चंपावत कुमाऊं के लोक देवता जागुली-भागुली की कहानी :- उत्तराखंड को देवभूमी कहा जाता है। यहाँ कण कण में देवताओं का वास है। सनातन धर्म के लगभग सभी देवताओं को उत्तराखंड वासी पूजते हैं। हिन्दू धर्म के मूल देवताओ के अलावा उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं में अनेकों लोकदेवी देवताओं को पूजते हैं। इनमें से उत्तराखंड कुमाऊं मंडल के चंपावत जिले की गंगोल पट्टी में खेतीखान के आस -पास के क्षेत्रों में खर्कवाल और ओली आदि ब्राह्मण जातियां जागुली-भागुली नामक लोकदेवताओं की पूजा करते हैं। इनके बारे में एक खास बात बताई जाती है, इनके पूजा स्थल पर गौ और स्त्री को जाना वर्जित होता है। इसके पीछे एक ठोस कारण है,जिसे आगे कहानी में बताएंगे ।
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जागुली-भागुली की प्रचलित लोक कथा :-
चंपावत जिले के गंगोल पट्टी में दो भाई रहते थे, जिनका नाम जगुवा और भगुवा था। वे सुखपूर्वक अपना जीवन यापन कर रहे थे। मगर एक बार उनके जीवन मे अनहोनी घटना घटित हुई, उन पर उनकी कोई गलती से या किसी अन्य कारण से भूतों का प्रकोप हो गया। भूत उन्हें बहुत प्रताड़ित करने लगे। कई उपाय करने के बाद भी उन्हें भूतों से मुक्ति नहीं मिली। तब किसी ने उन्हें भर्त्यावनी (शायद तराई भाभर का कोई क्षेत्र ) जाने का सुझाव दिया। जगुवा भगुवा उस स्थान की ओर चले गए।
वहाँ कई दिन निवास करने के बाद ,एक दिन उन्हें एक झाड़ी में शिवलिंग मिला। शिवलिंग मिलने से उनके अंदर आत्मविश्वास आया और उन्हें लगा शायद महादेव उनके कष्टों का अंत कर देंगे। और उन्हें सच्चे मन से महादेव की पूजा करनी चाहिए। उस शिवलिंग को लेकर वे वापस चंपावत आ गए। वापस आकर उन्होंने शिवलिंग की पूजा शुरू कर दी। भूतों ने उनको फिर परेशान करने की कोशिश की लेकिन , जगुवा भगुवा सच्चे मन से महादेव की पूजा की और उनकी भूतबाधा की समस्या खत्म हो गई।
वे फिर खुशी खुशी अपने गांव में रहने लगे गए। एक दिन जगुवा -भगुवा के साथ एक अनहोनी हो गई। पहाड़ में किसी कार्य हेतु गए दोनो भाई एक विशालकाय शिलाखंड के नीचे दब गए। जब दोनों भाई शिलाखंड के नीचे दबे, तब वहां पर एक गाय और एक स्त्री ने यह दृश्य देख कर भी किसी को नही बताया।
किसी को मदद के लिए नही बुलाया। इस प्रकार चट्टान के नीचे दबने से उनकी मृत्यु हो गई। और उनकी दुर्घटनावश अल्पायु मृत्यु होने के कारण वे दोनों भूत बन गए। लोगों ने उनकी जागुली-भागुली देवता के रूप में पूजा करने लग गए। और गाई -माई ने इनकी मृत्यु के बारे में किसी को नही बताया था, इसलिए गाय और स्त्री का इनके पूजास्थल पर जाना वर्जित है।
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