Thursday, May 22, 2025
Homeकुछ खासजब दहेज में मिला पहाड़ के इस गांव को पानी जानिए दहेज...

जब दहेज में मिला पहाड़ के इस गांव को पानी जानिए दहेज का पानी की रोचक कहानी !

दहेज का पानी दोस्तों दहेज़ में भौतिक चीजें ,सोना चांदी ,गाड़ी घोडा की बात सुनी होगी।  लेकिन क्या आपने कभी सुना कि दहेज़ में पानी मिला है। आज उत्तराखंड के एक ऐसे गांव की कहानी बताने जा रहे हैं ,जहाँ के निवासी आज भी दहेज के पानी का प्रयोग करते हैं।

गर्मियों में पहाड़ों में पानी की काफी मारमार हो जाती है। गर्मियों में पहाड़ों के पानी का स्तर काफी कम हो जाता है। ऐसे में कई पानी के श्रोत सूख जाते हैं। मगर कई प्राकृतिक श्रोत ऐसे होते हैं जो भयंकर गर्मी पड़ने के बावजूद भी निरंतर बहते रहते हैं। और पहाड़वासियों को पानी की आपूर्ति करते रहते हैं। ये श्रोत विपरीत परिस्थितयों यानि भयंकर गर्मी में भी सदा बहते रहते हैं इसलिए ऐसे सदानीरा श्रोतों से कई कहानियां ,किस्से जुड़े होते हैं।

हालांकि इनके सदा बहने के कई वैज्ञानिक और भौगोलिक कारण हो सकते हैं। ऐसा ही एक सदानीरा श्रोत अल्मोड़ा के सोमेश्वर क्षेत्र में भी है ,जिसके साथ दहेज का पानी वाला दिलचस्प किस्सा जुड़ा है।

सोमेश्वर का संक्षिप्त  परिचय :

सोमेश्वर घाटी उत्तराखंड अल्मोड़ा जिले में स्थित एक रमणीक घाटी है। यह अल्मोड़ा जिले में 4752 मीटर की- ऊंचाई पर पट्टी बोरारौ परगना बारामंडल में अल्मोड़ा कौसानी राजमार्ग पर अल्मोड़ा से 39 किमी और द्वाराहाट से 32 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। सोमेश्वर घाटी का कत्यूर ,चंद शाशनकाल में बड़ा महत्त्व रहा है। पर्वतों से घिरी ये घाटी बड़ी सूंदर और रमणीक लगती है। अंग्रेज घुमन्तु पी बैरन ने इसे एशिया की सबसे सूंदर घाटियों में से एक बताया है।

सोमेश्वर में स्थित है दहेज का पानी वाला गांव –

दहेज का पानी के नाम से विख्यात यह सदानीरा पानी की जलधारा सोमेश्वर के लद्युड़ा नामक गांव में स्थित है। यह गांव सोमेश्वर बाजार से लगभग 3 किलोमीटर आगे रानीखेत रोड पर स्थित है। इस गांव में लगभग गांव से लगभगआधा  किलोमीटर दूर चीड़ के जंगल के पास एक जलधारा है ,जिसे दहेज़ का पानी कहते हैं।

इस जलधारा की खासियत यह है कि यह सदा बहता रहता है। यह धारा एक दीवार से निकलती है। और इसके आस पास की पूरी जमीन सूखी है। इसके अलावा सबसे बड़ी बात इसके ठीक ऊपर चीड़ का घना जंगल है.। चीड़ बारे में कहा जाता है कि ये अपने आस पास के प्राकृतिक श्रोतों को सुखा देता है। लेकिन यहाँ चीड़ के जंगल के ठीक नीचे ये सदानीरा श्रोत है।

आखिर क्यों कहते हैं इस श्रोत को दहेज का पानी जानिए इस लोककथा में :-

इस सदानीरा श्रोत के बारे में स्थानीय निवासी एक लोककथा बताते हैं। इस लोककथा के अनुसार प्राचीन काल में इस गांव में पानी की काफी किल्लत थी। एक बार चखुटिया गेवाड़ से एक लड़की की शादी यहाँ हुई। जब वो शादी करके यहाँ आई तो उसे यहाँ की पानी की कमी के बारे में पता चला और उसे काफी दिक्क्तें झेलनी पड़ी। इसके बाद जब वो अपने मायके गेवाड़ गई तो उसने अपने पिता को ससुराल में होने वाले पानी के दुःख के बारे में बताया। तब लड़की के पिता ने उसे आश्वासन दिया कि जल्द ही वे उसका ये दुःख दूर कर देंगे।

जब दहेज में मिला पहाड़ के इस गांव को पानी जानिए दहेज का पानी की रोचक कहानी !

जब लड़की मायके से ससुराल को जा रही थी तब उसके पिता ने उसे कुछ सामग्री देकर विदा करते हुए कहा कि ,बेटी आज तुम ससुराल जाते समय जहाँ पर पीछे मुड़कर देखोगी वहीं पर पानी निकल जायेगा। लड़की चुप चाप बिना पीछे मुड़े अपने ससुराल तक आ गई। क्योकि उसे पता था यदि पीछे देख लिया तो पानी वही आ जायेगा।

जब वो लद्युडा गांव के पास पहुंची तब उसने पीछे मुड़कर देखा तो ,वही पर पानी की जलधारा बहने लगी। और उस गांव के लोगो और उस लड़की का जीवन सरल हो गया। और एक पिता ने पहली बार अपनी पुत्री को दहेज़ में पानी दिया। और उस दिन से वह जलधारा दहेज़ का पानी के नाम से विख्यात हो गई।

वीडियो यहाँ देखें –

निष्कर्ष –

हालाँकि दहेज का पानी उपरोक्त कथा एक लोक कथा है जो एक सदानीरा जलश्रोत से जुडी है। लेकिन इस लोककथा में एक पिता का अपनी पुत्री के प्रति अप्रतिम प्यार झलकता है। पहाड़वासियों का प्रकृति को रिश्ते में बांधकर उससे प्यार जताना और उसका संरक्षण करने की भावना को दर्शाता है।

इन्हे भी पढ़े :

ऐतिहासिक और पुरातात्विक रूप से समृद्ध है अल्मोड़ा का दौलाघट क्षेत्र

रानीखेत के कुवाली गांव में स्वयं विराजते भगवान बद्रीनाथ

हमारे व्हाट्सप ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

Follow us on Google News Follow us on WhatsApp Channel
Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments