Home संस्कृति उत्तराखंड की लोककथाएँ सिदुवा विदुवा की लोककथा , उत्तराखंड की लोककथा।

सिदुवा विदुवा की लोककथा , उत्तराखंड की लोककथा।

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उत्तराखंड को देव भूमि कहा जाता है। यहाँ प्राचीन काल मे बहुत सी पुण्य आत्माओं ने जन्म लिया। जिनको वर्तमान में देवो के रूप में पूजा जाता है। आज हम आपको उत्तराखंड की लोक कथाओं में से ,गढ़वाल के दो प्रसिद्ध भाई सिदुवा बिदुआ की और गंगू रमोला की कहानी बताएंगे।

उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल क्षेत्र में एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है।  सेममुखेम नागराजा जिसका निर्माण प्रसिद्ध नागवंशी सामन्त गंगू रमोला  ने कराया था। यह मंदिर सेममुखेम नागराजा , नागदेवता एवं भगवान कृष्ण को समर्पित है।

गंगू रमोला सिदुवा बिदुआ का पिता था। वो रामोलिहाट का जमीदार था। उसके पास बहुत सारी जमीन जायजाद और पशुधन था। कुछ लोक कथाओं  में उसकी पत्नी का नाम मैनावती बताया है। तथा जागर कथाओ में उसकी इजुला बिजुला नामक दो पत्नियों के जिक्र मिलता है।

और गंगू रामोल के 2 वीर पुत्र सिदुवा बिदुआ का जिक्र  मिलता है। गंगू रमोला एक नास्तिक और हटी पुरुष था। भगवान कृष्ण द्वारा गंगू की परीक्षा और रामोलिहाट कि राक्षशी का वध करने के बाद गंगू रमोला कृष्ण भक्त बना और उसने सेममुखेम नागराजा तीर्थ की स्थापना की। कथाओं में गंगू रमोला की बहुत विस्तृत कहानी है। यहाँ भूमिका बांधने के लिए हमने संक्षेप में गंगू रमोला का परिचय दिया है। हम आपको यहाँ गंगू रमोला के दो पुत्रों की कथा बताने जा रहे हैं, जिनका नाम सिदुवा बिदुआ है।

उत्तराखंड जागर का अंश “इजुला के कुमार,बिजुला के लाडिले, श्रीकृष्ण के कृपा पात्र बद्रीनाथ के राजा, दो भाई सिदुवा बिदुआ तुम्हारा ध्यान जगे। बाइस बहिन परियो का ध्यान जगे।

सिदुवा बिदुवा का जन्म | उत्तराखंड की लोक कथाएं

गंगू रमोला जब भगवान कृष्ण का भक्त बन गया तो उसे 12 वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करने का, तथा घर से दूर रहने का आदेश था। वो घर से अलग रह रहा था। उसकी दोनो पत्नियां उसकी आवश्यकता की चीजें उसे दे जाती थी। एक बार गंगू रमोला अपनी दोनों बीबियों के साथ बैठा था, तभी वहां से एक बाबा गुजरे। उन्होंने गंगू का माथा देख कर बताया कि गंगू की किश्मत में दो पुत्रों का योग है। तभी गंगू हसने लगा ,बोला महाराज मैं तो, 12 ब्रह्मचर्य में हूँ, भला पुत्र कैसे होंगे ?

साधु ने दो मुठी कोणी ( पहाड़ी अनाज) ‘गंगू की दोनो पत्नीयों को दिया। बाद में छुप कर छोटी रानी बिजुला ने गंगू रमोला को बिना बताए , अपनी कोणी खा ली। बिजुला गर्भवती हो गई। छह महीने बीत गए बिजुला कभी कभी गंगू के पास जाती थी, 6 माह के बाद उसने गंगू के पास जाना बंद कर दिया। अब नो माह से ऊपर का समय हो गया, गंगू को खाना देने बडी रानी ही जा रही थी।

एक दिन गंगू रमोला पूछ बैठा, ” इजुला आजकल कई महीनों से रोज खाना देने तुम ही आ रही हो। बिजुला कहाँ है ? इजुला का सौतेला ढाह ,उसने सोचा यह सही मौका है, बिजुला को फसाने के लिए। उसने बोल दिया। ” मेरे प्यारे स्वामी इधर आप ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे हो, उधर आप की प्यारी रानी गर्भवती है।” गंगू रमोला सोच में पड़ गया, उसने कहा,  ” ठीक है, कल से बिजुला मेरे लिए खाना लेकर आएगी उसको बता देना।”

रानी इजुला रामोलिहाट पहुँची , उसने बिजुला को कहा कि कल सुबह तुम स्वामी के लिए भोजन लेकर उनकी कुटीर पर जाओगी। वो तुमको देखना, चाहते हैं। ये उनका आदेश है। बिजुला ये आदेश सुन कर रोने लगी, वो परेशान हो गई कि अब क्या करूँ ? उसने परेशान होकर फांसी लगाकर आत्महत्या करने का फैसला कर लिया। जैसे ही वो कुंजनी पाटल फाँसी लगाने के लिए पहुँची , तब अचानक रानी को प्रसव पीड़ा होने लगी।

Uttrakhand story
Sidha biduwa ka janm

रानी बिजुला से प्रातः सुबह एक झाड़ी की ओट पर 2 पुत्रों को जन्म दे दिया। उस समय वहाँ एक अद्भुत चमत्कार हुवा, रानी के दोनों बेटे पैदा होते ही बोलने लगे। उन बालकों ने कहा, हे माँ आप हमें पत्तो से ढककर , बेफिक्र होकर पिता जी को भोजन देने जाओ, अब हम आपको 12 वर्ष बाद मिलेंगे। हमारे बारे में किसी को मत बताना। रानी बिजुला ने वैसा ही किया, और जल्दी जल्दी ,रामोलिहाट से गंगू के लिए भोजन लेकर पहुच गई।औऱ रानी इजुला झूठी साबित हो गई।

पालन – पोषण व शिक्षा –

उधर कुंजाली पाटल में ,झाड़ियों के पास ,जोगी पहुच गए उन्होंने गुरु के नाम की अलख लगा कर, वही धूनी रमा ली ।आधी रात को जोगी बाबा ने छोटे बच्चे की रोने की आवाज सुनी। बाबा लोग वहीं पहुच गए जहां से आवाज आ रही थी। उन्होंने देखा कि दो छोटे बच्चे पत्तों से ढके हुवे थे। उन्होंने सोचा कि ये किसी की नाजायज संतान होगी। जोगियो ने उन बच्चों की परीक्षा के लिए उनको धूनी की आग में रखा, और उन बच्चो को आंच भी नही आई। तब बाबाओ ने कहा कि ये किसी की अवैध संतान नही है। अगर ये अवैध होती तो अब तक जल जाती।

जोगी ने उनको अपनी झोली में रख के , रात ही दूध की भिक्षा मांगने निकल गए। ऐसे ही दिन गुजर गए, 11वे दिन गुरुओ ने उनका नाम सिदुवा बिदुआ रख दिया । देखतेे ही देखते 5 साल निकल गए। सिदुवा बिदुआ बहुत मेधावी थे। गुरु ने उनको 12 विधाएं और बोक्साणी विद्या के मंत्र भी सिखाये। जब सिदुवा बिदुआ 12 वर्ष के हुए तब गुरु उनको समस्त आश्रम का कार्यभार देकर, उत्तरायणी के स्नान के लिए चले गए।

गुरु के जाने के बाद सिदुवा बिदुआ को याद आया कि,उन्होंने अपनी माँ को वचन दिया है कि वो उससे 12 वर्ष बाद मिलेंगे। सिदुवा ने कहाँ कि हमे अभी जाना चाहिए। बिदुआ बोला भाई जी हम अगर अभी गए तो गुरु चोर माने जाएंगे, गुरु को आने दो उनके आने के बाद उनसे पूछ कर चले जायेंगे। सिदुवा ने कहा तब तक तो बहुत देर हो जाएगी, हमे अभी जाना होगा। तब दोनो भाइयों ने अपनी झोली उठाई, और अपनी माँ को मिलने के लिए निकल गए।

गुरुदेव को अपनी विद्या से पता चल गया,तब गुरु देव भी पीछे पीछे आ गए उनके। गुरु गरुड़ के वेश में उनके पीछे आ गए। जैसे ही दोनो को पता चला कि गुरु गरुड़ बन कर आ गए हैं, उन दोनों ने बांज का रुप धारण कर लिया। जब तीनो लोग थक गए , तब दोनो भाई पेड़ बन बन गए। तब गुरु ने उनको पहचान लिया, और गुस्से में कुल्हाड़ी प्रकट कि, उनको काटने हि वाले थे, कि वो दोनों फिर सांप बन गए,उसी समय गुरु गरुड़ बन गए।

इसी करते करते आखिर में गुरु थक गए। उन्होंने उनको श्राप दिया कि , जो विद्या उन्हें सिखाई है,उससे कभी उन दोनों को मान सम्मान नही मिलेगा।

दोनों का परिवार से मिलन –

दोनो भाई रामोलीहाट पहुँच गए,और गंगू के घर मे पहुँच गए। वहाँ जाकर उन्होंने गंगू को कहा कि हम आपके पुत्र हैं।गंगू ने कहाँ , “अरे तुम मेरे पुत्र कहाँ से हो गए ? मैं तो निसंतान हूँ। तुम मेरी जायजाद हड़पना चाहते हो ? इसलिए मेरे पुत्र बनने का नाटक कर रहे हो । तब सिदुवा बिदुआ ने अपनी मंत्र विद्या से साबित कर दिया, कि वो गंगू रमोला के ही पुत्र हैं। गंगू रमोला ने अपनी दोनों रानियों से पूछा कि बताओ किसके पुत्र हैं?  तब दोनो रानियां इजुला और बिजुला दोनो ने कहा कि वो उसके पुत्र हैं। गंगू परेशान हो गया।

अब सिदुवा बिदुआ ने गंगू रमोला से कहाँ की इन दोनों रानियों की छाती पर पहले कांसे के सात तसले, फिर सात पत्थर और फिर सात तवे बांध दो। जो सच्ची माँ होगी, उसका दूध इन सब मे छेद करते हुए ,हमारे मुह में आ गिरेगा। बिजुला की छाती से दूध की धार निकल गई, थाली और पत्थर टूट गए और धार सीधे सिदुवा और बिदुआ के मुह में धार गिर गई।

गंगू रमोला ने उनको ह्रदय से लगा लिया। और बड़ी रानी इजुला ने माफी मांग लि और उनको अपने सीने से लगा लिया। दोनो भाइयों ने अपने पिता और माताओ का आशीर्वाद लिया और खुशी खुशी रहने लगे। बड़े होने पर उनकी शादी हो गई। ( उत्तराखंड की लोककथाएं )

यह उत्तराखंड लोक कथा का एक रूप इस प्रकार भी है – कुछ लोक कथाओं में कहाँ जाता कि , गंगू रामोल की पत्नी मैनावती थी, और वो भगवान कृष्ण की अनन्य भक्त भी थी। उसे भगवान वासुदेव से दो पराक्रमी जुड़वा पुत्रो का आश्रीवाद प्राप्त था। जिसके फलस्वरूप उनके परम तेजस्वी पुत्रों सिदुवा बिदुआ का जन्म हुआ। और उन्होंने गुरु गोरखनाथ से शिक्षा दीक्षा ली, उनसे तंत्र विद्या बोक्साणि विद्या का ज्ञान लिया।

गुरु गोरख नाथ

गंगू वीर पुरुष था, उसने बाद में अपने पूर्वजों के नाम पर आरुणी सेम, वारुणी सेम, तलबला सेम आदि मंदिर बनाये थे। फिर भी गंगू को कत्यूरी राजाओं को कर देना पड़ता था लेकिन जब सिदुवा बिदुआ अपने पिता के पास आये, और बड़े हो गए , और उनकी वीरता के किस्से पूरे अंचल में फैल गए। तब गंगू ने भी कत्यूरियों को कर देना बंद कर दिया।

कत्यूरी राजाओं ने अपना दूत कर लेने के लिए भेज दिया। तब गंगू रमोला ने उस दूत को वापस भेज दिया और बोला ,अपने राजा को बोलना की अब किसी प्रकार का कर नही मिलेगा। इससे कत्यूरी राजा क्रुद्ध हो गए, उनको पता था,कि सिदुवा बिदुआ वीर साहसी एवं तांत्रिक शक्तियों के ज्ञाता हैं। कत्यूरी राजा उचित अवसर ढूढने लगे।

सिदुवा बिदुवा का भाभर गमन –

इधर सिदुवा बिदुवा को अपने माल प्रदेश ( भाभर क्षेत्र) देख रेख के लिए जाना था। पहले कही जाने से पहले पंडित जी से शुभ दिन निकलवाते थे, इसी परम्परागत सिदुवा ने भी पंडित जी बुलाये, और उनसे माल प्रदेश जाने के किये शुभदिन बताने का आग्रह किया।पंडित जी ने अपनी ज्योतिष देख कर बताया कि अभी 15 दिन तक कोई अच्छा दिन नहीं है। सब दिन अशुभ ही हैं। पंडित जी ने कहा कि  जब पूर्णिमा आ जायेगी , तब तुम अपना घर छोड़ कर कहीं जा सकते हो।

सिदुवा परेशान हो गया, वो बोला 15- 20 दिन तक तो देर हो जाएगी। हमारा जाना बहुत जरूरी है।  पंडित जी को सिदुवा बोला, पंडित जी , दुबारा देखना कोई शुभ समय हो ?  पंडित जी ने फिर अपनी पोथी देखी, फिर बोले नही जजमान यह साल ही अशुभ है, इस साल मत जाओ तो ही अच्छा है। यदि बहुत जरूरी है, तो 20 दिन बाद चले जाना।

सिदुवा उदास हो गया, माल प्रदेश जाना बहुत जरूरी था। सिदुवा को उदास देख , सिदुवा बिदुवा की पत्नी बिजुमती ने उनकी उदासी का कारण पूछा, तब सिदुवा ने बिजुमती को सब बता दिया। तब वो बोली कि पंडित जी ठीक बोल रहे हैं, मुझे भी कल रात एक खराब स्वप्न आया और मेरी दायी आंख भी फड़क रही है। मेरे स्वामी आप इस साल रामोलिहाट से बाहर मत जाओ। सिदुवा बिदुवा वीर थे, वो जो ठान लेते थे, उसे पूरा करके ही मानते थे। उन्होंने माल प्रदेश जाने की ठान ली, और जाने की तैयारियां शुरू कर दी।

उनकी पत्नी बिजुमती भी नही मानी, उसने कहा यदि आप दोनों जाओगे तो मैं भी साथ मे आऊंगी। सिदुवा ने उसको बहुत मनाया, कि अभी उसका बेटा बालेश्वर छोटा है। उसे इतनी दूर ले जाना ठीक नही है। और पिता जी भी बूढ़े हो गए हैं। किन्तु बिजुमती नही मानी, वो सिदुवा बिदुवा के पुत्र बालेश्वर को साथ मे लेकर उनके साथ चली गई।

सिदुवा बिदुवा पत्नी और बालक को साथ ले जाना नही चाहते थे, वो उनसे पीछा छुड़ाने के उपाय सोचने लगे । उन्होंने कुछ दूर जाकर जंगल में अपना डेरा जमाया। बिजुमती और बालेश्वर बेहद थके होने के कारण जल्दी सो गए। सिदुवा बिदुवा को इसी मौके की तलाश थी। उन्होंने पत्नी और बालक को सोता छोड़, अपने साथ का एक आदमी उनके साथ छोड़ कर। स्वयं आगे बढ़ गए। अब बिजुमती और उनके बेटे के पास वापस घर लौटने के अलावा कोई चारा नही था।

सिदुवा बिदुवा इसके बाद घंगुली उड़्यार ( गुफा ) में रुके, लेकिन वहाँ आस पास पानी नहीं था। बिदुवा पानी की खोज में दूर निकल गया। रात हो गई , बिदुवा नही आया अब सिदुवा को फिक्र होने लगी। वो अगले दिन सुबह बिदुवा की खोज में निकल गया। सुबह से शाम हो गई , लेकिन बिदुवा नही मिला। आखिर उसने अपनी बाँसुरी बांजनी शुरू कर दी। बिदुवा रास्ता भूल गया था, और जंगल मे इधर उधर भटक रहा था। बाँसुरी की आवाज सुन के वो समझ गया कि सिदुवा, बाँसुरी बजा रहा है। बाँसुरी की आवाज के सहारे वो कुछ देर में सिदुवा के पास पहुँच गया। सिदुवा ने बिदुवा को गले लगाया , और दोनो घंगली गुफा की ओर चले गए।

इधर कत्यूरी राजाओं को पता चल गया कि सिदुवा बिदुवा रामोलिहाट में नही हैं, बस कत्यूरी इसी सुअवसर का इंतजार कर रहे थे। कत्यूरी राजा ने शकर वजीर और कलुवा वजीर को सेना के साथ ,रामोलिहाट पर आक्रमण करने भेज दिया। उन दोनों ने रामोलिहाट पहुच कर, अपने सैनिकों को सब तहस नहस और आग लगाने के आदेश दे दिए। रामोलिहाट कि सेना की उनके सामने कुछ ना चली।

बिजुमती रोने लगी। उसे सिदुवा और बिदुवा पर गुस्सा आ रहा था। ऐसे समय मे छोड़ कर भाभर गए थे।गंगू रमोला भी बृद्ध हो गए थे, किन्तु उनकी भुजाओं में अभी भी दम था। गंगू ने अपनी बहू को कहा, “बिजुमती तुम व्यर्थ की चिंता मत करो , अभी मैं जिंदा हूँ।” गंगू रमोला ने अपनी जादुई लाठी निकाली, और एक ऊंचे पहाड़ पर चले गए, वहां से उन्होंने धर्म धात मारी। वहाँ से उन्होंने अपनी जादुई लाठी से पूरी घाटी में कोहरा फैला दिया। गंगू ने इसके बाद कलुवा वजीर और उसकी सेना पर हमला कर दिया।

 

कत्यूरी सेना को कुछ समझ मे नही आ रहा था, उन्हें कौंन मार रहा है। वो आपस मे ही युद्ध करने लगे। भयँकर युद्ध शुरू हो गया। गंगू रमोला उस समय 100 साल का था, उसके सामने कलुवा वजीर और शंकर वजीर उनकी सेना के पसीने छूट गए। चारो ओर गंगू रमोला ने हाहाकार मचा दिया।

कलुवा वाजीर को चिंता हो गई, की उसकी सेना तो, ऐसे ही खत्म हो जाएगी।तभी कलुवा ने देखा कि गंगू रमोला बाज के पेड़ के पीछे छिप कर हमला कर रहा है। कलुवा वाजीर ने छुप कर पीछे से गंगू रमोला के सिर पर वार कर दिया। गंगू उस वार को सहन नही कर सका, और एक वीर और साहसी व्यक्ति सदा के लिए दुनिया से विदा हो गया।

जब बिजुमती को पता चला कि उसके ससुर इस दुनिया मे नही रहे , वो घबरा गई, तब बालक बालेश्वर ने अपनी माँ से युद्ध मे जाने की अनुमति मांगी । बिजुमती रोने लगी उसने बालक बालेश्वर से कहा , “जा मेरे वीर पुत्र मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ हैं। आखिर तू भी तो वीर गंगू रमोला का पोता है।

बालेश्वर छोटा था, लेकिन वह अपनी जिम्मेदारी बखूबी समझता था, उसने अपनी माता को वज्रशिला के अंदर छुपा दिया। और फिर उसने अपनी तलवार निकली और अभिमन्यु की तरह ,शत्रु सेना पर टूट गया। थोडी देर के लिए बालेश्वर ने अपने दम पर कलुवा वज़ीर की सेना के छक्के छुड़ा दिए। लेकिन बाद में कलुवा वाजीर और शकर वाजीर और उनकी सेना ने घेर दिया। और मौका देखकर शंकर ने  उस छोटे बच्चे का सिर धड़ से अलग कर दिया।

बालेश्वर का सिर धड़ से अलग होते ही, कफू पक्षी बन गया। और उड़ कर अपने पिताओं सिदुवा बिदुवा के पास भाभर पहुँच गया। वहाँ उसने अपने पिताओं को सारी कहानी बताई , और यह भी बताया कि ,उसकी माता वज्रशिला में छुपी है, और उसकी गर्दन भी कट गई, वो कफू बन गया है। सिदुवा बिदुवा ये सुन उसी समय रामोलिहाट पहुच गए। वहाँ उन्होंने देखा, सब कुछ बर्बाद हो गया था। उन्होंने भागीरथी  नदी के किनारे तप किया, तब भगवान ने कहा, कि बिजुमती तुम्हे सबकुछ सही सही बता सकती है।

वज्रशिला का द्वार खुल गया, बिजुमती ने उनको सब सच सच बता दिया। उन दोनों भाईयों ने महाकाली मंत्र के जाप और अपनी बोक्साणि विद्या से 5200 सैनिको का निर्माण किया। अब दोनों भाई युद्ध के मैदान में पहुच गए। उनके सामने कलुवा और शंकर वाजीर की एक ना चली। एक सिद्ध तांत्रिक और बाहुबली सिदुवा और बिदुवा ने ये लड़ाई जीत ली। और दुश्मनों को मार कर खदेड़ दिया।

Siduva biduva ka yudh

मित्रों ये कथा, तो यहीं खत्म होती है। लेकिन उत्तराखंड के अलग अलग भागों में सिदुवा बिदुवा की कथा, अलग अलग तरीके से बताई जाती है। मित्रों गढ़वाल कुमाऊ के बॉर्डर क्षेत्र में सिदुवा बिदुवा की एक और कथा है , जो इस प्रकार है –

सिदुवा बिदुआ की दूसरी लोक कथा –

इस कहानी के अनुसार, सिदुवा बिदुवा पशुपालक थे, और बड़े वीर थे।एक दिन बड़े भाई सिदुवा ने बिदुवा को पंडित जी के पास भेजा, कि शुभ दिन का पता करके आये, जिस दिन वो अपनी पशुओं को बुग्यालों की तरफ लेकर जा सके। पंडित जी ने बोला कि अभी तो कोई दिन नही है।

लेकिन फिर भी सिदुवा बिदुवा, जाने को तैयार हो गए। वो अपनी बकरियों और पशुओं को लेकर आन्छरियो के देश पहुच गए , जहाँ आंछरियों ने उनका हरण कर लिया,वहाँ सिदुवा बिदुवा, अपनी भेड़ बकरियों और पशुओं के साथ दल दल में फस कर मर जाते हैं। तबसे उस क्षेत्र के लोग उन्हें पशुपालकों के देवता के रूप में पूजते हैं।

निवेदन –

मित्रों उपरोक्त्त उत्तराखंड की लोक कथा, उत्तराखंड में गाई जाने वाली जागरों एवं जनश्रुतियों तथा एक लोकप्रिय यूटयूब चैनल घसेरी की कथा वर्णन पर आधारित है। यदि इसमें कुछ त्रुटि लगती है। तो आप हमें हमारे फेसबुक पेज देवभूमि दर्शन मैसेज करके बता सकते हैँ। और इसी प्रकार की सांकृतिक , धार्मिक कथाओं के लिए हमारा फेसबुक पेज अवश्य लाइक करे।

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