उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले में समुद्रतल से 1540 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है संस्कृति नगरी के नाम से विख्यात द्वाराहाट। द्रोणागिरी की तलहटी में बसा यह प्राचीन और सांस्कृतिक नगर अल्मोड़ा जिला मुख्यालय से लगभग 66 किलोमीटर दूर स्थित है। नैनीताल से द्वाराहाट की दूरी 99 किलोमीटर है। यहाँ से नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम 128 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। रानीखेत कर्णप्रयाग मार्ग पर स्थित द्वाराहट को पाली पछाऊं संस्कृति के अंतर्गत आता है।
कत्यूरी राजाओं की राजधानी रहा द्वाराहाट नगर अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत ,उन्नत नागर शैली और सौन्दर्यमयी भौगोलिकी के लिए पुरे विश्व में प्रसिद्ध है। मंदिरो का नगर द्वाराहाट को ही कहा जाता है। यह क्षेत्र पुरातत्व की दृष्टि से पुराने और मूलयवान मंदिरों का क्षेत्र रहा है। मंदिर समूहों में द्वाराहाट में तीन प्रकार के मंदिर समूह है , कचहरी ,मनिया रत्नदेव। तथा इसके अतिरिक्त वैष्णवी शक्तिपीठ दुनागिरि ,विमाण्डेश्वर मंदिर तथा अन्य कई ऐतिहासिक और पौराणिक मंदिर यहाँ अव्यस्थित हैं। द्वाराहाट नगर को इतिहास में वैराट ,लखनपुर आदि नामों से भी जाना जाता है। यहाँ स्थित 360 मंदिरों ,365 नौलों (बावड़ियां ) की स्थापत्य कला ,काशी मथुरा के सांस्कृतिक मंदिरों व् धरोहरों से कम नहीं है। यहाँ के कई ऐतिहासिक मंदिर आज भी लोगो के लिए शोध का विषय बने हुए हैं।

मित्रों यह तो था , संस्कृति नगरी द्वाराहाट का संक्षिप्त परिचय। जैसा की हम सबको पता है कि ,द्वाराहाट को उत्तर की द्वारिका भी कहते है। ऐसे यह नाम देने के पीछे कई मान्यताये ,और लोक कथाएं हैं। इस नगर का पांडवों से बड़ा संबंध रहा है। पांडवों से जुडी अनेकों प्रकार की धरोहरें यहाँ अव्यस्थित है। पौराणिक कथाओं के आधार पर, द्वाराहाट के बारे में बताया जाता है कि , जब भगवान् श्रीकृष्ण मथुरा पर ,लगातार आक्रमणों से परेशान होकर उन्होंने अपना राज्य द्वारिका को पहाड़ो की इस सुरम्यवादी में बसाने की सोची। लेकिन कहते हैं कि यहाँ पानी की कमी की वजह से ,उन्हें अपनी द्वारका गुजरात में बसानी पड़ी।
इस पर एक लोक कथा भी है ,कहते हैं जब देवताओं ने द्वाराहाट को द्वारिका बना,ने की ठानी तो ,गगास नदी को सन्देश भेजा कि ,रामगंगा और कोशी नदी को बोलो की वे दोनों नदियां अपना संगम द्वाराहाट में सुनिश्चित करें। गगास ने इस कार्य को पूर्ण करने के लिए छाना गावं के पास के सेमल के पेड़ को बोला। कहते हैं जब रामगंगा नदी गिवाड़ में थी ,तब सेमल के पेड़ को नींद आ गई। और जब रामगंगा तल्ले गीवाड़ को चली गई ,तब सेमल के पेड़ की नींद खुली ,तो उसने वही जाकर गगास का सन्देश बताया। तब रामगंगा ने कहा कि ,थोड़ा पहले बताते तो कुछ हो सकता था। लेकिन अब मेरा लौटना संभव नहीं है। कहते है इस कारण द्वाराहाट द्वारिका नहीं बन पायी। और उस दिन से जो सन्देश देने में देर करता है ,उसे सेमल का पेड़ कहते हैं।
यहाँ भी पढ़े – मझखाली तिखुन कोट किले का ऐतिहासिक किस्सा। .
हमारे वह्ट्सस्प ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।