मेहल या मेलू पहाड़ में उगने वाला एक खास जंगली फल

0
1150
मेहल
मेहल का फल

पहाड़ में अक्टूबर नवंबर में पक कर अंदर से एकदम काले रंग के स्वादिष्ठ मेहल या मेलू सबने देखे है ,और इनका स्वाद भी लिया है। नाशपाती परिवार के इस फल को जंगली हिमालयी  नाशपाती कहते है। मेहल या मेलू को पाइरस पशिया भी कहते हैं। Rosaceae परिवार का यह पेड़ छोटे से मध्यम ऊंचाई का पर्णपाती पेड़ होता है। मेहल के बारीक़ दांतेदार अंडे के आकर के पत्ते और लाल किनारी वाले आकर्षक फूल लगते हैं। इसमें वर्ष में एक बार फल लगते हैं। इस पौधे का मूलस्थान दक्षिण एशिया माना जाता है।

पाइरस पशिया सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्र के साथ पाकिस्तान,वियतनाम  और ईरान अफगानिस्तान में  पाया जाता है। इसे हिंदी में महल या मोल नाम से तथा नेपाली में पासी नाम से जाना जाता है। उत्तराखंड  के कुमाऊं में इसे मेहल ,मेहोव और गढ़वाल में मोलु या मेयलु  के नाम से जानते हैं। हिमांचल में इसे केंथ कहते हैं।

पाइरस पशिया का पौधा मध्य हिमालयी क्षेत्रों में समुद्र तल से लगभग 750 मीटर से 2600 मीटर की ऊंचाई तक होता है। इसकी फसल नहीं लगाई जाती या इसका पौधरोपण करके नहीं उगाया जाता। यह पौधा स्वतः ही प्राकृतिक प्रजनन या पक्षियों द्वारा इसके बीजों को इधर उधर ले जाने के बाद स्वतः ही हो जाता है। इसका पेड़ 6 से 10 मीटर लम्बा और लगभग 6 मीटर चौड़ा होता है।

Hosting sale

पाइरस पशिया साल में एक बार फल देता है। इसका फल पूर्ण रूप से पकने के बाद स्वादिष्ट और स्वास्थ वर्धक होता है। पूर्ण रूप से पकने के बाद इसका फल अंदर से काला पेस्ट की तरह होता है। इसके फल का अमूमन व्यापारिक प्रयोग नहीं किया जाता। अर्थात इसके फल की खरीद फरोख्त या संग्रहण नहीं किया जाता है। इसलिए इसका फल पकने के बाद ऐसे ही पड़ा रहता है। पक्षी और ग्वाल बाल बच्चे या खेतों में काम करने वाले लोग इसके फल का आनंद लेते हैं।

मेहल या मेलू पहाड़ में उगने वाला एक खास जंगली फल
फोटो -राजू नेगी सोमेश्वर घाटी
Best Taxi Services in haldwani

इसके फल को लिवर के लिए काफी फायदेमंद बताया जाता है। एक अध्ययन के अनुसार इसके फलों में 6.8 प्रतिशत शर्करा ,3.7 प्रतिशत प्रोटीन 1 प्रतिशत राख ०.4 प्रतिशत प्रेक्टिन होता है। इसके अलावा 0.026 प्रतिशत फास्फोरस , ०.475 प्रतिशत पोटेशियम ,0 .475 प्रतिशत कैल्शियम ,0 .0 61 प्रतिशत मैग्नेशियम ,0 .0 27 प्रतिशत और लोहा 0 .0 0 6 प्रतिशत लोहा होता है।

इसकी लकड़ी मजबूत और एकदम सीधी होती है। फर्नीचर व् घरेलू उपकरणों के लिए सर्वथा उत्तम लकड़ी होती है।

इसे भी पढ़े _

स्वरोजगार की जीती जागती मिसाल ,उत्तराखंड का पनीर गाँव | Paneer Village of Uttrakhand in hindi
शौशकार देना या अंतिम हयोव देना ,कुमाउनी मृतक संस्कार से संबंधित परंपरा

हमारे व्हाट्सप्प ग्रुप से जुडने के लिए यहां क्लिक करें

Follow us on Google News Follow us on WhatsApp Channel