Friday, April 11, 2025
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उत्तराखंड नैनीताल के फेमस भट्ट जी के भुट्टों का स्वाद लिया क्या ?

“यदि आप नैनीताल की यात्रा पर हैं ,आपने उत्तराखंड नैनीताल के फेमस भट्ट जी के भुट्टों का आनंद नहीं लिया तो ,नैनीताल की ट्रिप में कुछ अधूरा रह गया। “

साधारण पृष्ठभूमि और विषम भौगोलिक परिस्थितियों में भी अपनी मेहनत के दम पर, कैसे खुद को एक ब्रांड के रूप में स्थापित किया जाता है। यह कर दिखाया है, नैनीताल ज्योलिकोट के लीलाधर भट्ट जी ने । लीलाधर भट्ट जी ज्योलिकोट में अल्मोड़ा -हल्द्वानी हाईवे पर भुट्टों का स्टाल लगाते हैं। हलाकि इस मार्ग पर कई और लोग भी भुट्टों का स्टाल लगाते हैं ,लेकिन भट्ट जी के भुट्टों का स्वाद कुछ खास है। इनके भुट्टों के दीवाने नैनीताल हाईकोर्ट के जज से लेकर बड़े बड़े राजनेता और मशहूर हस्तियां हैं।

श्री लीलाधर भट्ट जी का जन्म 1955 में नैनीताल ज्योलीकोट क्षेत्र के आमपड़ाव गाव में हुवा था। उससे पहले उनके पूर्वज जैंती अल्मोड़ा के रहने वाले थे। लीलाधर भट्ट जी के पिता का नाम श्री चंद्रदत्त भट्ट और माता का नाम श्रीमती लक्ष्मी भट्ट है। भट्ट जी का बचपन एक आम पहाडी की तरह बेहद संघर्षशील और गरीबी में बीता, 6 भाई और 6 बहीनों का परिवार में पिता जी एकलौते कमाने वाले थे। 1975 में भट्ट जी की शादी हुई , शादी के समय भी भट्ट जी बेरोजगार थे, बेरोजगार से मतलब कोई स्थाई रोजगार नहीं था। अस्थाई कार्य करके परिवार का पेट पाल लेते थे।

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15 अगस्त 1988 से भट्ट जी ने दोगाव वाली सड़क पर अन्य लोगो को देख कर भुट्टे बेचने की शुरुवात की। साथ साथ मे मसाला नमक लगा कर पहाड़ी ककड़ी भी बेचा करते थे। फिर उन्होंने पुदीने,नामक,लहसुन की चटनी के साथ भुट्टे बेचने शुरू किए,लोगो को स्वादिष्ट लगे, लोग बार बार इन्हींकी डिमांड करने लगे, इस तरह के आइडिया को सफल होते देख , भट्ट जी ने कई मसालों को मिलाकर एक ऐसी दिव्य स्वादिष्ट चटनी ईजाद की, जिसका टेस्ट एक बार मुह लग जाता तो, वो दुबारा फिर भट्ट जी के पास आता।

नैनीताल ज्योलीकोट के भट्ट जी भुट्टे वाले , जिनकी दुकान अल्मोड़ा रानीख़ेत जाते समय ज्योलीकोट से 4 किमी पहले पड़ती है, हल्द्वानी से लगभग 15 किमी दूर। आज किसी पहचान के मोहताज नहीं है। उत्तराखंड नैनीताल के फेमस भट्ट जी के भुट्टे का स्वाद के दीवाने  नैनीताल हाईकोर्ट के जज से लेकर कई बड़े बड़े लोग हैं। कोयलों में भुने प्योर पहाड़ी भुट्टो पर जब भट्ट जी इन्हें अपने दिव्य स्वादिष्ट मसाले और मक्खन से सजा कर पेश करते हैं। तो इनके स्वाद के आगे तंदूरी चिकन भी फेल है।

आजकल के युवा सोशल मीडिया पर , भट्ट जी के भुट्टो को मजाक में ,शाकाहारी तंदूरी चिकन भी कहते हैं, इसमे मजाक कम, और उनके भुट्टो का स्वाद छिपा रहता है। इस रोड पर कई भुट्टे की दुकानें है, मगर जो स्वाद भट्ट जी के भुट्टो में है, वो किसी और में नहीं। जिस दुकान के सामने सबसे ज्यादा भीड़ होगी , समझ जाना, भट्ट जी के भुट्टो की दुकान वही है।

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लीलाधर भट्ट जी लगभग 20 वर्ष से भुट्टे का स्वरोजगार  कर रहे हैं। भट जी अपने दुकान के लिए, पहाड़ का सफेद भुट्टा बोते हैं, और उसी को बेचते हैं। हाइब्रिड भुट्टे का स्वाद लोगों को पसंद नही आता । भट्ट जी ,आस पास ज्योलीकोट, डोलमार, दो गाव में ,किराए पर जमीन लेकर भुट्टे उगाते हैं और उन्ही को ,अप्रैल से अक्टूबर तक बेंचते हैं।भट्ट जी के बारे में एक इंटरव्यू पढ़ा, वैसे भट्ट जी के भुट्टो का स्वाद भी लिया है, लेकिन अधिक भीड़ -भाड़ होने के कारण ज्यादा बात नही हो पाई, इस बार सिंतबर में ,जाकर खूब बात करनी है ,भट्ट जी से।

भट्ट जी के इंटरव्यू में पढ़ा था, की उनकी धर्मपत्नी सुबह तड़के दुकान के लिए, दिव्य स्वादिष्ट नामक ( मसाला चटनी ) पीस कर तैयार कर देती है। यहाँ मैं उनकी मसाला चटनी की रेसीपी नही लिखूंगा, मैंने सुना कि वो इसका राज किसी को नही, बताते अब पेपर में तो लिखा था, सच था या झूठ भगवान जाने। धर्मपत्नी के मसाला चटनी बनाने के बाद, भट्ट जी भुट्टो का थैला और नमक मक्खन, लेकर निकल पड़ते है, नैनीताल आने , जाने वाले मुसाफिरों के सफर को स्वादिष्ट बनाने।

 श्री लीलाधर भट्ट जी, आजकल उन उत्तराखंड के युवाओं के लिए एक प्रेणा स्रोत है, जो कहते हैं, कि पहाड़ में कुछ नही रखा है। अगर लगन,ईमानदारी और मेहनत से काम किया जाय तो सबकुछ है,पहाड़ में।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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