काल में ,जब भी कोई अंग्रेज भृमण के लिए या शिकार के लिए अथवा शोध के लिए पहाड़ों में आते थे तो ,उस क्षेत्र के पटवारी और प्रधान का दायित्व होता था कि  उस अंग्रेज के लिए कुली की व्यवस्था करवाए। इस काम के लिए  प्रधान के पास  एक रजिस्टर भी होता था, जिसमें सभी ग्राम वासियों के नाम लिखे होते थे।  सभी ग्रामवासियों  को बारी-बारी यह काम करने के लिये मजबूर किया जाता था। इस कार्य के एवज में उन्हें कोई पारिश्रमिक नहीं मिलता था। जनता से कुली का काम बिना मजदूरी दिये कराने को कुली बेगार कहते थे।  इसके अलावा  अंग्रेजो या उनके अफसरों  की यात्रा के दौरान उनके खान-पान और रहने  की सुविधायें भी आम आदमी को ही जुटानी पड़ती थी।

कुली बेगार आंदोलन

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कुली बेगार प्रथा एक अमानवीय प्रथा थी। शोषित समाज के मन में आक्रोश दबा हुवा था। इसी बीच 1857 की क्रांति की चिंगारी कुमाऊं में भी फैली। हालांकि इस विद्रोह को अंग्रेज प्राथमिक स्तर पर दबाने में सफल हुए। मगर जनता के मन में अंग्रेजों की दमनकारी नीतियां अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह के स्तर को बढाती गई। 1913 में यहाँ के निवासियों के लिए कुली बेगार आवश्यक कर दिया। इसका हर स्थान पर विरोध होने लगा।

बद्रीदत्त पांडेय जी ने अल्मोड़ा अखबार के माध्यम से इस जनांदोलन की अगुवाई की। 1920 में कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन नागपुर में पंडित गोविन्द पंत ,बद्रीदत्त पांडेय ,हरगोविंद पंत ,विक्टर मोहन जोशी और अन्य उत्तराखंडी जन नेताओं ने शिरकत की और गाँधी जी से इस बारे में चर्चा की और  कुली बेगार आंदोलन के लिए गांधी जी से प्रेरणा लेकर ,उत्तराखंड के पहाड़ों में जन जागरण करने लगे।

14 जनवरी 1921 को  मकर संक्रांति के दिन उत्तरायणी मेले के अवसर पर  ,कुली बेगार आंदोलन की शुरुवात हुई। यह एक जन आंदोलन था। अलग अलग गावों से आये लोगों ने इसे एक विशाल प्रदर्शन में तब्दील कर दिया। बागेश्वर में सरयू और गोमती के संगम के किनारे जिसे स्थानीय भाषा में बगड़ कहा जाता है।  वहाँ इस ऐतिहासिक कुली बेगार आंदोलन की शुरुवात हुई। विशाल जनसमूह ने पहले भगवान् बागनाथ जी की पूजा की ,फिर यह जनसमूह सरयू बगड़ की तरफ चल पड़ा। आगे से एक विशाल झंडा लगा था ,जिसमे लिखा था ” कुली बेगार बंद करो’ हालांकि इस आंदोलन से जुड़े जान नेताओं को जिलाधिकारी ने  पहले ही नोटिस दे दिया था, लेकिन उनपर कोई असर नहीं हुवा।

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कुली बेगार आंदोलन
कुली बेगार आंदोलन

सरयू के बगड़ में बद्रीदत्त पांडेय जी के नेतृत्व में सबने पवित्र सरयू जल हाथ में लेकर कसम खाई कि वे आज से कुली बेगार कुली बेगार नहीं देंगे। और उससे से संबंधित रजिस्टरों को फाड़ कर सरयू नदी में फेंक दिया। इस आंदोलन के बाद बद्रीदत्त पांडेय जी को कुमाऊं केसरी की उपाधि से नवाजा गया। जनता ने इस आंदोलन का कड़ाई से पालन किया। फलस्वरूप सरकार ने सदन में एक विधेयक लाकर इस प्रथा को समाप्त कर दिया।

इस आंदोलन से महात्मा गाँधी काफी प्रभावित हुए उन्होंने यंग इण्डिया में इस आंदोलन के बारे में लिखा, इसका प्रभाव सम्पूर्ण था। यह एक रक्तहीन क्रांति थी।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
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