Friday, May 9, 2025
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काले कावा काले घुघुती माला खा ले : घुघुतिया त्यौहार का गीत व अर्थ

काले कावा काले घुघुती माला खा ले – उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में मकर संक्रांति को घुघुतिया त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। मकर संक्रांति पर कुमाऊं का विशेष पकवान आटे और गुड़ के पाक के घुघुत बनाये जाते है। कौवे के लिए मकर संक्रांति के सारे पकवान के साथ घुघुत अलग निकाल लिए जाते हैं। घुघुतिया पर्व पर कौवों का विशेष महत्व होता है। घुघुतिया के दूसरे दिन बच्चे अपने गले में घुघुतों की माला डाल कर, कौवे के लिए एक कटोरे में अलग से पकवान के साथ घुघुत रख कर, काले कावा काले घुघुती माला खा ले , घुघुतिया त्यौहार के गीत गा कर कौवों को घुघुत खाने के लिए आमंत्रित करते हैं।

काले कावा काले घुघुती माला खाले
काले कावा काले वाला त्यौहार

काले कावा काले वाला त्यौहार के बारे में :

और कौए घुघुत खा कर जाते हैं।आखिर घुघुतिया त्यौहार पर कौवों को क्यों बुलाते हैं? कुमाऊं में घुघुतिया क्यों मनाते है?  इस पर कुमाऊं मंडल में प्रचलित लोक कथा है। कहते हैं पहले कुमाऊं मंडल में घुघुतिया नामक राजा था। एक बार वह बहुत बीमार हो गया था। दवाई से ठीक न होने बाद ज्योतिषाचार्यों ने उसको बताया की उसकी ग्रह दशा में मारक योग चल रहा है।

यदि राजा अपने नाम के आटे और गुड़ से बने पकवान कौवों को खिला दे तो उसकी मारक दशा शांत हो जाएगी। क्योंकि कौवों को काल का प्रतीक माना जाता है। राजा की प्रजा ने मकर संक्रांति के दिन आटे और गुड़ के घुघुत बनाये। दूसरे दिन सुबह सुबह कौओं को घुघुत खिला दिए। तबसे कुमाऊं में मकर संक्रांति के दिन घुघुत बनाये जाते हैं और कौओं को खिलाये जाते हैं।

काले कावा काले घुघुती माला खा ले गीत लिरिक्स :

काले कावा काले। घुघुती मावा खा ले।।
लै कावा लगड़। मीके दे भे बाणों दगड़।।
काले कावा काले। पूस की रोटी माघ ले खाले।
लै कावा भात। मीके दे सुनो थात।।
लै कावा बौड़। मीके दे सुनु घोड़।।
लै कावा ढाल। मीके दे सुनु थाल।।
लै कावा पुरि।। मीके दे सुनु छुरी।।
काले कावा काले घुघुती माला खा ले।।
लै कावा डमरू।। मीके दे सुनु घुंघरू।।
लै कावा पूवा।। मीके दीजे भल भल भुला।।
काले कावा काले। पुसे की रोटी माघ खा ले।।
काले कावा काले। घुघती माला खा ले।

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घुघुतिया त्यौहार के गीत का अर्थ

इस कविता या गीत में छोटे बच्चे कौए से घुघुते और पकवान खाने का निवेदन करते हैं। और बदले में अच्छी -अच्छी चीजें मांगते हैं। काले कौवे हमारे  बनाये हुए घुघुते स्वीकार करो। और हमे अच्छा वरदान देकर जाओ। हे कौए आप पूरी खाओ और मुझे भाई बहिनों का साथ दो। हे कौए आप पौष माह में बना पकवान माघ में खा लो। हे कौए आप चावल खाओ और मुझे खूब सारा सोना दो। हे कौए आप दाल दाल बड़ा खाओ, मुझे सोने का घोडा दे दो। कौए आप आटे की बनी ढाल ले लो, मुझे सोने की थाल दे दो। हे कौए आप आटे का बना डमरू ले लो। मुझे सोने के घुंगरू दे दो।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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