उत्तराखंड के इंटरनेट मीडिया में एक उभरते सितारे के रूप में राहुल कोटियाल ने अपनी प्रतिभा और निडर पत्रकारिता से सभी का ध्यान आकर्षित किया है। उनका जन्म 12 मार्च को हुआ, हालांकि उन्होंने सोशल मीडिया पर जन्म का साल छिपा लिया है। इसलिए हम भी यहाँ उनका जन्म वर्ष अपडेट नहीं कर रहे हैं। पुरानी टिहरी में पले-बढ़े राहुल का बचपन कोटी कॉलोनी में बीता, जहाँ उनके पिता, अधिवक्ता राजेंद्र कोटियाल, प्रैक्टिस करते थे।
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राहुल कोटियाल का प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि –
राहुल का बचपन टिहरी बांध के निर्माण के दौरान कोटी कॉलोनी में गुजरा,। उनके पिता राजेंद्र कोटियाल ने टिहरी के एवज में नई टिहरी में जिला न्यायालय की स्थापना के बाद वहाँ प्रैक्टिस शुरू की। बाद में वे नैनीताल हाईकोर्ट चले गए और राज्य सूचना आयुक्त के रूप में सेवा की, साथ ही देहरादून के पल्टन बाजार में कोर्ट कमिश्नर बने। इस पारिवारिक पृष्ठभूमि ने राहुल में कर्तव्य और मेहनत की भावना को मजबूत किया।
पत्रकारिता में शुरुआत और उड़ान –
नई दिल्ली में अपनी शिक्षा और शुरुआती करियर को निखारते हुए राहुल ने तहलका जैसे प्रतिष्ठित मंच से अपनी पत्रकारिता की नींव रखी। यहाँ से उन्होंने ऊंची उड़ान भरी और देहरादून आकार अपने यूट्यूब चैनल बारामासा की स्थापना की, जो देहरादून से प्रसारित होता है। बारामासा को उत्तराखंड का लल्लनटॉप कहा जाता है, और कई मामलों में उनकी समझ आज तक के पत्रकार सौरभ द्विवेदी से भी गहरी मानी जाती है। उनकी रिपोर्टिंग में गहराई और विचारशीलता है, जो उन्हें अन्य पत्रकारों से अलग करती है।
राहुल की संवाद शैली में गढ़वाली शब्दों और लोकोक्तियों का प्रयोग उनकी शैली को आकर्षक बनाता है। खूब तैयारी के साथ वे प्रश्न पूछते हैं, खासकर उत्तराखंड के मुद्दों पर गहरी समझ के साथ कैमरे के सामने आते हैं। स्थानीय दर्शक उनकी इस शैली से मंत्रमुग्ध होकर जुड़े रहते हैं। रामनाथ गोयनका अवार्ड से सम्मानित होने के बाद, उनकी उत्कृष्टता की पहचान और मजबूत हुई। एक नई दिल्ली रिटर्न के रूप में, उन्होंने साबित किया कि छोटे स्थान से बड़े सपने पूरे किए जा सकते हैं। उनकी मेहनत और चमकदार व्यक्तित्व ने उन्हें असाधारण पत्रकार बनाया और उत्तराखंड की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत बनाया।
निडर पत्रकारिता का उदाहरण –
राहुल कोटियाल की निडरता छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में फर्जी मुठभेड़ के भंडाफोड़ में देखने को मिली। उनकी न्यूजलॉन्ड्री रिपोर्ट ने खुलासा किया कि सैन्य कार्रवाई में मारे गए 15 नक्सलियों में से ज्यादातर आदिवासी थे। इस साहसिक रिपोर्ट के लिए उन्हें मुंबई प्रेस क्लब द्वारा रेड इंक पत्रकारिता पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो मानवाधिकार कैटेगरी में सर्वश्रेष्ठ रिपोर्टिंग के लिए दिया गया। यह सम्मान न केवल राहुल के लिए, बल्कि पूरे उत्तराखंड के लिए गर्व का पल है।
पत्रकारिता का मिशन –
आज जब पत्रकारिता एक बिजनेस बन गई है, राहुल जैसे पत्रकारों ने सरोकार की पत्रकारिता को जिंदा रखा है। उनकी रिपोर्ट्स उत्तराखंड की मूल समस्याओं और पहाड़ के मूल निवासी की आवाज बनती हैं, और उनकी मेहनत ने उन्हें एक अलग मुकाम दिया है। राहुल का सफर छोटे शहर से शुरू होकर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने तक का एक प्रेरक उदाहरण है।
निष्कर्ष –
राहुल कोटियाल की यात्रा उनकी जड़ों से जुड़ाव, निडरता, और प्रतिभा का मिश्रण है। उनकी पत्रकारिता समाज को जागरूक करने का एक मजबूत माध्यम बनी है, और उत्तराखंड की इस शान को सलाम!
नोट : बारामासा पत्रकार राहुल कोटियाल की जीवनी पर आधारित यह लेख उनकी सोशल मीडिया प्रोफाइल और सोशल मीडिया और प्रिंट मीडिया पर उनके बारे में छपे लेखों के आधार पर संकलित किया गया है।
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