Tuesday, April 29, 2025
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कैंची धाम के जाम से पस्त है पहाड़ , भयंकर परेशानी से जूझ रहे हैं हल्द्वानी रेफर मरीज

कैंची धाम के जाम से कब मिलेगी निजात – कैंची धाम आज भारत के सबसे बड़े धामों में शुमार है। पिछले कुछ सालों में कैंची धाम आस्था का बड़ा केंद्र बनकर उभरा है। बीते तीन चार सालों से कैंची में श्रद्धालुओं की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। यहाँ बढ़ती हुई भीड़ का मुख्य कारण है सोशल मीडिया पर कैंचीधाम का जबरदस्त प्रचार और बीते कुछ समय में यहाँ भारत सहित विदेशी सेलेब्रिटियों का आगमन। जिससे इस मंदिर को काफी प्रचार मिला और यहाँ अचानक श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ गई।

श्रद्धालुओं की संख्या अचानक बढ़ने से यहाँ प्रतिदिन जाम लग रहा है। कैंची धाम में जाम से कुमाऊं मंडल के अधिकांश क्षेत्र त्रस्त हैं। इस जाम के कारण जहाँ हल्द्वानी जाने और आने वालों को काफी परेशानी हो रही है ,वहीँ जाम के कारण अल्मोड़ा बागेश्वर ,रानीखेत और हल्द्वानी जैसी बड़ी बाजारों की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है। यहाँ तक कि पर्यटक भी क्षेत्र की बहुत अच्छी छवि लेकर नहीं जा रहे हैं। पहाड़ के छोटे कस्बो या जिला मार्किट में ऐसी भीड़ पहुंच जाए तो वहां की हालत त्रस्त होनी लाज़मी है।

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कैंची धाम के जाम

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स्थापना से आज तक नहीं देखी ऐसी भीड़ –

कैंची धाम की स्थापना 1960 के आसपास हो गई थी । तबसे अब तक ऐसी भीड़ कभी नहीं देखी। हल्द्वानी भवाली अल्मोड़ा -पिथौरागढ़ हाइवे एक तरह से कुमाऊं की लाइफ लाइन है। मैदान से रोज कई ट्रक पहाड़ों के लिए सामान ,सब्जियां राशन लेकर निकलते हैं। एक जानकारी के अनुसार इस लाइन पर रोज 400 से ज्यादा ट्रक आवाजाही करते हैं ,और वे एक हफ्ते में लगभग 03 से चार फेरे लगा देते थे।

अब एक फेरा लगाना भी भारी पड़ रहा है। जाम से बचने के लिए ट्रकों को अलग अलग रास्तों से निकाला जा रहा है , जिसकी पूर्ति के लिए सामान की कीमतों में बढ़ोतरी हो रही ,जिससे सीधा सीधा कुमाऊं की आम जनता प्रभावित हो रही है।

यही हाल यहाँ से निकलने वाले टेक्सी ,गाड़ियों का भी हो रहा है। आम जनता तो त्रस्त हो रही है ,साथ साथ कैंची धाम के आगे का पर्यटन बिजनस भी चौपट हो रहा है। प्रशाशन द्वारा कैंची धाम के जाम से निपटने के लिए मंदिर से कुछ दुरी पहले एक सुरंग बनाकर वैकल्पिक मार्ग की संभावनाएं तलाशी जा रही थी ,लेकिन सुरंग वाली जगह की मिटटी कच्ची होने के कारण योजना शुरू होने से पहले ही डब्बाबंद हो गई।

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मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी की घोषणा के बाद भवाली राति घाट बायपास रोड चौथाई बनने के बाद वन विभाग का पेंच गया ,जिस कारण यह योजना भी अधर में लटक गई। एक जानकारी के मुताबिक कैंचीधाम में रोज 4  से 5 हजार वाहन आ रहे हैं और वीकंड पर तो इनकी संख्या दस हजार तक पहुंच जाती है।

कैंची धाम के जाम से परेशान कुमाऊं की जनता

कैंची धाम के जाम से बीमार मरीजों को ज्यादा दिक्कत हो रही है –

कैंची धाम के जाम से सबसे ज्यादा परेशान हो रहे हैं बच्चे और बीमार मरीज। यह कोई छुपाने वाली बात नहीं है कि पहाड़ों के सभी हॉस्पिटल अब हॉस्पिटल कम और रेफर सेंटर ज्यादा हैं। अल्मोड़ा बागेश्वर ,रानीखेत पिथौरागढ़ से अधिकतम मरीज हल्द्वानी या मैदानी हॉस्पिटलों को रेफर किये जाते हैं ,और वहीं मरीज कैंची धाम के जाम में फ़सकर जिंदगी मृत्यु के बीच जूझते रहते हैं।

कैंची धाम के जाम से कब मिलेगी निजात

पार्किंग का कोई ठोस विकल्प अभी तक सरकार के पास नहीं दिख रहा है। ऐसे हालात देख कर लगता है कि कुमाऊं के निवासियों को अभी जल्द कैंची धाम के जाम से निजात मिलती नहीं दिख रही। उल्टा डर है कि आने वाले दिनों में कहीं स्थिति बाद से बदत्तर न हो जाय। जल्द से जल्द जनप्रतिनिधियों और सरकार ने इस विकराल होती समस्या को गंभीरता से नहीं लिया तो भविष्य में होने वाले भयंकर जाम से पहाड़ के निवासियों की हालत बद्तर हो सकती है।

हालाँकि अल्मोड़ा पिथौरागढ़ क्षेत्र के सांसद ,वर्तमान सड़क परिवहन राजमार्ग राज्य मंत्री श्री अजय टम्टा जी ने बीते अक्टूबर में हरतापा बायपास  की घोषणा की थी। सर्वे का काम बीते 08 नवंबर को पूरा हो चूका है। देखना यह है कि क्या यह बायपास पूरा पाएगा या एक बार फिर सुस्त सरकारी मशीनरी की भेंट चढ़ जायेगा।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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