Monday, April 28, 2025
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कुमाऊनी बैठकी होली का इतिहास और कुमाऊनी बैठकी होली गीत 2025

कुमाऊनी बैठकी होली :होली हिन्दू धर्म के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है। इस त्यौहार को सभी सनातनी बड़े हर्षो उल्लास के साथ मानते हैं। सभी क्षेत्रों की होली अपने आप में खास होती है। इसमें से भी ब्रज की होली और उत्तराखंड की कुमाऊनी होली काफी प्रसिद्ध हैं। उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में दो तरह से होली गायन होता है। पहली कुमाऊनी बैठकी होली (kumaoni baithaki holi )और दूसरी है कुमाऊनी खड़ी होली।

कुमाऊनी बैठकी होली का इतिहास –

कुमाऊं की इस होली के स्वरुप में होली गायक बैठ कर हारमोनियम ,तबला में सुर ताल के साथ शास्त्रीय होलियों का गायन करते हैं। कुमाऊनी बैठकी होलियों में शास्त्रीय रागों का प्रयोग किया जाता है। वैसे तो इन होलियों की शुरुवात पौष माह के पहले रविवार से हो जाती है ,लेकिन बसंत पंचमी के बाद होली त्यौहार तक ये प्रतिदिन गायी जाती है।

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कुमाऊनी बैठकी होली ( kumaoni baithaki holi ) की शुरुवात 15 शताब्दी में चम्पावत के चंद राजाओं से हुई बताई जाती है। जैसे -जैसे चंद राजाओं का राज्य कुमाऊं में फैलते गया ,वैसे -वैसे  बैठकी होली पुरे कुमाऊं में प्रसिद्ध हो गई। कहते हैं उस समय चंद राजाओ के साथ बाहरी राज्यों की राजकुमारियों का विवाह होने से उनके साथ बाहरी संगीतज्ञों का आना आना भी हुवा जिनके बैठकी होली भी आई।

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शास्त्रीय संगीत पर पहाड़ी शैली में ब्रज भाषा के बोल है  बैठकी होली –

कुमाऊनी बैठकी होली में शास्त्रीय संगीत का प्रयोग करके ब्रज भाषा के बोलों को पहाड़ी शैली या कुमाऊनी शैली में गाया जाता है। इसे सामूहिक रूप से गाया जाता है। शुरुवात में भक्तिमय बैठकी होली गायी जाती है। शिवरात्रि के बाद शृंगार रस वाली होलिया गायी जाती है। वैसे तो पुरे कुमाऊं की बैठकी होली प्रसिद्ध है लेकिन नैनीताल और अल्मोड़ा की बैठकी होली विशेष प्रसिद्ध हैं।

कुमाऊनी बैठकी होली गीत के बोल ( Kumauni baithaki holi lyrics ) –

 होली -1

सुरमा नारि अकल तेरी कां गै छः ।। २ ।।
मै भली हूँ भली भलो गात छः
ऊँना सूरज जसि मेरी ज्योति छः ।। सुरमा…
मैं कुंवारी भलो मेरो रूप छः।।
मेरो रूप देखि इन्द्र झुकि जां छः।। सुरमा….
लखन मानि जा वर योग्य छः।।
क्रोध की हंसी लखन आ रौ छः।। सुरमा
सुरमा नारि रंग रस में छकि रै छः।।
नाक काट लिगै अब भल भै छः।। सुरमा….

होली -2

सखी रामा बालक है धनु कैसे तोड़त है।
बड़े-बड़े बलधारी हिय हरि भागत हैं।। सखि..
राम लछीमन संग विश्वामित्र आवत हैं।
उठ राम चन्द्र तुम मुनि झमझावत हैं। सखि.
गुरू आज्ञा शीश घर राम चन्द्र जावत हैं।
धनुष तोड़ि खण्ड कियो खल मुरझावत हैं।। सखि..
वर माला हाथ लिये सीता माता आवत है।
माला डाली राम गल सुर हरषावत हैं। सखि.

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होली -3

बंसी शब्द सुनादे कन्हैया, बंशी शब्द।
काहिन की तेरी बंशी कन्हैया, बंशी शब्द |
काहिन को तेरो राधा राधा बेन राधा वे, बंशी शब्द।
लोहे के मेरो बेन राधा वे, बंशी शब्द ।
कै सुर बाजे बंशी कन्हैया, बंशी शब्द।
बाजे बंशी कन्हैया, बंशी शब्द।
नौ सुर बाजे बेन राधा वे, बंशी शब्द |
की तेरो बेन कन्हैया, बंशी शब्द।
लख तेरो बेन राधा वे, बंशी शब्द।
लाख टका की बंशी कन्हैया, बंशी शब्द।
अनमोलन मेरो बेन राधा वे, बंशी शब्द।

नोट – उपरोक्त कुमाऊनी बैठकी होली गीत लिरिक्स बगौली पुस्तक भण्डार लोहाघाट द्वारा सम्पादित प्राचीन ऐतिहासिक कुमाऊनी होली संग्रह किताब से लिये गए हैं।

इसे भी पढ़े – विश्व प्रसिद्ध है उत्तराखंड की सांस्कृतिक कुमाउनी होली।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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