Wednesday, April 16, 2025
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कर्कोटक नागदेवता मंदिर भीमताल : बेतिया सांपों का रहस्य और आस्था का अद्भुत केंद्र

कर्कोटक नागदेवता मंदिर भीमताल : उत्तराखंड के नैनीताल जिले में भीमताल कस्बे से 3 किलोमीटर पूर्वोत्तर दिशा में पांडेगांव के ऊपर एक प्राचीन नागदेवता कर्कोटक का पूजन स्थल स्थित है। यहां एक छोटा-सा मंदिर है । नागपंचमी के दिन इस मंदिर में स्थानीय लोग नागदेवता की पूजा करते हुए उन्हें दूध अर्पित करते हैं।

कर्कोटक नागदेवता मंदिर भीमताल  से जुडी बेतिया सांप और साधु की कथा :

इस स्थल से जुड़ी एक रोचक जनश्रुति है। प्राचीनकाल में यह क्षेत्र बेतिया नामक एक विशेष प्रजाति के छोटे और अत्यंत विषैले सांपों का गढ़ था। यह सांप जमीन से उछलकर व्यक्ति के सिर पर डंक मारते थे, जिससे तुरंत मृत्यु हो जाती थी।

एक बार, एक साधु अपने शिष्य के साथ इस स्थान से गुजर रहे थे। अचानक, एक बेतिया सांप ने शिष्य को डंक मार दिया। साधु ने अपनी मंत्र शक्ति और झाड़-फूंक से शिष्य को बचा लिया। इसके बाद, साधु ने इस क्षेत्र को बेतिया सांपों के आतंक से मुक्त करने का संकल्प लिया।

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साधु ने एक नक्कारा (बड़ा ढोल) मंगवाया और छकाता की चोटी पर खड़े होकर एक हाथ में घंटा और दूसरे में झंडा थामकर नक्कारे की ध्वनि के साथ बेतिया सांपों को निर्विष करने का मंत्र पढ़ा। साधु ने घोषणा की कि जहां तक नक्कारे की आवाज जाएगी और जितना क्षेत्र यहां से दिखाई देगा, वहां बेतिया सांप का विष निष्क्रिय हो जाएगा।

कर्कोटक नागदेवता मंदिर भीमताल

स्थानीय मान्यताएं और नाग पूजा :

साधु की इस घटना के बाद से, इस स्थान को नागदेवता कर्कोटक का नाम दिया गया। यहां नागपंचमी के दिन लोग दूध चढ़ाकर नागदेवता की पूजा करते हैं। ग्रामीणों की मान्यता है कि कर्कोटक नाग पशुओं का रक्षक है और दही-दूध से इनकी पूजा करने से पशुओं की रक्षा होती है।

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बेतिया मंत्र का रहस्य :

कहा जाता है कि साधु ने बेतिया सांप के मंत्र को जनहित के लिए एक पत्थर पर उत्कीर्ण किया था। प्रसिद्ध इतिहासकार श्री बद्रीदत्त पांडे के अनुसार, यह मंत्र गौला नदी के किनारे डहरा गांव के पास एक विशाल पत्थर पर लिखा गया था। हालांकि, समय के साथ यह उत्कीर्ण लेख अस्पष्ट हो गया।

यहां के निवासियों की आस्था और इस स्थान की पौराणिकता इसे एक अद्वितीय स्थल बनाती है। कर्कोटक नाग के प्रति श्रद्धा और पूजन की यह परंपरा आज भी जारी है, जो इस क्षेत्र के सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व को दर्शाती है।

इन्हे भी पढ़े :

उत्तराखंड के नागदेवता और कुमाऊं की प्रसिद्ध नागगाथा

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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