हम इस लेख में उत्तराखंड की स्थापना पर निबंध का संकलन कर रहें हैं। उम्मीद है हमारा यह संकलन विद्यार्थी मित्रों के लिए सहायक होगा। हिमराज हिमालय के अंचल में फैला हुवा उत्तराखंड प्रदेश अपने गगन चुम्बी हिम शिखरों और रमणीक उपत्यकाओं के कारण प्राचीन काल से ही प्रकृति प्रेमियों ,पवित्र तीर्थस्थलों ,शांति एवं तपसाधना के लिए प्रसिद्ध रहा है। उत्तराखंड नवंबर 2000 से पहले यह उत्तर प्रदेश का एक मंडलीय भाग था। जो 09 नवंबर 2000 को भारत के सत्ताइसवें और हिमालयी क्षेत्रों के ग्यारहवे राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। और 09 नवंबर 2025 को हम उत्तराखंड स्थापना की रजत जयंती के रूप में माना रहे हैं।
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उत्तराखंड की स्थापना –
आजादी के बाद उत्तराखंड के लोगों को धीरे धीरे यह समझ में आने लगी कि हम समाजिक और सांस्कृतिक रूप से पिछड़ते जा रहें हैं ,और लगातार उपेक्षा के शिकार हो रहें हैं। आजादी के बाद पहाड़ के लोगों ने एक पृथक राज्य के गठन की मांग की। इस मांग ने सत्तर और अस्सी के दशक में जोर पकड़ा और नब्बे के दशक में इस मांग ने विशाल जनांदोलन का रूप ले लिया।
उत्तराखंड की स्थापना के लिए उपजे इस जनांदोलन में महिलाओं और छात्रों की विशेष भूमिका रही। हालाँकि आंदोलन शांतिपूर्ण था फिर भी ,खटीमा ,मसूरी ,रामपुर तिराहा और कई स्थानों पर भीषण गोली कांड हुए। कई लोग शहीद हुए। महिलाओं के साथ मुजफ्फर नगर में दुराचार भी हुए। लेकिन उत्तराखंड के लोगों का यह बलिदान व्यर्थ नहीं गया, सरकार ने अंततः पृथक पर्वतीय राज्य की मांग को स्वीकार किया। 09 नवंबर 2000 को देश 27 वे राज्य उत्तराखंड की स्थापना हुई।
उत्तराखंड का नामकरण और संक्षिप्त पौराणिक परिचय –
पौराणिक काल में उत्तराखंड को उनकी क्षेत्रीय स्थिति के अनुसार ,हिमवतखंड , या मानसखंड और केदार खंड के नाम से जाना जाता था। इसमें पूर्वी भाग पाशुपत क्षेत्र (नेपाल) का समावेश होता था। हिमवत खंड का मध्यवर्ती क्षेत्र कुमाऊं को जिसमे मानसरोवर – कैलाश का समावेश होता था ,इस भाग को मानसखंड कहते थे।इसके अलावा हिमवंत खंड का पक्षिमी क्षेत्र ( गढ़वाल ) जिसमे बद्री केदार का समावेश होता था,इस भाग को केदारखंड का नाम दिया था। इसके बाद इस क्षेत्र पर प्रकाश डालने वाले उत्तरमध्यकालीन पुराण ” स्कंदपुराण ” के केदार मानसखण्डो में इसे चार प्रमुख भागों में बता था।
- हिमाद्रि खंड
- मानसखंड
- कैलासखण्ड
- केदारखंड
कालान्तर में इस सम्पूर्ण क्षेत्र को प्रजातीय आधिपत्य के आधार पर पहले किरातमंडल और बाद में खसमण्डल नाम दे दिया गया।
उत्तराखंड का नामकरण पर आधारित पौराणिक कथा –
उत्तराखंड के नामकरण के विषय में एक पौराणिक कहानी का आधार लिया जाता है। बताया जाता है कि उत्तराखंड का नामकरण महाभारत काल से जुड़ा है। तदनुसार राजा विराट की राजधानी कत्यूरकालीन वैराठ थी। राजा विराट के द्वारा अपनी पुत्री उत्तरा का विवाह अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु के साथ किया गया और उन्होंने अपनी पुत्री उत्तरा को हिमालय का यह राज्य दहेज़ में दे दिया और इसे उत्तरा का स्त्रीधन माने जाने के कारण इसका नाम उत्तराखंड (उत्तरा का दायभाग ) पड़ गया।
उत्तराँचल से उत्तराखंड का नामकरण और इसके राज्य प्रतीक –
09 नवंबर 2000 को जब इस राज्य का गठन हुवा था ,तब इस राज्य का नाम उत्तराँचल रखा गया लेकिन बाद में 1 जनवरी 2007 को जनता की मांग और इसके पौराणिक इतिहास के आधार पर इसका नाम उत्तरांचल से फिर उत्तराखंड कर दिया गया। उत्तराखंड के राज्य प्रतीकों में – कस्तूरी मृग उत्तराखंड का राज्य पशु, मोनाल -राज्य पक्षी ,बुरांश -राज्य वृक्ष ,ब्रह्मकमल -राजकीय फूल घोषित किया गया है।
भौगोलिक स्थिति एवं विस्तार –
उत्तराखंड का विस्तार 28 °43 ‘ उत्तर से 31 °27 उत्तरी अक्षांश तथा 77 °34’पूर्व से 81 ° 02 ‘ पूर्वी देशान्तर के मध्य है। इसके पूर्व में नेपाल उत्तर हिमालय पार तिब्बत ( चीन ) , पक्षिम में हिमांचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तरप्रदेश स्थित है।
उत्तराखंड में कुल 13 जिले है। इनमे से सात जिले गढ़वाल मंडल और छह जिले कुमाऊं मंडल में स्थित हैं। उत्तराखंड का क्षेत्रफल 53,483 वर्ग किलोमीटर है। और क्षेत्र की दृष्टि से उत्तराखंड का देश में 19वा स्थान हैं। इसकी चौड़ाई (उत्तर से दक्षिण ) 320 किलोमीटर तथा लम्बाई ( पूर्व से पक्षिम ) 358 किलोमीटर है।
भाषा,धर्म व् संस्कृति –
यहां हिंदी के साथ कुमाउनी ,गढ़वाली ,जौनसारी भाषा मुख्यतः बोली जाती है। उत्तराखंड की राज्य भाषा संस्कृत है। उत्तराखंड मुख्यतः कुमाउनी गढ़वाली और जौनसारी संस्कृति की जनसख्या बहुल राज्य है। उत्तराखंड एक पर्वतीय राज्य है। और पर्वतीय निवासी मूलतः प्रकृति के उपासक होते है। उत्तराखंड में अधिकांश लोग सनातन धर्म का पालन करते हैं। हलाकि सनातन पूजा पद्धति के साथ यहाँ के निवासी अपने लोकदेवताओं की पूजा अर्चना भी पूर्ण श्रद्धा से करते हैं।
उत्तराखंड का शाशन प्रशाशन और आय का प्रमुख श्रोत –
यह एक सदनात्मक विधानसभा वाला राज्य है। यहाँ राजयपाल ,मुख्यमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद कार्यरत होती है। उत्तराखंड की अस्थाई और शीतकालीन राजधानी देहरादून है। और गैरसैण उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित की गई है। उत्तराखंड का उच्च न्यायालय नैनीताल में स्थित है। चार धाम यात्रा और पर्यटन उत्तराखंड की आय का प्रमुख श्रोत है।
उत्तराखंड की जलवायु –
यहाँ की धरातलीय असमानताओं के आधार पर ,उत्तराखंड की जलवायु की दशाओं में भी अंतर पाया जाता है। फलतः यहाँ की जलवायु में ध्रुवीय प्रदेशों से लेकर ,विषुवत रेखीय प्रदेशो तक विशेषता पाई जाती है। उत्तराखंड की तराई भागों में उष्ण कटिबंधीय ,लघु हिमालयी क्षेत्रों में शीतोष्ण कटिबंधीय ,मध्य हिमालयी क्षेत्रों में शीतकटिबन्धीय और महाहिमालय क्षेत्र में ध्रुवीय जलवायु पायी जाती है।
उत्तराखंड स्थापना की रजत जयंती:
09 नवंबर 2025 को उत्तराखंड को 25 वर्ष पूरे हो चुके हैं , इसलिए इस वर्ष को उत्तराखंड सरकार और उत्तराखंड के निवासी रजत जयंती वर्ष के रूप में मना रहे हैं। जहां एक तरफ सरकार अपनी उपलब्धियों का वर्णन करते हुए उत्तराखंड को 25 वर्षो में एक नई ऊंचाई पर पहुंचाने या विगत 25 वर्षों में अच्छा विकास का दावा कर रही है, वही जनता के कुछ वर्गों के लोग सरकार का साथ भी दे रहे हैं । लेकिन अधिकतर जनता ऐसी है जिसे 25 वर्षो के सफर में केवल वादे मिले हैं और कुछ नही।
उत्तराखंड की जनता ने उत्तराखंड में पिछले 25 वर्षों में उत्तराखंड के बदलते मुख्यमंत्री, प्राकृतिक आपदाएं, बेरोजगारी, उच्चतम सीमा तक भ्रष्टाचार और बदहाल स्वास्थ व्यवस्था देखी है। कुछ अच्छा देखा है तो थोड़ा बहुत चार धामों का प्रचार जिसमे अव्यवस्था के चलते कभी स्थानीय लोगों को तो कभी, यात्रियों को परेशानी हुई है।
उत्तराखंड के शहरों में सिडकुल ने बेरोजगारी को थोड़ा कम किया है। जो एक अच्छा संकेत है और आज उत्तराखंड के अधिकतर युवा स्वरोजगार की तरफ मुड़ रहे हैं या स्वरोजगार की सोच रहे हैं यह भी एक सकारात्मक पहलू है।
उत्तराखंड स्थापना की रजत जयंती वर्ष 2025, राज्य के संघर्ष, शहादत और विकास यात्रा को स्मरण करने का ऐतिहासिक अवसर है। 9 नवंबर 2000 को गठन के बाद उत्तराखंड ने 25 वर्षों में कई उतार-चढ़ाव, राजनीतिक बदलाव, सामाजिक चुनौतियां और विकास के ऐतिहासिक पल देखे हैं। इस रजत जयंती वर्ष 2025 के आयोजन में राज्य के अतीत, वर्तमान और भविष्य पर विचार हो रहा है, जहाँ जनता अपने अनुभव, उपलब्धियाँ और अधूरे सपनों के साथ एक नई दिशा की उम्मीद लिए खड़ी है। रजत जयंती न केवल उत्सव, बल्कि राज्य विकास के आत्ममंथन, नए संकल्प और उत्तराखंड को सर्वश्रेष्ठ राज्य बनाने की प्रेरणा का संदेश लेकर आया है।
उपसंहार –
उत्तराखंड भारत का एक ऐसा प्रदेश है ,जो वैदिककाल से ही भारतीय जीवन में अपनी एक विशिष्ट पहचान रखता है। और आधुनिक काल में भी अपने गगनचुम्बी हिमशिखरों ,वैविध्यपूर्ण अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य एवं पवित्र चार धामों जनजातियों एवं जनजातियेतर सांस्कृतिक विविधताओं के कारण भारतीय एवं भारतीयेतर जगत का आकर्षण केंद्र बना हुवा है। इसकी सदानीरा नदिया ,घने चीड़ ,बांज की घाटियां ,रंग बिरंगे फलो से सुसज्जित बाग़ बगीचे ,मखमली घास युक्त बुग्याल ,जीव जंतु सभी मोहक एवं आकर्षक हैं।
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