Thursday, April 17, 2025
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जटिया मसाण को साध कर बने गोल्ज्यू गढ़ी चम्पावती के राजा

यह लोक कथा धुमाकोट और गड़ी चम्पावती (चंपावत) की लोक कथा है। इस प्रसिद्व लोक कथा के अनुसार भगवान गोरिया ने आतंकी जटिया मसाण का मान मर्दन करके उसे बंदी बनाया था। लोक कथाओं के अनुसार जब भगवान गोरिया धुमाकोट में सुखपूर्वक शाशन कर रहे थे। उनके सुशाशन उनकी वीरता और उनके न्याय की ख्याति चारों ओर फैलने लगी थी । उसी काल मे चंपावत में नागनाथ नामक एक न्यायकारी और धर्मात्मा राजा शाशन करते थे। राजा बृद्धावस्था में आ गए थे, लेकिन उनकी कोई संतान नही थी। वे अपने उत्तराधिकारी की चिंता में डूबे रहते थे। उधर सैमाण के तालाब में एक भयानक मसाण रहने लगा था। वह मसाण लोगों को पकड़ कर खा जाता था।उस मसाण का नाम जटिया मसाण था।

जटिया मसाण के बारे में कहा जाता है कि यह एक भयानक प्रेत होता है। जोहार में इसकी पूजा में खिचड़ी -भात और एक लाठी और बांसुरी भी दी जाती है। इसका प्रभाव क्षेत्र कुमाऊं मंडल तक माना जाता है।

इस मसाण ने राजा नागनाथ के राज्य में आतंक मचाया हुवा था। रोज किसी न किसी को पकड़ कर खा जाता था। प्रजा त्राहिमाम -त्राहिमाम करने लगी । राजा से न्याय के लिए प्रार्थना करने लगी। राजा बृद्ध होने के कारण जटिया मसान का मान मर्दन करने में असमर्थ थे। मंत्रियों ने राजा को सुझाव दिया कि, इस भयानक आतंकी मसाण का मान मर्दन केवल धुमाकोट के राजा गोरिया कर सकते हैं। मंत्रियों की सलाह पर राजा नागनाथ ने धुमाकोट के लोक कल्याणकारी राजा गोरिया को आमंत्रित किया। एक राजदूत को पत्र के साथ आमंत्रण के लिए धुमाकोट भेजा गया। धुमाकोट के राजा गोरिया ने चंपावत की प्रजा का दुःख का सज्ञान लेते हुए, तुरंत इस आमंत्रण को स्वीकार कर लिया।

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माता कालिका का आशीर्वाद लेकर गोरिया धुमाकोट से चंपावत के लिए चले गए। गोरिया पिथौरागढ़, रामेश्वर होते हुए, लोहाघाट में गुरु गोरखनाथ जी के आश्रम में पहुच गए। इन सभी स्थानों में गोलू देवता का खूब स्वागत सत्कार हुवा । इन रास्तों से होते हुए वे अंत मे चंपावत में पहुच गए। चंपावत में राजा नागनाथ और पीड़ित जनता ने उनका भव्य स्वागत किया। अब जनता को भरोसा हो गया था कि उनके दुःखों का अंत करने वाला तारणहार आ गए हैं।

जटिया मसाण

जटिया मसाण और उसके आतंक के बारे में सुनकर भगवान गोल्ज्यू को बहुत दुःख हुवा। और वे जटिया का मान मर्दन करने सैमाण के तालाब की ओर चल पड़े। गोरिया ने तालाब के पास जाकर जटिया को ललकारा । जटिया, गोरिया की ललकार सुनकर गुस्से से फुंकारता हुवा तालाब से बाहर निकला। दोनो के बीच भयंकर युद्ध शुरू हो गया । 3 दिन 3 रात तक दोनो का युद्ध चला,अंत मे भगवान गोरिया के आगे वो मसाण कितने दिन तक टिकता, अंत मे उसने हार मान ली। गोल्ज्यू उससे धरम लेकर ( वचन लेकर ) उसे राजा नागनाथ के सामने प्रस्तुत कर दिया। राजा खुश हो गए ,और राजा से ज्यादा प्रजा खुश हो गई। सारी प्रजा खुशी के मारे गोरिया की जयकार करने लगी।

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वृद्ध राजा की कोई संतान नही थी, गोरिया को देखकर उनकी उत्तराधिकारी की चिंता भी समाप्त हो गई। उन्होनें गोल्ज्यू को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करके उन्हें राजपाट सौंप कर ,स्वयं वानप्रस्थ आश्रम को चले गए। जनता भी खुश हो गई, उन्हें एक लोक कल्याणकारी न्यायकारी, राजा मिल गए। भगवान गोरिया अपनी माँ कालिका को भी वहीं ले आये और गढ़ी चम्पावती से सारे कुमाऊं का राजकाज देखने लगे। स्वयं सारे राज्य में घूम घूम कर प्रजा की समस्याओं को सुनना और उनकी समस्याओं का निवारण करने लगे। अन्यायी को दंडित और पीड़ितों को न्याय दिलाने लगे। धीरे धीरे वे एक राजवंशी लोक कल्याणकारी देवता के रूप में पूजे जाने लगे।

नोट – इस लोक कथा का संदर्भ प्रो DD शर्मा जी की किताब उत्तराखंड ज्ञानकोष से लिया गया है ।

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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