Friday, April 18, 2025
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चकराता: देहरादून से केवल 100 किमी दूर, पहाड़ों के राजा के रूप में प्रसिद्ध हिल स्टेशन

चकराता उत्तराखंड का एक प्रमुख और ऐतिहासिक पर्वतीय क्षेत्र है, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता, सांस्कृतिक धरोहर और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है। यह देहरादून जिले के अंतर्गत, समुद्रतल से 2065 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। चकराता देहरादून नगर के पश्चिम में, कालसी होते हुए करीब 100 किमी की दूरी पर स्थित है। जिस प्रकार मसूरी को पहाड़ों की रानी कहते हैं ,ठीक उसी प्रकार चकराता पहाड़ों का राजा के नाम से प्रसिद्ध हिल स्टेशन है।

चकराता का ऐतिहासिक महत्व :

ब्रिटिश शासन के दौरान चकराता की स्थापना अंग्रेज सैनिकों के विश्राम स्थल के रूप में की गई थी। उस समय, इस क्षेत्र की सड़कों का उपयोग केवल ब्रिटिश सैनिकों के लिए ही सीमित था। वर्तमान में, यह क्षेत्र प्रशासनिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां एस.डी.एम कोर्ट, तहसील और विकासखंड कार्यालय स्थापित हैं।

चकराता का प्राचीन इतिहास इसे और भी आकर्षक बनाता है। इसकी पहचान महाभारत काल की ‘एकचक्रानगरी’ से की जाती है। मान्यताओं के अनुसार, पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान यहां समय बिताया था। इस दौरान भीम ने अपने शरणदाता ब्राह्मण के पुत्र की रक्षा करते हुए बकासुर नामक राक्षस का वध किया था।

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जौनसार-बावर और सांस्कृतिक धरोहर

चकराता क्षेत्र का निकटस्थ जनजातीय इलाका जौनसार-बावर, अपनी विशिष्ट जनजातीय परंपराओं और सामाजिक-सांस्कृतिक धरोहर के लिए विख्यात है। यहां की संस्कृति और रीति-रिवाज उत्तराखंड के अन्य हिस्सों से अलग और अनोखे हैं। यहां के मुख्य देवता महासू (महाशिव) हैं। जौनसार के लगभग सभी गांवों में महासू देवता के मंदिर स्थित हैं। इन मंदिरों की वास्तुकला अद्वितीय है, और कुछ मंदिर अत्यधिक भव्य हैं।

चकराता

 धार्मिक महत्व :

चकराता के पास स्थित बावड़ी नामक स्थान में शैव और शाक्त परंपराओं से संबंधित चक्रपूजा होती थी। यहां ऋग्वेद में वर्णित चक्रम्प्रा देवी का पूजास्थल था, जिसे ‘चक्रस्थान’ कहा जाता था। बाद में, अंग्रेजी उच्चारण में इसे ‘चकराता’ कहा जाने लगा।

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यहां एक विशाल देवालय भी स्थित है, जिसमें भगवान राम, कृष्ण और हनुमान की मूर्तियां प्रतिष्ठापित हैं। इसके अलावा, हर वर्ष डांडा के मैदान में बिस्सू मेले का आयोजन किया जाता है, जो यहां की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा है।

प्राकृतिक सौंदर्य और मुख्य आकर्षण

चकराता चारों ओर से पहाड़ों से घिरा हुआ है। इसकी ऊबड़-खाबड़ भूमि और घने जंगल इसकी प्राकृतिक खूबसूरती को और भी बढ़ाते हैं। समुद्रतल से 2850 मीटर की ऊंचाई पर स्थित देववन से हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों का दृश्य बेहद मनोरम और अद्भुत है।

यहां कई दर्शनीय स्थल भी हैं, जैसे:
1. टाइगर फॉल: चकराता से 18 किमी दूर स्थित इस झरने की ऊंचाई लगभग 100 मीटर है। इसकी गर्जना मानसून के दौरान दूर से ही सुनाई देती है।
2. देववन: देवदार और बुरांश के घने जंगलों से घिरा यह स्थान प्रकृति प्रेमियों और ट्रेकिंग के शौकीनों के लिए स्वर्ग जैसा है।
3. लोखंडी और मोइला टॉप: गर्मियों में ठंडक और सर्दियों में बर्फबारी का आनंद लेने के लिए ये स्थल बेहद लोकप्रिय हैं।

चकराता

यात्रा की योजना :

कैसे पहुंचे :

दिल्ली से चकराता की दूरी लगभग 300 किमी और देहरादून से 100 किमी है। देहरादून सड़क, रेल और हवाई मार्गों से पूरे देश से जुड़ा हुआ है। देहरादून से चकराता के लिए टैक्सी या बस का उपयोग किया जा सकता है।

कब जाएं :

यहाँ पूरे वर्ष घूमने के लिए उपयुक्त है। सर्दियों में बर्फबारी, गर्मियों में ठंडा मौसम, और मानसून में हरियाली इसे हर मौसम में आकर्षक बनाती है।

कहां ठहरें :

चकराता और इसके आसपास के गांवों में होटल, होमस्टे और रिसॉर्ट्स की सुविधा उपलब्ध है। प्रकृति के करीब रहने के इच्छुक पर्यटक देववन के जंगलों में फॉरेस्ट रेस्ट हाउस में भी ठहर सकते हैं।

निष्कर्ष :

चकराता केवल एक पर्यटन स्थल नहीं है, बल्कि यह इतिहास, संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य का संगम है। यह स्थान उन यात्रियों के लिए आदर्श है, जो शांति, प्रकृति, और सांस्कृतिक धरोहर का अनुभव करना चाहते हैं। अगर आप भी उत्तराखंड के इस अनमोल खजाने को देखना चाहते हैं, तो चकराता की यात्रा जरूर करें।

इन्हे पढ़े :

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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