Friday, March 7, 2025
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उत्तराखंड के मूल निवासी कौन हैं? पहाड़ी लोग कहां से आए और कैसे बसे ?

उत्तराखंड की भूमि न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहाँ की प्राचीन जातीय और सांस्कृतिक विरासत भी अत्यंत समृद्ध है। उत्तराखंड के मूल निवासियों की बात करें तो यहाँ खस और किरात जातियों का प्रमुख स्थान रहा है। ये जातियाँ इस क्षेत्र में प्राचीन काल से निवास कर रही थीं और इनका इतिहास हजारों वर्षों पुराना है।

उत्तराखंड के मूल निवासी : खस और किरात –

1. किरात जाति – हिमालय के प्राचीन निवासी –

किरात जाति उत्तराखंड में आर्यों के आगमन से पहले ही यहाँ बस चुकी थी। ये लोग मुख्य रूप से नेपाल, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, जम्मू और हिमाचल प्रदेश के विभिन्न भागों में फैले हुए थे।

मुख्य पहचान :किरातों की विशिष्ट पहचान थी – चपटा मुख, चौड़ा माथा, छोटी दाढ़ी-मूँछ और चपटी नाक ।
विस्तार : इनका प्रभाव पूर्वी हिमालय से लेकर पश्चिमी भारत तक था।
किरातों की पूजा: ये शिव को प्रमुख देवता मानते थे और हिमालय के ऊँचे क्षेत्रों में रहते थे। महाभारत में उल्लेख मिलता है कि भगवान शिव ने अर्जुन को किरात रूप में दर्शन दिए थे, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह जाति हिमालय में काफी पहले से थी।
आज के अवशेष: वर्तमान में असम के नागा, लिंबू, मगर, गोरखा और नेपाल की तराई में रहने वाले लोग किरातों के वंशज माने जाते हैं।

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2. खस जाति – सूर्य उपासक योद्धा समुदाय :

खस जाति को उत्तराखंड के वास्तविक मूल निवासी माना जाता है। ये जाति मुख्य रूप से दर्दिस्तान (पाकिस्तान और अफगानिस्तान का क्षेत्र), ईरान और मध्य एशिया से आई थी।

  1. धार्मिक मान्यताएँ: खस लोग सुरीयश यानी सूर्य देवता, महेश्वर (शिव), मरुतरा (मरुत) और कशशु देवता की पूजा करते थे। हिमाचल और जौनसार में खस महासू के नाम से, चंबा के गढ़ी मणीसदेवा के नाम से और समस्त भारत के हिंदू ‘महेश्वर’ के नाम से करते थे।कश-खस जाति का वह ‘शू’ शब्द हिमालय की भाषाओं में सैकड़ों शब्दों में मिलता है!
  2. खस जाति के प्रमाण : आज भी उत्तराखंड में कस्बा, कस्याली, कसमानी, कसकोट, अस्कोट, कसवाल, खसवाड़ी जैसे गाँवों के नाम खस जाति से जुड़े हुए हैं। खस जाति के लोग मुख्य रूप से कुलिंद, कंलिंगा और कुषाणों से जुड़े थे, और इन्हीं में से प्रसिद्ध सम्राट कनिष्क हुआ था।
  3. खस जाति की विशेषताएँ : यह जाति योद्धा प्रवृत्ति की थी और बाद में इन्होंने हिंदू समाज में क्षत्रिय वर्ग के रूप में स्थान प्राप्त किया।वर्तमान में उत्तराखंड के ब्राह्मण, राजपूत और अन्य पहाड़ी समुदायों की उत्पत्ति खस जाति से मानी जाती है।

उत्तराखंड में पहाड़ी समुदायों का बसना :

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उत्तराखंड में पहाड़ियों का बसना धीरे-धीरे हुआ। पहले यहाँ किरातों का निवास था , लेकिन बाद में खस और अन्य आर्य समुदायों ने इस क्षेत्र में आकर शासन स्थापित किया।

1. खस और किरातों का संघर्ष एवं समन्वय :

खसों के आगमन के बाद उन्होंने किरातों के तराई क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। हालांकि,किरात और खस दोनों ने एक-दूसरे की संस्कृति को अपनाया , जिससे एक नई पारंपरिक पहाड़ी संस्कृति विकसित हुई। इस मिश्रण से उत्तराखंड की अनूठी संस्कृति का जन्म हुआ, जिसमें महादेव, महासू देवता, नंदा देवी, और अन्य पहाड़ी देवी-देवताओं की पूजा की जाने लगी।

2. आर्यों का प्रभाव और हिंदू धर्म का प्रसार :

खस जाति ने आर्यों के आगमन के बाद हिंदू धर्म को अपना लिया और उत्तराखंड को धार्मिक तीर्थस्थल के रूप में विकसित किया। महाभारत, विष्णु पुराण, मार्कंडेय पुराण, मनुस्मृति और राजतरंगिणी में भी खसों और किरातों का उल्लेख मिलता है। धीरे-धीरे गढ़वाल और कुमाऊं के छोटे-छोटे राज्य बने , जिनमें कत्यूर, चंद वंश और पंवार वंश का विशेष योगदान रहा।

उत्तराखंड की परंपराएँ और सांस्कृतिक धरोहर :

उत्तराखंड की समृद्ध संस्कृति का आधार किरात और खस जातियों की परंपराएँ रही हैं। आज भी पहाड़ों में महासू देवता, गोलू देवता, नंदा देवी, भोलानाथ, और नागराजा जैसे देवी-देवताओं की पूजा होती है, जो इन प्राचीन जातियों के धार्मिक विश्वासों को दर्शाती हैं।

खस और किरातों का प्रभाव आज भी दिखता है :

भाषा :उत्तराखंड की कुमाऊनी और गढ़वाली भाषाओं में आज भी खस और किरात शब्दों के अवशेष मिलते हैं
त्योहार : बैठकी होली, खड़ी होली, हिलजात्रा, और भिटौली जैसे लोक उत्सव इन्हीं जातियों की परंपराओं से विकसित हुए हैं।
रहन-सहन : पहाड़ी लोगों का खान-पान, रहन-सहन और वास्तुकला भी प्राचीन किरात और खस परंपराओं से जुड़ा हुआ है।

निष्कर्ष : कौन हैं उत्तराखंड के असली मूल निवासी ?

अगर इतिहास के पन्नों को देखें तो उत्तराखंड के सबसे प्राचीन निवासी किरात और खस जातियाँ हैं ।किरात यहाँ आर्यों के आगमन से पहले से ही बसे हुए थे। खस जाति ने यहाँ पश्चिम और उत्तर से आकर शासन स्थापित किया । समय के साथ ये जातियाँ आर्य संस्कृति में समाहित हो गईं और आज के पहाड़ी समुदायों का निर्माण हुआ।

उत्तराखंड की परंपराएँ, देवी-देवता, मंदिर, और त्योहार इन्हीं मूल जातियों के मिश्रण से विकसित हुए हैं। इस प्रकार, उत्तराखंड की संस्कृति हजारों साल पुरानी विरासत को संजोए हुए है, जो इसे एक अद्वितीय और ऐतिहासिक भूमि बनाती है।

संदर्भ : उत्तराखंड में आध्यात्मिक पर्यटन मंदिर एवं तीर्थ पुस्तक डॉक्टर सरिता शाह। 

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
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