Friday, November 22, 2024
Homeमंदिरवंशी नारायण मंदिर- रक्षाबंधन त्यौहार से जुड़ा है इस मंदिर का...

वंशी नारायण मंदिर- रक्षाबंधन त्यौहार से जुड़ा है इस मंदिर का पौराणिक इतिहास

यह सर्वविदित है कि उत्तराखंड देवभूमि के नाम से विश्व विख्यात है। और उत्तराखंड में एक से बढ़कर एक देवालय हैं जो अपने आप में अनेकों रहस्य और पौराणिक इतिहास समेटे हुए हैं। आज उत्तराखंड के एक ऐसे मंदिर वंशी नारायण मंदिर के बारे में जानकारी संकलित करने जा रहे हैं ,जिसके बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर के कपाट साल में केवल एक बार रक्षाबंधन के दिन खुलते हैं।

वंशी नारायण मंदिर की स्थिति –

भगवान् विष्णु को समर्पित वंशी नारायण मंदिर गढ़वाल मंडल के चमोली जनपद की उरगम घाटी  के अन्तिम ग्राम बांसा (2080 मी.) से 10 किमी. आगे एक चट्टान के निकट अवस्थित है। यह मंदिर समुद्रतल से 12000 फीट की उचाई पर स्थित है।  बाँसा के लिए बद्रीनाथ मार्ग पर हेलंग से सवना, अमरशहीद, पंचधारा, बड़गिण्डा होते हुए जाया जा सकता है जो कि 20-25 किमी. का पैदल मार्ग है। वर्गाकार गर्भगृह वाले इस मंदिर में भगवान् विष्णु की शंख, चक्र, गदा, पद्म युक्त मूर्ति स्थापित हैं। इसके साथ साथ यहाँ भगवान् शिव की मूर्ति भी स्थापित है। इस मंदिर का निर्माण 6 से 8 वी शताब्दी के बीच का माना जाता है। यह मंदिर कत्यूरी शैली में बना है।

वंशी नारायण मंदिर से जुडी पौराणिक कथा –

पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान् विष्णु ने वामन अवतार धारण कर असुर राजा बलि की परीक्षा लेनी चाही और परीक्षा में तीन पग भूमि की मांग की।  लेकिन उन्होंने अपने दो पग में ही धरती और आसमान को नाप लिया अब तीसरे पग रखने के लिए जगह नहीं बची। तो असुर राजा बलि ने भगवान् से अपने सर में तीसरा पग रखने का आग्रह किया।

अब जब भगवान् विष्णु ने राजा बलि के सर पर तीसरा पग रखा तो , कहते हैं उसे सीधा पाताल लोक धकेल दिया। वे स्वयं भी पाताल लोक चले गए। जब राजा बलि का अहंकार नष्ट हुवा तो भगवान् विष्णु बलि की दानवीरता से खुश होकर बलि से वरदान मांगने को कहा ! तब राजा बलि ने भगवान् विष्णु से कहा कि वे उसके द्वारपाल बनकर पाताल में निवास करें। भगवान् विष्णु तथास्तु बोलकर वहीँ द्वारपाल बनकर रहने लगे।

Best Taxi Services in haldwani

जब भगवान् विष्णु पाताल में रहने लगे तो  धरती लोक और अन्य लोको की व्यवस्था चरमराने लगी। माँ लक्ष्मी उद्विग्न और परेशान रहने लगी तब देवऋषि नारद और अन्य देवताओं के सुझाव पर माँ लक्ष्मी ने श्रावणी पूर्णिमा के दिन राजा बलि के हाथ में रक्षासूत्र बांधा और उपहार स्वरूप राजा बलि से अपने पति श्री हरी विष्णु को पाताल लोक से वचन मुक्त करवा लिया। कहते हैं इसी दिन से रक्षाबंधन की शुरुवात भी हुई। कहते हैं पाताल लोक से वचनमुक्त होने के बाद भगवान विष्णु पाताल लोक से सीधे इस स्थान पर प्रकट हुए थे इसलिए यहाँ वंशी नारायण मंदिर की स्थापना की गई।

श्री शिवप्रसाद  नैथानी लिखते हैं वंशी नारायण मंदिर का निर्माण पांडवों ने इस उद्देश्य से कराया था ,ताकि यहीं से भगवान बद्री केदार के दर्शन हो सके। लेकिन लगातार आने वाली बाधाओं के कारण इसका निर्माण पूरा नहीं हो सका।

वंशी नारायण मंदिर- रक्षाबंधन त्यौहार से जुड़ा है इस मंदिर का पौराणिक इतिहास
vanshi narayan temple open only in Rakshabnadhan

रक्षाबंधन पर वंशी नारायण मंदिर की  है विशेष मान्यता –

पौराणिक कहानी के अनुसार पाताल लोक से वचन मुक्त होने के बाद श्रीहरि इस स्थान पर प्रकट हुए थे।  जैसा कि हमे पता है कि लक्ष्मी माता ने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांध कर उन्हें अपना भाई बनाया और उनसे उपहार स्वरूप या भाई के आशीष स्वरूप अपने पति श्रीहरि विष्णु को वचन मुक्त करवाया, और उस दिन से रक्षाबंधन की शुरुवात हुई। इसलिए उस पौराणिक घटना से जुड़े देवभूमि उत्तराखंड के इस मंदिर की विशेष मान्यता है।देवभूमि उत्तराखंड में स्थित इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यह मंदिर मनुष्यों के लिए साल में केवल बार रक्षाबंधन के दिन खुलता है। साल के बाकि दिन यहाँ देवऋषि नारद भगवान् विष्णु की पूजा करते हैं।

साल में एक बार रक्षाबन्धन के दिन कुवारी कन्यायें और महिलाएं वंशी नारायण मंदिर में भगवान् विष्णु को रक्षासूत्र बांधती हैं। और भगवान विष्णु की पूजा करती हैं। कलगोठ गांव के निवासियों के प्रत्येक घर से माखन आता है ,जिसका भोग भगवान् नारायण को लगाया जाता है।

अब परम्पराओं में बदलाव हो गया पुरे 6 माह खुलते हैं कपाट –

बिगत कुछ वर्षो से क्षेत्रवासियों और उस क्षेत्र के पुरोहितों के आपसी मंत्रणा के बाद वंशी नारायण मंदिर के कपाट बद्री नारायण धाम के कपाटों के साथ खुलने शुरू हो गए हैं। और बद्रीनाथ के कपाट बंद होने की तिथि में इस मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।  लेकिन विशेष पूजा केवल रक्षाबंधन के दिन ही होती है। बाकि समय निकट क्षेत्र के क्षेत्रवासी समय समय पर मंदिर की देख रेख करते रहते हैं।

इन्हे भी पढ़े –

बग्वाल मेला उत्तराखंड | देवीधुरा बग्वाल मेला का इतिहास

फ्यूंलानारायण मंदिर – देश का एकमात्र मंदिर जहाँ महिला पुजारी ही करती है भगवान् नारायण का शृंगार।

देवभूमि दर्शन के व्हाट्सप ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

Follow us on Google News Follow us on WhatsApp Channel
Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
RELATED ARTICLES
spot_img
Amazon

Most Popular

Recent Comments