Friday, November 22, 2024
Homeइतिहासगैरसैंण का इतिहास , गैरसैंण की सम्पूर्ण जानकारी हिंदी में।

गैरसैंण का इतिहास , गैरसैंण की सम्पूर्ण जानकारी हिंदी में।

गैरसैंण को  वर्तमान में उत्तराखंड की ग्रीष्म कालीन राजधानी घोषित कर दिया है। आइए जानते है उत्तराखंड गैरसैंण का इतिहास।

गैरसैंण का मतलब :-

गैरसैंण शब्द दो पहाड़ी शब्दों से मिलकर बना है , गैर + सैंण  , जहाँ गैर का मतलब कुमाउनी एवं गढ़वाली दोनो भाषाओं में गहरी या नीचे को बोला जाता  है। सैंण का मतलब दोनों भाषाओं में मैदानी इलाके को बोला जाता है। इसका मतलब होता है  गहराई या नीचे मैदानी एरिया या जगह।  गैरसैण का मतलब है समतल मैदान ।

गैरसैंण की भौगोलिक स्थिति –

वर्तमान में जिला, चमोली की तहसील और विकासखण्ड गैरसैण 30-3 डिग्री उत्तरी अशांश तथा 79-19डिग्री पूर्वी देशान्तर मे स्थित दूधातोली और व्यासी पर्वत श्रृंखला से घिरा, उत्तराखंड के केंद्र में स्थित है।

60-70 वर्ग किमी मे फैली इस समतल घाटी की समुद्रतल से उचाई लगभग 5360 फीट है ।इस क्षेत्र से आटागाड , पश्चिमी तथा पूर्वी नयार एवं पश्चिमी रामगंगा नदियां बहती है।

Best Taxi Services in haldwani

इनके अलावा अनेक स्थानों पर प्राकृतिक जल स्रोत उपलब्ध हैं। बांज ,तिलोज,खरसू ,बुरास ,काफल, चीड,आदि यहां वनो की मुख्य प्रजातियां है। गेवाड़, चांदपुर गड़ी, बधान गड़ी(ग्वालदम) इस क्षेत्र के चारो ओर स्थित है।प्रसिद्ध धार्मिक स्थल विनसर माहदेव और बेनीताल का सौंदर्य यहां स्थित है।

इसे भी पढ़ेउत्तराखंड उत्तरकाशी की विशेष वास्तु शैली के बारे में जानने के लिए क्लिक करें।

गैरसैंण का इतिहास  –

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार पहले यहाँ यक्षराज कुबेर का राज्य था। 2500 ई पूर्व यहाँ कत्यूर वंश का शाशन रहा था। उसके बाद 13 वी शताब्दी से  1803 तक यहाँ परमारों का शाशन रहा। 1803 ई में आये भूकम्प ने इस क्षेत्र को बुरी तरह क्षति पहुंचाई। इसके बाद गोरखों ने इसे अपने अधीन कर लिया था।

1803 से 1815 तक गैरसैण में गोरखों का राज रहा। 1815 में गोरखे अंग्रेजो से हार गए।1815 से भारत स्वतंत्रता तक यहाँ ब्रिटिश शाशन रहा। ब्रिटिश शाशन में 1839 में गढ़वाल जिले का गठन किया, तथा गैरसैंण को इसमे शामिल किया गया।

ब्रिटिश काल में लुशिगटन जब कुमाऊँ का कमिश्नर था। तब वह वर्ष में कुछ दिन गैरसैण में रहता था। गैरसैंण को उत्तराखंड की राजधानी बनाने के समय समय पर प्रस्ताव आते रहे हैं। राजधानी के लिए सबसे पहले गैरसैण का नाम वीर चंद्र सिंह गढ़वाली आगे किया था। उन्होंने 60 के दशक में प्रस्ताव दिया था।

गैरसैंण

1992 में उत्तराखंड क्रांति दल ने गैरसैण को ,औपचारिक राजधानी घोषित किया था। उत्तराखंड क्रांति दल ने 14 वे महाधिवेशन में गैरसैंण को  वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के नाम पर चंद्रनगर नाम से राज्य की राजधानी घोषित किया था। राजधानी के चयन के लिए गठित कौशिक समिति ने गैरसैंण को राजधानी के रूप में उपयुक्त बताया था।

राज्य की स्थायी राजधानी निर्माण के लिए गठित वीरेंद्र दीक्षित आयोग  द्वारा गैरसैण का भू सर्वेक्षण करवाया गया,किन्तु उन्होंने गैरसैंण में बहुत समस्याएं गिनाई और देहरादून को उपयुक्त राजधानी बताया ,और गैरसैंण को खारिज कर दिया।

इसे पढ़े – देवभूमी जनसेवा केन्द्र कैसे शुरू करे ? जानने के लिए क्लिक करें।

मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने 3 नवम्बर 2012 को पहली बार गैरसैंण में कैबिनेट बैठक आयोजित करवाई। सरकार ने 2014 में गैरसैण में विधानसभा सत्र आयोजित करवाने के साथ भराड़ीसैंण विधानसभा भवन का निर्माण शुरू करवा दिया। दिसंबर 2016 में नवनिर्मित विधानसभा भवन में पहला विधान सभा सत्र आयोजित किया गया।

विधान सभा चुनाव 2017 में बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में ,गैरसैंण को उत्तराखंड की ग्रीष्म कालीन राजधानी बनाने का वादा किया था।

गैरसैण ग्रीष्मकालीन राजधानी –

सोमवार 8 जून 2020 को ,चमोली जिले के अंतर्गत भराड़ीसैंण ( गैरसैंण ) को आधिकारिक रूप से उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी बन गई। राज्यपाल की मंजूरी के बाद मुख्य सचिव श्री उतपल कुमार सिंह ने इसकी अधिसूचना जारी कर दी।

इससे पहले मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत , ने  4 मार्च 2020 को बजट सत्र के दौरान भराड़ीसैंण ( गैरसैंण  ) को  उत्तराखंड की ग्रीष्म कालीन राजधानी घोषित किया था। बीच मे कोरोना की वजह ,कार्य रुक गया। जैसे ही अनलॉक 1 शुरू हुआ। सरकार ने अधिसूचना जारी कर दी।

अधिसूचना जारी होने पर मुख्यमंत्री जी ने खुशी जाहिर की,उन्होंने कहा, उत्तराखंड को आखिर  जनभावनाओं की राजधानी मिल ही गई। भराड़ीसैंण को आदर्श पर्वतीय राजधानी के रूप में विकसित किया जाएगा। भराड़ीसैंण (  गैरसैंण ) को ई – विधानसभा के रूप में विकसित किया जाएगा।

उत्तराखंड दो राजधानी वाला देश का पांचवा राज्य है।

गैरसैण मंडल –

तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जी ने 5 मार्च 2021 को गैरसैंण को मंडल बनाने की घोषणा कर दी। यह घोषणा 2021 के बजट सत्र के दौरान की गई। गैरसैण को कनिशनरी बनाया गया। उत्तराखंड में पहले 2 मंडल थे , गढ़वाल मंडल और कुमाऊ मंडल । इस घोषणा के बाद उत्तराखंड में 3 मंडल बन गए।

  • गढ़वाल मंडल
  • कुमाऊ मंडल
  • गैरसैंण मंडल

गैरसैंण मंडल में जिले -गैरसैंण मंडल में निम्न 4 जिले शामिल किए गए थे।

  • चमोली
  • अल्मोड़ा
  • बागेश्वर
  • रूद्रप्रयाग

गैरसैंण मंडल की मुख्य बातें –

गैरसैंण कमिश्नरी में कमिश्नर और DIG स्तर का आदमी बैठेगा। गैरसैण के सुनियोजित नगरीय विकास के लिए टेंडर प्रकिया शुरू हो जाएगी। भराड़ीसैंण बनेगी फल पट्टी। लोगो को सहूलियत मिलेगी ,क्षेत्र का विकास होगा।

गैरसैंण

गैरसैण मंडल का विरोध –

सरकार के इस फ़ैसले का काफी जन विरोध हुआ।  लोगों ने हस्ताक्षर आंदोलन और कई प्रकार  के आंदोलन चलाए। गैरसैंण मंडल का सबसे ज्यादा विरोध कुमाऊं मंडल में हवा। राजनैतिक विश्लेषकों के अनुसार तत्कालीन मुख्यमंत्री जी को इस फैसले की वजह से अपने पद से हाथ धोना पड़ा था।

गैरसैण मंडल पर रोक –

मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रवात जी के इस्तीफे के बाद श्री तीरथ सिंह रावत जी ने पदभार सम्हाला। और तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री तीरथ सिंह रावत ने , त्रिवेंद्र सरकार के विवादित फैसले गैरसैण मंडल पर शुक्रवार 9 अप्रैल 2021 को रोक लगा दी।

गैरसैण, गैरसैंण केवल 1 माह का मंडल बना । अब फिर से उत्तराखंड में केवल 2 ही मंडल रह गए। गढ़वाल मंडल और कुमाऊँ मंडल।

गैरसैण पर कविता-

प्रसिद्ध कवि दयाल पांडे जी ने गैरसैंण पर कुमाउनी में एक कविता लिखी है। जो इस प्रकार है।

अन्यारपट्ट रै नि सकूँ जल्दी ब्याली रात,
राजधानी जिक्र जब आलो, होलि गैरसैण की बात,

दीक्षित आयोग कुलै जाल, सरकार लै पलटि है जाल,
उत्तराखंडी मुनव उठाला – ह्वै जाला सब साथ,
राजधानी जिक्र जब आलो होलि गैरसैंण की बात,

गौं-गौं बै आवाज़ उठी गै, अन्यायी अब भौती है गे,
जनुल राजधानी नाम सुझाछी, उन लै बागियुं का सांथ,
राजधानी जिक्र…….

आंदोलनकारी उसीकी रैगिन, दमनकारी गद्दी में भैगिन,
अब ज्यादे दिन नि चलल, यो गोर्खियुं जस राज,
राजधानी जिक्र……..

सालूं में 5 बदल गिन, बात ग्वै हैंत उसीकी राइ गिन,
उन लोग लै नि नजर उनै जेल पैर यो ताज,
राजधानी जिक्र जब…..

विकास हुन जरुरी छू, गैरसैण बनुनी छू,
वचन दयुछ म्योर पहाड़ और उठून हाथ,
राजधानी जिक्र जब आलो होलि गैरसैण की बात..

हमारे फेसबुक पेज पर जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

Follow us on Google News Follow us on WhatsApp Channel
Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
RELATED ARTICLES
spot_img
Amazon

Most Popular

Recent Comments