Friday, April 18, 2025
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कत्यूरी राजा धामदेव ने हराया था सागर गढ़ तल युद्ध मे मुस्लिम आक्रांताओं को

कत्यूरी राजा प्रीतम देव और उनकी महान रानी जिया रानी ने खूब नाथ सिद्धों की सेवा और धाम यात्रायें की। जिसके फलस्वरूप उन्हें एक प्रतापी और वीर पुत्र की प्राप्ति हुई। राजा प्रीतम देव और रानी जिया ने उनका नाम धामदेव रखा। भविष्य में धामदेव कत्यूर वंश के सबसे प्रतापी और महान राजा हुए। आज भी जनता उनकी न्यायप्रियता को याद करती है। धामदेव ने अपने अल्पकालिक जीवन में कई युद्ध जीते। इन्ही युद्धों में से राजा धामदेव के सागर गढ़ ताल के युद्ध को विशेष याद किया जाता है।

इतिहासकारो के अनुसार राजा धामदेव ने इस युद्ध में तुर्क आक्रांताओ को पराजित किया था। जिसे आज समुवा मसाण के नाम से जानते हैं। समुवा के साथ दो और थे ,जिनका नाम नकुवा और और बिछुवा था। इतिहासकारों के मुताबिक समुवा का नाम था सैयद दुस्सादात सैयद सलीम और नकुवा। हालांकि नकुवा को बेतालघाट क्षेत्र में भगवान् शिव के गण के रूप में पूजते हैं। इन दोनों के अलवा इनके साथ एक और था जिसका नाम बिछुवा था। उस समय भारत में फिरोजशाह तुगलक का राज था। फिरोजशाह तुगलक ने समुवा उर्फ़ सैयद दुस्सादात सैयद सलीम को शानपुर ( साहरनपुर ) की जिम्मेदारी दी थी। समुवा बेहद क्रूर तुर्क आक्रांता था।

सागर गढ़ ताल सोन नदी और रामगंगा नदी के संगम पर कालागढ़ क्षेत्र को कहा जाता था। प्रसिद्ध इतिहासकार डा रणवीर सिंह चौहान के अनुसार सागरगढ़ दो सौ फ़ीट लम्बा और दो सौ फ़ीट चौड़ा एक टापू पर बसा गढ़ था। यह गढ़ जितना सुन्दर था उतना ही भयानक भी था। इसे दूधिया चौड़ नकुवा ताल के नाम से भी जानते हैं। कहते हैं यहाँ से एक सुरंग रानीबाग तक बनी है। भारत में फिरोजशाह तुगलक के आक्रमण के समय कत्यूरों के हाथ से यह गढ़ निकल गया था। इस क्षेत्र में फिरोजशाह तुगलक प्रतिनिधि के रूप में समुवा ,नकुवा ,बिछुवा रहते थे। उनका इस क्षेत्र में आतंक था। समुवा स्त्रियों का अपहरण करके सागर गढ़ ताल में चला जाता था। और भाभर क्षेत्र से पशुधन ,अन्य कीमती वस्तुवें लूट लेता था।

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यह बात कत्यूरी राजा प्रीतम देव को भी ज्ञात थी। और उनकी रानियों को भी। प्रीतम देव की रानियाँ ,जिया रानी के पुत्र धामदेव से ईर्ष्या भाव रखती थी। उन्हें धामदेव को अपने मार्ग से हटाने का यह उचित अवसर लगा। वे राजा प्रीतमदेव को धामदेव को सागरगढ़ ताल जाने के लिए भड़काने लगी। राजपाट  बटवारे में रानीबाग से सागरगढ़ तक का भाग जिया रानी को दिलवा दिया। और राजा प्रीतम देव को उल्टी पट्टी पढ़कर धामदेव को मौत के गढ़ सागर गढ़ में भेज दिया। इधर न्यायप्रिय रानी जिया  ने इस समस्या के समाधान के लिए ,अपने गुरु के आदेश पर नौ लाख कत्यूरों की सेना को पुत्र धामदेव के साथ भेज दिया। और अपनी बड़ी बहन के पुत्र राजा गोरिया ( ग्वेल देवता )  ,अपने मायके के वीर भड़ भीमा कठैत ,पामा कठैत ,नाथ सिद्ध योद्धा नरसिंग ,और राजनर्तकी  छमना पातर का पुत्र बिजुला नैक और निसंग महर जैसे महायोद्धाओं के दल को धामदेव के साथ सागर गढ़ भेज दिया।

राजा धामदेव
राजा धामदेव

नौ लाख कत्यूरों  और महायोद्धाओं ने सागर गढ़ ताल को घेर लिया। तभी धामदेव को राजा प्रीतमदेव की बीमारी का समाचार मिला। अपनी सेना को सागर गढ़ घेरे रखने का आदेश देकर वापस राज्य में आये । इधर राजा प्रीतम देव गुजर गए । दुष्ट रानियों को सबक सिखाकर लखनपुर की गद्दी अपने नाम कर वापस आये।

कत्यूरों की भारी भरकम लाव लश्कर देख समुवा मशाण और उसके साथी सागर ताल गढ़ के अंदर तहखानों में छिप गए । तहखानों के अंदर भयंकर युद्ध शुरू हो गया। कटारे गूंज उठी ! समुवा मसाण मारा गया। बिछुआ मसाण कम्बल ओढ़ के भाग रहा था। धामदेव ने उसे बंदी बना लिया। शायद इसीलिए कत्यूरी जागर में कम्बल ओढ़ के आना प्रतिबंधित होता है।

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नकुवा क्षमा याचना करते हुए धामदेव के चरणों मे गिर गया । उन्होंने उसे माफ कर खैरना -बेतालघाट वाला क्षेत्र में क्षेत्रपाल बना दिया। मगर बाद में फिर वो अपनी चाल में आ गया। फिर उत्पात मचाने लगा । तब न्यायकारी राजा गोरिया ने उसका वध कर दिया । कहते हैं इस युद्ध मे राजा गोरिया का भी एक पावँ आहत हो गया था। जिस कारण वे आज भी एक पावँ पर अवतरण लेते हैं।

सागर तल गढ़ कत्यूरियों की सबसे बड़ी लड़ाइयों में एक थी। इस लड़ाई में तत्कालीन समय के लगभग सभी वीर महायोद्धाओं ने भाग लिया था। आज भी जागरों में धामदेव के पश्वा के साथ समुवा, बिछुवा, नकुवा, छमना, बिजुला नैक आदि के पश्वा भी अवतरित होते हैं। और सागर तल गढ़ युद्ध का दृश्य दोहराते हैं।

संदर्भ – उत्तराखंड के वीर भड / डॉ रणवीर सिंह चौहान व लखनपुर के कत्यूर 

इसी संदर्भ में डॉक्टर हरिश्चंद्र लखेड़ा जी का वीडियो देखिए –

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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