द्वाराहाट उत्तराखंड के कुमाऊँ मंडल के अल्मोड़ा जिले में स्थित है। इसे सांस्कृतिक नगरी ,वैराट ,उत्तर की द्वारिका भी कहा जाता है। वैसे द्वाराहाट और द्वाराहाट के पास कई दर्शनीय स्थल हैं उसमे से खास ये 3 स्थल देखने लायक हैं।उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में द्वाराहाट से 14km दूरी पर है । दुनागिरी से 5 km दूरी पर कुकुछीना पड़ता है। कुकुछीना से लगभग 4 km का पेेदल पथ तय कर के सुुप्रसिद्ध पाण्डखोली आश्रम पहुुँचा जा सकता है। स्व: बाबा बलवन्त गिरी जी ने आश्रम की स्थापना की थी और महावतार बाबा व लाहिड़ी महाशय जैसे उच्च आध्यात्मिक संतों की तपस्थली भी रहा है।
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द्वाराहाट के पास देखने लायक दुनागिरी-
दुनागिरि मंदिर कुमाऊ के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलो में एक है। दुनागिरी मंदिर के लिए सीढ़ियो से चलकर जाना पड़ता है। और सीढ़िया जहा से शुरू होती वही प्रवेश द्वार से दाहिनी हाथ की ओर है हनुमान जी का मंदिर दुनागिरी मंदिर के दर्शन हेतु आने वाले श्रदालु इसी मार्ग से सीढ़िया चढ़कर दुनागिरी मंदिर पहुचते है। यहा रानीखेत से द्वाराहाट होते हुए भी पहुचा जा सकता है।
यहाँ का मार्ग बहुत सुंदर है पक्की सीढ़िया छोटे छोटे खाली जगह जिसमे लगभग हर उम्र के लोग चल सकते हैं। मंदिर तक पहुचने के लिए करीब 365 सीढ़िया चढ़नी होती है। पूरा मार्ग टीन के छत से ढका हुआ है जिससे श्रद्धालुओं को धूप व बारिश से बचाव हो सके मार्ग में कुछ कुछ दूरी पर आराम करने के लिए सीमेंट व लोहे के बेंच भी बने हुए हैं पूरे मार्ग में हजारों घंटियां लगी हुई है जो दिखने में लगभग एक जैसे है माँ दुनागिरी मंदिर तक पहुचने के लिए लगभग 800 मीटर की दूरी चलकर तय करनी होती है।
रोज चलता है भंडारा –
लगभग दो तिहाई रास्ता तय करने के बाद भंडारा स्थल हैं जहाँ प्रतिदिन सुुुबह 9 बजे साम के 4 बजे तक भंडारे का आयोजन किया जाता है जिससे यहां आने जाने वाले श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण करते है। प्रसाद आदि ग्रहण करने के बाद सभी श्रद्धालु अपने बर्तन स्वयं धोते है , एवं दानपात्र में अपने श्रद्धानुसार भेट चढ़ाते है।
जिससे भंडारे का कार्यक्रम अनवरत चलते रहता इस स्थान पर भी प्रसाद पुष्प खरीदने हेतु कई दुकाने है मंदिर से ठीक नीचे एक ओर गेट है श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए यहां से मंदिर दर्शन जाने के लिए ओर दर्शन कर वापस आने के वालो के लिए दो अलग अलग मार्ग बने हुए बाई ओर लगभग 50 फ़ीट ऊँचा झूला जिसे पार्वती झूला के नाम से भी जाना जाता है।
वैष्णवी रूप में स्थापित है माँ दुनागिरि यहाँ –
दुनागिरी मुख्य मंदिर में कोई मूर्ति नही है। प्रकृतिक रूप से निर्मित सिद्ध पिंडिया माता भगवती पूजी जाती है। दूनागिरि मंदिर में अखंड ज्योति का जलना इस मन्दिर की एक विशेषता है दुनागिरी माता मंदिर में बलि नही चढ़ाई जाती है यहां तक कि मंदिर में भेंट किया जाने वाला नारियल भी मंदिर परिसर में भी नही फोड़ा जाता है। पुराणों उपनिषदों और इतिहास वेदों ने दुनागिरी की पहचान माया महेश्वरी दुर्गा कालिका के रूप में बताई है। द्वाराहाट में स्थापित इस मन्दिर में वैसे तो पूरे वर्ष भर भक्तो की कतार लगी रहती मगर नवरात्र में यहां मा दुर्गा के भक्त दूर दूर से बड़ी बड़ी संख्या में यहां आशीर्वाद लेने आते है।
इतिहास –
इस स्थल के बारे में प्रचलित कथा में यह कहा जाता है कि त्रेता युग मे जब लक्ष्मण को मेघनाथ द्वारा शक्ति लगी थी, तब सुशेन वेद्य ने हनुमानजी से द्रोणाचार्य नाम के पर्वत से संजीवनी बुटी लाने को कहा था। बूटी की पहचान ना होने की वजह से जब हनुमान जी आकाश मार्ग से पूरा द्रोणाचल पर्वत उठाकर ले जा रहे थे तो इस स्थान पर पर्वत का एक छोटा सा टुकड़ा गिर गया। और फिर उसके बाद इस स्थान में दूनागिरि मंदिर का निर्माण किया गया।
एक अन्य मान्यता के अनुसार गुरु द्रोणाचार्य ने इस पर्वत पर तपस्या की थी जिस कारण इसका नाम द्रोणागिरी पड़ा और कालांतर में दुनागिरी हो गया। एक अन्य जानकारी के अनुसार कत्युरी शासक सुधार देव ने सन 1318 ई० में इस मंदिर का पुनः निर्माण करा मंदिर का निर्माण कर के यह मा दुर्गा की मूर्ति स्थापित की यह माँ दूनागिरि मंदिर की एक यह मान्यता भी है जो भी महिला यहां अखंड दीपक जलाकर संतान प्राप्ति के लिए पूजा करती है उसे संतान का सुख प्रदान करती है।