Friday, July 26, 2024
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नारायण आश्रम उत्तराखंड का इतिहास (Narayan Ashram Uttarakhand)

नारायण आश्रम की स्थापना 1936 में श्री नारायण स्वामी जी ने की थी। यह पिथौरागढ़ से 136 किमी दूर है। और तवाघाट से 14 किमी दूर है। नारायण आश्रम समुद्रतल से 2734 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह आश्रम धारचूला स्टेशन से 23 किमी दूर है। प्रकृति की सुरम्य वादियों में बसा यह आश्रम ध्यान योग की गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध है।

नारायण आश्रम उत्तराखंड का इतिहास –

नारायण स्वामी का जन्म दक्षिण एक सम्पन्न परिवार में हुवा था। किन्तु इनके मन में युवास्था में ही वैराग्य उत्पन्न हो गया था। अपने सम्पन्न परिवार का त्याग कर ये हिमालय को आ गए। बद्री -केदार ,हरिद्वार आदि दर्शन के बाद 1935 में कैलास मानसरोवर की यात्रा से लौटते समय स्थानीय लोगो से मुलाकात और उनका आतिथ्य ग्रहण किया। उस समय वहां की परिस्थियाँ देखकर वहां एक आश्रम की स्थापना का निर्णय लिया।

सर्वप्रथम 26 मार्च 1936 को एक पर्णकुटीर के रूप में आश्रम की स्थापना की गई। एक ध्वज पर ॐ श्री नारायणाय नमः लिखकर ध्वज लहराया गया। स्थानीय मजदूरों की वर्षों की मेहनत और स्थानीय तथा महाराष्ट्र और गुजरात के भक्तों की बदौलत यह आश्रम बन कर तैयार हुवा। उस समय अल्मोड़ा तक ही सड़क की सुविधा थी। अल्मोड़ा से पैदल आना जाना होता था। उस समय भवन बनाना बहुत संघर्ष का काम होता था।

नारायण आश्रम स्थापना के उद्देश्य –

यहाँ आश्रम स्थापित करने का मुख्य उद्देश्य था इस क्षेत्र की सामाजिक ,आध्यात्मिक और शैक्षणिक उत्थान। उस समय सीमांत क्षेत्र में ईसाई मिशनरीज भी सक्रीय थी। वे वहां बड़े जोर शोर से धर्मपरिवर्तन में सक्रिय थे। इस लिहाज से भी वहां नारायण आश्रम की स्थापना महत्वपूर्ण हो गई थी।

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नारायण आश्रम उत्तराखंड का इतिहास (Narayan Ashram Uttarakhand)

आश्रम में की जाने वाली गतिविधियां –

यह आश्रम धार्मिक ,योग ,ध्यान और प्रकृति की सुंदरता का आनंद और ट्रैकिंग की गतिविधियां की जाती हैं । महाराष्ट्र और गुजरात के भक्त /पर्यटकों की आवाजाही यहां अधिक होती है।

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कैसे पहुचें –

नारायण आश्रम का नजदीकी रेलवे स्टेशन टनकपुर है। और यहां का नजदीकी हवाई अड्डा पंतनगर है। यहाँ पहुँचने के लिए सबसे पहले आपको धारचुला पहुँचना होगा। धारचूला से नारायण आश्रम की दूरी 44 किमी है।

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
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