उत्तराखंड के पहाड़ो में एक कंटेनुमा झाड़ी पर उगने वाला , नीला लाल फल ,जिसको स्थानीय भाषा में किलमोड़ा या किनगोड़ा कहते हैं ,इसे हिंदी में दारुहल्दी कहते है। और संस्कृत में दारुहरिद्रा कहते हैं। अप्रेल से जून के मध्य होने वाले इस दिव्य फल का आनंद सभी पहाड़ वाली बड़े चाव से लेते है। किलमोड़ा का बैज्ञानिक नाम बेरवेरीज एरिस्टाटा है। किनगोड़ा की लगभग 450 प्रजातियां पुरे संसार में पाई जाती हैं। यह उत्तराखंड के 1400 से 2000 मीटर तक की उचाई पर मिलता है। इसका पौधा लगभग 2 से 3 मीटर तक ऊँचा होता है। इसके फल नील…
Author: Bikram Singh Bhandari
आजकल खुशी जोशी दिगारी और नीरज चुफाल का एक कुमाउनी झोड़ा, अल्मोड़ा अंग्रेज आयो टैक्सी में, उत्तराखंड में काफी पसंद किया जा रहा है। इस पारम्परिक झोड़े को संगीत दिया है, गोविंद दिगारी ने और इसकी रिकॉडिंग हुई है। वैदेही स्टूडियो हल्द्वानी में। जो कि खुशी जोशी दिगारी और गोविंद दिगारी का अपना स्टूडियो है। यह पारम्परिक झोड़ा नीरज चुफाल के यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध है। इस गीत पर असंख्य रील और सोशल मीडिया पर कई मीम बन चुके हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है, कि यह गीत उत्तराखंड में कितना लोकप्रिय हो चुका है। अभी हाल ही मे,…
उत्तरकाशी का त्रिशूल:- हिमालय की रमणीय घाटी में उत्तरकाशी एक ऐसा मनोहारी स्थल है, जहाँ स्वंय महादेव भोलेनाथ निवास करते हैं। माँ गंगा जहाँ असि -वरुणा से अठखेलियां करती हैं। यहां के शांत और निश्छल वातावरण में मानव ह्रदय अभूतपूर्व शांति का अनुभव करता है। उत्तरकाशी को कलयुग की काशी और मुक्तिक्षेत्र कहा गया है। यहाँ ब्रह्मा विष्णु महेश तीनो देव निवास करते हैं। काशी की तरह उत्तरकाशी में भी विश्वनाथ मंदिर है। और इसी विश्वनाथ मंदिर के प्रांगण में माँ पार्वती का शक्ति मंदिर है। और इस शक्ति मंदिर में स्थापित है ,एक आदिकालीन दिव्यास्त्र त्रिशूल , पौराणिक कथाओं…
उत्तराखंड वीर भड़ों का राज्य है। जितना यह प्राकृतिक रूप से सुंदर है, उतने ही वीर, मेहनती, साहसी यहाँ के निवासी होते है। उत्तराखंड के इतिहास में अनेक वीरों ने जन्म लिया जिनकी वीरता की गाथाएं आज हम पढ़ते है। वीरता के मामले में , उत्तराखंड में महिलाएं भी पुरुषों से कम नही रही। तीलू रौतेली, रानी कर्णवती, रानी जियारानी और रानी धना की वीरता की गाथाएं ,उत्तराखंड के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों मे लिखी हैं। आज हम अपने इस लेख में कुमाऊं की वीरांगना रानी धना की कहानी का उल्लेख कर रहें हैं। रानी धना कुमाऊं में अस्कोट के…
उत्तराखंड के पौड़ी जिले के थलीसैंण विकासखंड के अंतर्गत कन्डारस्यू पट्टी के बूंखाल में माँ काली का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। माँ काली पौड़ी के राठ क्षेत्रवासियों की आराध्य देवी है।इस मंदिर का कोई प्रमाणिक इतिहास उपलब्ध नही है। इस क्षेत्र के बड़े बुजुर्गों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 18 वी शताब्दी में हुवा है। यह देवी बूंखाल कालिका के नाम से जग प्रसिद्व है । बूंखाल काली मंदिर में प्रतिवर्ष मार्गशीष शुक्ल पक्ष में पशुबलि का बहुत बड़ा मेला लगता था। 2014 में पशुबलि बंद होने के बाद यह मेला ,सात्विक मेले में बदल दिया गया। तबसे डोली…
पहाड़ो में तिमला फल, तिमुल, तिमलु आदि नामों से पहचाना जाने वाला इस फल को हिंदी में अंजीर कहते हैं। यह फल उत्तराखंड के पहाड़ो में काफी मात्रा में प्राप्त होता है। इस फल की कोई फसल नही होती यह स्वतः ही उगता है। पक्षी इसके बीजों को इधर से उधर ले जाने में सहयोग करते हैं। कई कीट और पक्षी इसके परागकण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। तिमला फल को अंग्रेजी में Elephant fig (एलिफेंट फिग ) कहते हैं। तिमलु का वैज्ञानिक नाम Ficus auriculata (फाइकस आरीकुलेटा) है। तिमल मोरेसी समुदाय का पौधा है। पहाड़ों में तिमला फल…
उत्तराखंड में एक से बढ़कर एक विभूतियों ने जन्म लिया है। उत्तराखंड में वीर पुरुषो के साथ -साथ कई वीरांगना नारियों ने भी उत्तराखंड के स्वर्ण इतिहास को अमर किया है। इन्ही महापुरुषों में से एक महान पतिव्रता नारी रामी बौराणी की लोक गाथा का संकलन कर रहें हैं। सभी पाठको से निवेदन है कि ,उत्तराखंड की इस अमर प्रेम कथा और पतिव्रता नारी की अमर कहानी को शेयर अवश्य करें। गढ़वाल के एक गांव में रामी और उसकी बूढी सास अकेले रहती है। रामी बौराणी (बहुरानी) का पति उस समय किसी राजा की सेना में सैनिक की नौकरी करता…
दोस्तों प्रसिद्धि की बात करें तो देवभूमी उत्तराखंड की हर चीज प्रसिद्ध है। प्राकृतिक सौंदर्य ,देवभूमी के देवता ,औषधीय फल फूल ,जड़ी -बूटी ,यहाँ की संस्कृति आदि। इसके अलावा यदि आप स्वाद में उत्तराखंड को ढुढंगे तो अव्वल पाएंगे। यहाँ की प्रसिद्ध मिष्ठान बाल मिठाई पुरे संसार में प्रसिद्ध है। बाल मिठाई के साथ अन्य मिठाई ,सिंगोड़ी मिठाई और खेचुवा मिठाई भी अत्यधिक प्रसिद्ध है। बाल मिठाई की अत्यधिक प्रसिद्धि के कारण, सिंगोड़ी मिठाई की चमक थोड़ी कम हुई ,लेकिन फीकी नहीं पड़ी। क्योकि बाल मिठाई का अपना स्वाद है ,और सिगोड़ी की अपनी वो मालू के पत्तों वाली भीनी…
पहाड़ों पर वास करने के लिए पहाड़ जैसी कठोरता वाली इच्छा शक्ति और जीवन में वैसा ही अनुशाशन भरी जीवनशैली की आवश्यकता होती है। और हमारे पुरखों ने पहाड़ों पर जीवन यापन करने के लिए, समृद्ध भोजन से लेकर समृद्ध परम्पराओं का निर्माण किया और स्वयं आरोग्य और सुखी जीवन यापन करके, हमे विरासत में समृद्ध जीवन शैली दे गए। इन्ही परम्पराओं में शामिल है, पहाड़ का पारम्परिक भोजन छसिया, छछिया, छसेड़ो। छास में चावल या झंगोरा पाकर तैयार किया जाता है, उत्तराखंड का यह विशेष पकवान। जैसा की हम सबको पता है, छास पेट के लिए बहुत अच्छी होती…
उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले में समुद्रतल से 1540 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है संस्कृति नगरी के नाम से विख्यात द्वाराहाट। द्रोणागिरी की तलहटी में बसा यह प्राचीन और सांस्कृतिक नगर अल्मोड़ा जिला मुख्यालय से लगभग 66 किलोमीटर दूर स्थित है। नैनीताल से द्वाराहाट की दूरी 99 किलोमीटर है। यहाँ से नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम 128 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। रानीखेत कर्णप्रयाग मार्ग पर स्थित द्वाराहट को पाली पछाऊं संस्कृति के अंतर्गत आता है। कत्यूरी राजाओं की राजधानी रहा द्वाराहाट नगर अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत ,उन्नत नागर शैली और सौन्दर्यमयी भौगोलिकी के लिए पुरे विश्व में प्रसिद्ध है।…