वृद्ध जागेश्वर मंदिर – वृद्ध जागेश्वर जागेश्वरधाम से 7 किलोमीटर ऊपर दक्षिण-पश्चिम में पैदल मार्ग एक पहाड़ी पर वृद्ध जागेश्वर (शिव) का मूल स्थान है। जागेश्वर की पवित्र नदी जटागंगा का उद्गम स्थल भी यहीं है। यहां से हिमालय का भव्य दृश्य दृष्टिगोचर होता है। शिखर पर स्थित इस देवालय के 1 किमी. पूर्व दण्डेश्वर महादेव का शिखर शैली का देवालय भी स्थित है। इसके विषय में एक जनश्रुति है कि एक बार जब एक चन्द्रवंशी एक युद्ध के लिए जा रहे थे तो उन्हें यहां पर रात हो गयी और उन्होंने यहीं पर अपना डेरा डाल दिया। जब उनके…
Author: Bikram Singh Bhandari
भासर देवता :- भासर देवता का मंदिर गढ़वाल क्षेत्र के टिहरी जनपद की कड़ाकोट पट्टी के कफना नामक गांव में स्थित है। इसका निशान होता है लोहे का त्रिशूल या कटार। इनके बारे में कहा जाता है कि यह नागराजा का मामा तथा अन्य देवताओं का बूढ़ा मामा हैं। माँ चन्द्रवदनी देवी इनकी बहिन है। भासर देवता की माता का नाम मेघमाला है। क्षेत्रपाल, घण्टाकर्ण, नगेल देवता आदि को इनका भाई भी माना जाता है। इसमें असीम शक्ति व सामर्थ्य माना जाता है। बिजली गिराना, पानी को दूध बना देना आदि इनकी शक्ति के परिचायक हैं। अग्नि की ज्वलनशक्ति को…
कुटटी देवी उत्तराखंड गढ़वाल मंडल के सिद्धपीठों में गिना जाने वाला कुटेटी देवी का मंदिर गढ़वाल मंडल के उत्तरकाशी जनपद में उसके मुख्यालय से लगभग 2-3 किलोमीटर की दूरी पर गंगा के उस पार वारणावत पर्वत के शिखर पर स्थित है। कहते हैं उत्तरकाशी का ऐरासूगढ़ भी यहीं पर था। पुरे उत्तराखंड में इसकी बड़ी मान्यता है। यह मंदिर देहरादून से 192 किलोमीटर दूर और टिहरी से 74 किलोमीटर दूर है। उत्त्पत्ति से जुडी कहानी और पौराणिक महत्त्व – इसके विषय में बड़ी चमत्कारिक कथाएं सुनने को मिलती हैं। इसके विषय में जनश्रुति है कि यह मुस्लिम शासनकाल में आत्मरक्षा…
उत्तराखंड के बागेश्वर में जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर सनगाड़ गावं में स्थित है नौलिंग देवता मंदिर। ये इस क्षेत्र के प्रसिद्ध लोकदेवता हैं। इनका देवालय अपनी भव्यता के कारण पुरे प्रदेश में प्रसिद्ध है। यहाँ नवरात्रियों में विशेष पूजा अर्चना होती है। यहाँ की धार्मिक मान्यता के अनुसार यदि कोई संतान हीन महिला यहाँ 24 घंटे अखंड दीप के साथ खड़रात्रि जागरण करती है तो उसे नौलिंग देवता संतान सुख देते हैं। नौलिंग देवता का जन्म – नौलिंग देवता के जन्म के बारे में कहा जाता है कि ये श्री 10008 मूल नारायण भगवान् के पुत्र हैं।…
घंटाकर्ण देवता : बद्रीनाथ के मंदिर के दाहिनी ओर परिक्रमा में बिना धड़ की एक मूर्ति है जिसे घंटाकर्ण की मूर्ति कहा जाता है। घंटाकर्ण का शाब्दिक अर्थ है ‘वह व्यक्ति जिसके कान घंटे के आकार के हैं अथवा जो अपने कानों में घंटे लटकाये रखता है।’ इसके नाम के सम्बन्ध में हरिवंश पुराण में विस्तार से बताया गया है कि यह एक पिशाच योनि का प्राणी था जो कि शिव का ऐसा अनन्य भक्त था कि किसी अन्य देवी-देवता का नाम भी नहीं सुनना चाहता था। उसके कानों में ऐसा कोई नाम सुनाई न पड़ सके इसलिए वह अपने…
भगवान् 1008 मूल नारायण का पुरातन देवालय बागेश्वर जनपद के अन्तर्गत बागेश्वर-पिथौरागढ़ मोटर मार्ग पर नाकुरी पट्टी में उसके घुर अंचल में घरमघर से 9 किलोमीटर चौकोड़ी से 18 किमी. उत्तर पर्वत शिखर पर, समुद्रतट से 9,126 फीट या 2765.4 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस पर्वत को ‘शिखर पर्वत’ के नाम से पुकारा जाता है। ‘शिखर जाने के कारण इस मंदिर को ‘शिखर मंदिर’, मुरैन’ भी कहा जाता है। श्री 1008 मूल नारायण भगवान की कहानी – स्कन्दपुराण के मानसखण्ड में भगवान् मूलनारायण पूर्वजन्म की गाथा, भगवान् नारायण के दर्शन तथा उनका अंश होने के वरदान आदि का…
भगवान् विष्णु के उत्तराखंड में स्थित पंच बद्री देवालयों में सबसे प्रसिद्ध मंदिर भविष्य बद्री मंदिर है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि कलयुग के अंत के समय जब भगवान बद्रीनाथ का मार्ग बंद हो जायेंगे तब भगवान बद्रीनाथ की पूजा भविष्य बद्री के मंदिर में होगी। भविष्य बद्री की स्थिति – भविष्यबदरी का यह मंदिर गढ़वाल मंडल के चमोली जनपद में जोशीमठ से 17 किमी पूर्व की ओर तपोवन के निकट ‘सुभाई’ ग्राम में ‘धौलीगंगा’ के तट पर समुद्रतल से 2,774 मी. की ऊंचाई पर चीड़ एवं देवदार की सघन वनी के मध्य स्थित है। इसमें काले…
दहेज का पानी दोस्तों दहेज़ में भौतिक चीजें ,सोना चांदी ,गाड़ी घोडा की बात सुनी होगी। लेकिन क्या आपने कभी सुना कि दहेज़ में पानी मिला है। आज उत्तराखंड के एक ऐसे गांव की कहानी बताने जा रहे हैं ,जहाँ के निवासी आज भी दहेज के पानी का प्रयोग करते हैं। गर्मियों में पहाड़ों में पानी की काफी मारमार हो जाती है। गर्मियों में पहाड़ों के पानी का स्तर काफी कम हो जाता है। ऐसे में कई पानी के श्रोत सूख जाते हैं। मगर कई प्राकृतिक श्रोत ऐसे होते हैं जो भयंकर गर्मी पड़ने के बावजूद भी निरंतर बहते रहते…
उत्तराखंड के नैनीताल जिले में स्थित बाबा नीम करौली का प्रसिद्ध धाम कैंची धाम आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है। आज डिजिटल क्रांति की बदौलत बाबा की दिव्य चमत्कारों या उनके आशीर्वादों की कहानियाँ घर -घर पहुंच गई हैं। बाबा के अनुयायियों की फेरिहस्त में आम आदमी से लेकर बड़े बड़े लोग हैं। उनके भक्त भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों तक फैले हैं। कैंची धाम स्थापना दिवस पर होता है विशाल भंडारा – प्रतिवर्ष 14 और 15 जून को कैंचीधाम का स्थापना दिवस मनाया जाता है। कैंची धाम के स्थापना दिवस के अवसर पर यहाँ मेला और भंडारे…
गढ़वाली बेड़ा गायक या बेड़ा नामों से पुकारी जाने वाली यह उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल की गायन -वादन करने वाली पेशेवर जाती है। उत्तराखंड की समृद्ध संस्कृति में इनका खास स्थान है। ये लोग खुद को गंधर्व गोत्र का बताते हैं। इसलिए इन्हे “हिमालय के गन्धर्व ” कहा जाता है। खुद को भगवान् शंकर का वंशज बताते हैं गढ़वाल के बादी – गढ़वाली बेड़ा गायक स्वयं को भगवान् शिव का वंशज मानते हैं। इसलिए ये अपने सर पर भगवान् शिव की तरह जटाएं रखते हैं। इनका मानना है कि इनके पूर्वजों को भगवान् शिव ने संगीत की शिक्षा दी थी।…