Tuesday, May 27, 2025
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रामलला की प्यारी सरयू नदी की पौराणिक कथाएँ और धार्मिक महत्व

सरयू नदी, जिसे घाघरा नदी भी कहा जाता है, भारत के उत्तर भाग की ए प्रमुख नदी है। यह उत्तराखण्ड के बागेश्वर ज़िले से उत्पन्न होकर उत्तर प्रदेश और बिहार होते हुए गंगा में विलय होती है। इस नदी का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व अत्यधिक है, खासकर अयोध्या के पवित्र नगर के पास बहने वाली सरयू नदी को लेकर।

सरयू नदी की उत्पत्ति :

पौराणिक कथाओं के अनुसार, सरयू नदी भगवान विष्णु के नेत्रों से उत्पन्न हुई थी। शंखासुर नामक दैत्य ने वेदों को चुराकर समुद्र में डाल दिया था, और भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में उसका वध किया। विष्णु के आंसू से उत्पन्न हुआ जल बाद में सरयू नदी के रूप में बहने लगा।

रामलला की प्यारी सरयू: राम जन्मोत्सव में जाने के लिए आतुर सरयू की कहानी –

स्कंदपुराण के ‘वागीश्वर महात्म्य’ के अनुसार, सरयू नदी का एक और पौराणिक कनेक्शन है। यह स्थान कभी ऋषि मार्कंडेय की तपस्थली था। एक कथा के अनुसार, जब अयोध्या में भगवान राम का जन्मोत्सव मनाया जा रहा था, सरयू नदी को भी अयोध्या जाने की तीव्र इच्छा हुई। हिमालय से निकलने के बाद जब सरयू नदी अयोध्या जाने के रास्ते में तपस्यारत ऋषि मार्कंडेय को देखती है, तो वह रुक जाती है।

तब माँ पार्वती ने भगवान शिव से सरयू के धर्मसंकट का समाधान करने को कहा। भगवान शिव बाघ रूप में और माँ पार्वती गाय रूप में प्रकट हुए, और जैसे ही बाघ ने गाय को मारने का प्रयास किया, ऋषि मार्कंडेय ने उसे बचाने के लिए झपटे। उसी समय सरयू नदी अपना रास्ता पाती है और आगे बढ़ती है।

सरयू नदी

सरयू नदी को भगवान शिव का श्राप :

भगवान राम ने सरयू नदी में जल समाधि ली, और इस कारण भगवान शिव ने सरयू को श्राप दिया कि उसका जल पूजा में इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। हालांकि सरयू के अनुनय विनय के बाद , शिव ने यह भी कहा कि सरयू में स्नान करने से लोगो के पापों का नाश होगा और पुण्य की प्राप्ति होगी।

सरयू नदी का धार्मिक महत्व :

रामचरित मानस में सरयू नदी का अत्यधिक महत्व बताया गया है। यह माना जाता है कि जो व्यक्ति सरयू में ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करता है, उसे सभी तीर्थों के दर्शन का पुण्य मिलता है। सरयू के जल में स्नान करने से व्यक्ति को जीवन के सभी दुखों से मुक्ति मिलती है। सरयू नदी का महत्व न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यधिक है। यह नदी अयोध्या की पवित्रता और भगवान राम की लीला का प्रतीक बन चुकी है।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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