Wednesday, April 2, 2025
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नरशाही मंगल, उत्तराखंड के इतिहास का एक नृशंश हत्याकांड

नरशाही मंगल :

यह शब्द उत्तराखंड के गोरखा शाशन काल में हुए नृशंश हत्याकांड का बोधक है। उत्तराखंड के चंद शाशकों ने, अपनी प्रजा और सैनिकों को नियंत्रण में रखने के लिए अपनी सेना में , हिमाचल के नगरकोट ,कांगड़ा और अन्य पश्चिमी जिलों से उच्च पदों पर सेनानायक रखे थे। कालान्तर में ये धीरे धीरे यही बस गए और  यहाँ के स्थानीय राजपूत परिवारों के साथ बना सम्बन्ध कर यहाँ के निवासी बन गए। इन लोगों को नगरकोटिया कहा जाता था। इनकी बालों की  शैली से इन्हे आसानी से पहचाना जा सकता था। इनकी बाल शैली को जुल्फेन कहा जाता था।

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उत्तराखंड में बाद में गोरखों का शाशन स्थापित हुवा।  जब 1793 में जब गोरखा शाशक नरशाह कुमाऊं का दैशिक शाशक था, तब इसे  हिमाचली अप्रवासी सैनिकों की राष्टभक्ति में शक हुवा , उसने इन सबका एक साथ सफाया करवाने का मन बना लिया। नरशाह को यह विश्वाश था कि नगरकोटिया गोरखा शाशन के खिलाफ है।

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भविष्य में ये गोरखा शासन के लिए बड़ा खतरा बने उससे पहले , नरशाह उन्हें उजाड़ देना चाहता था। इस काम के लिए उसने सबसे पहले नगरकोटियों का विवरण त्यार करवाया। फिर उसने एक विशेष दिन निश्चित करके, अपने सैनिकों को रात को सभी नगरकोटियों के घर पर धावा बोलकर उनका क़त्ल करने का निर्देश अपने सैनिकों को दिया। अचानक रात को हुए हमले में कई नगरकोटिये मारे गए। कइयों ने जोगी का वेश धारण करके अपनी जान बचाई। नगरकोटियों की खास पहचान उनकी जुल्फेन यानि उनकी बाल शैली थी।

बालों की शैली से वे आसानी से पहचान में आ रहे थे। इसलिए उस बिपत्ति की घड़ी में उन्हें बाल काटने का जो भी साधन मिला उन्होंने जल्द से जल्द अपनी ये खास पहचान मिटाई। क्रूर शासक नरशाह द्वारा यह हत्याकांड मंगल वार के दिन करवाया गया इसलिए इस दुःखद ऐतिहासिक घटना को नरशाही मंगल के नाम से याद किया जाता है।

जानकारी का श्रोत – बद्रीदत्त पांडे जी की प्रसिद्ध किताब कुमाऊं का इतिहास

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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