Table of Contents
नरसिंह देवता उत्तराखंड का सारांश (Summary):
नरसिंह देवता उत्तराखंड के एक सिद्ध योगी और लोकदेवता हैं, जिन्हें नाथपंथी परंपरा से जोड़कर पूजा जाता है। ये भगवान विष्णु के चौथे अवतार नरसिंह नहीं हैं। इनकी जागर में 52 वीर और 9 रूपों का वर्णन मिलता है। नरसिंह देवता को झोली, चिमटा और तिमर के डंडे से पहचाना जाता है। चंपावत, जोशीमठ, टिहरी आदि में इनके मंदिर हैं। इनके शांत और उग्र स्वरूप – दूधिया और डौंडिया नरसिंह की पूजा विशेष रूप से होती है। लोकविश्वास में ये सामाजिक नेतृत्व, योगबल और तांत्रिक शक्तियों के प्रतीक माने जाते हैं।
विस्तार ( Detail ) :-
उत्तराखंड, जिसे देवभूमि कहा जाता है, न केवल प्रकृति की गोद में बसा एक रमणीय प्रदेश है, बल्कि यहाँ हर पर्वत, हर घाटी, हर कण में देवत्व की अनुभूति होती है। यहां के लोकमान्य देवताओं में एक प्रमुख नाम है — नरसिंह देवता। लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि ये देवता भगवान विष्णु के अवतार नरसिंह नहीं हैं, बल्कि उत्तराखंड के एक सिद्ध योगी नरसिंहनाथ थे, जिन्हें आज लोकदेवता के रूप में पूजा जाता है।
नरसिंह देवता उत्तराखंड के लोकदेवता हैं , विष्णु के अवतार नहीं –
अक्सर लोग नरसिंह नाम सुनते ही उन्हें भगवान विष्णु के चौथे अवतार से जोड़ देते हैं, पर उत्तराखंड में पूजित नरसिंह देवता का संबंध इस पौराणिक अवधारणा से नहीं है।
यहाँ नरसिंह देवता को एक सिद्ध पुरुष, योगी और नाथ सम्प्रदाय से जुड़े गुरु के रूप में माना जाता है।
विशेष अंतर:
- जोशीमठ का नरसिंह मंदिर — विष्णु अवतार नरसिंह का
- उत्तराखंड की जागर परंपरा में नरसिंह — सिद्ध योगी नरसिंहनाथ
नरसिंह देवता का रूप: एक सिद्ध योगी –
उत्तराखंड में नरसिंह देवता की जागर लगाई जाती है, जिसमें न कहीं विष्णु का नाम आता है, न ही कोई अवतारी गुण।
बल्कि इन्हें झोली, चिमटा और तिमर के डंडे से पहचाना जाता है — जो एक योगी के चिन्ह हैं।
इनकी पूजा एक योग-संप्रदाय की परंपरा अनुसार की जाती है।
जागर में उल्लेखित उनके 52 वीर और 09 रूप –
नरसिंह देवता की जागर गाथाओं में उनके 52 वीर , 09 रूप और उनका जोगी रूप वर्णित होता है।
नरसिंह देवता का ऐतिहासिक पक्ष –
- इतिहास में नरसिंह देवता को नरसिंहनाथ नाम से जाना जाता है।
- ये एक प्रभावशाली योगी, राजनीतिक सलाहकार और सामाजिक संगठनकर्ता थे।
- इन्होंने नाथपंथी परंपरा में दीक्षा प्राप्त की और तत्कालीन कत्यूरी राजा आसन्तिदेव को भी प्रभावित किया।
इतिहास के अनुसार:
- नरसिंहनाथ ने जोशीमठ पर अधिकार स्थापित किया
- नाथ योगियों का एक संगठन बनाया
- तुर्क आक्रमणों से जनसामान्य की रक्षा हेतु राज सत्ता का एक वैकल्पिक रूप प्रस्तुत किया
- मृत्यु के बाद उनके शिष्यों — भैरोनाथ, हनुमंतनाथ, अजैपाल आदि ने नेतृत्व संभाला
नरसिंह देवता के प्रमुख मंदिर –
1. कालूखाड़, चंपावत — यहाँ दशहरे के अवसर पर विशाल उत्सव होता है
2. स्वीली, टिहरी
3. शाक्नयाण, कांगड़ा
4. जोशीमठ, चमोली — (धार्मिक महत्व अलग, विष्णु अवतार नरसिंह का मंदिर)
कुमाऊं और गढ़वाल दोनों ही अंचलों में नरसिंह देवता का बड़ा सम्मान है। गाँव-गाँव में इनके आला बनाए जाते हैं।
नरसिंह देवता के 09 रूप –
उत्तराखंड में नरसिंह देवता के नौ रूपों की विशेष पूजा होती है, जिनमें दो प्रमुख रूप विशेष प्रसिद्ध हैं:
- इंगला बीर
- पिंगला वीर
- जतीबीर
- थती बीर
- घोर- अघोर बीर
- चंड बीर
- प्रचंड बीर
- दूधिया नरसिंह
- डौंडिया नरसिंह
कुमाऊं क्षेत्र में इनकी डंगरिया या पश्वा प्रायः स्त्री होती है।
नरसिंह देवता की पूजा पद्धति –
- झोली, चिमटा और तिमर को ही देवता का प्रतीक मान पूजा की जाती है
- हुड़के की थाप पर जागर गाई जाती है।
- डौंडिया नरसिंह को शांत करने के लिए बलि दी जाती है।
- दूधिया नरसिंह की पूजा शांति से होती है।
- स्त्रियाँ भी डंगरिया बन सकती हैं — यह एक अनूठा सामाजिक संकेत है।
निष्कर्ष –
नरसिंह देवता उत्तराखंड (Narsingh Devta Uttarakhand) एक पौराणिक अवतार नहीं, बल्कि इतिहास और लोक आस्था के अद्वितीय संगम हैं। ये देवता योग परंपरा, तांत्रिक सिद्धियों , और सामाजिक संगठन के प्रतीक माने जाते हैं।आज भी उत्तराखंड के ग्रामीण समाज में इनके प्रति अटूट श्रद्धा है, और जागर, बलि, पूजा और भक्ति के माध्यम से इनका स्मरण किया जाता है।