जैसा की हम सभी लोगो को ज्ञात है कि मकर संक्रांति पर्व को उत्तराखंड कुमाऊं मंडल में घुघुतिया त्यौहार (Ghughutiya festival ) , उत्तरैणी , पुसुड़िया त्यौहार और गढ़वाल मंडल में खिचड़ी संग्रात आदि नामो से बड़ी धूम धाम के साथ मनाया जाता है। घुघुतिया त्यौहार का संक्षिप्त परिचय इस विडियो में देखें : https://youtu.be/BUWKR8f3h0I?si=Yy95UsrLJiZc6HrS घुघुतिया त्योहार 2025 : घुघुतिया त्यौहार 2025 में मंगलवार 14 जनवरी 2025 के दिन मनाया जायेगा। 14 जनवरी के दिन सिवानी स्नानं के बाद दान पुण्य और घुघुते बनाये जायेंगे , जिन्हे बच्चे 15 जनवरी 2025 को कौओ को खिलाएंगे। वहीं सरयू पार वाले घुघुतिया…
Author: Bikram Singh Bhandari
उत्तराखंड में शीतकालीन चार धाम यात्रा – उत्तराखंड, जिसे “देवभूमि” के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप का एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ धर्म, संस्कृति और प्रकृति का अद्भुत संगम होता है। यहाँ स्थित चार प्रमुख धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री, श्रद्धालुओं के लिए एक विशेष स्थान रखते हैं। लेकिन ये चारों धाम अत्यधिक ठण्ड के कारण सर्दी के मौसम में बंद हो जाते हैं। देवों की पूजा में कोई अवरोध ना आये और पूजा सतत चलती रहे इसलिये इन मंदिरों के देवों के प्रतीकात्मक रूपों को वहां से कम ऊंचाई वाली जगहों पर पूजा जाता है…
वैसे तो कुलदेवता का अर्थ होता है ,मान्य ,आदरणीय ,पूज्य देवशक्ति। किन्तु उत्तराखंड के सन्दर्भ में इष्टदेवता का अर्थ होता है वे देवी देवता जो किसी परिवार या वर्ग विशेष द्वारा अपने घर परिवार की सुख समृद्धि के लिए वंशागत रूप में उस देवता की पूजा की जाती है। https://youtu.be/1fC6YG4uTaQ?si=1mrOIpActxL0wG7B कौन हैं पहाड़ियों के इष्टदेवता : उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में इष्टदेवता के प्रतीकात्मक लिंग या त्रिशूल घरों की कक्षों या ताखों में स्थापित किये जाते हैं। घरों की मुंडेर पर भी इन पाषाणी लिंगो की स्थापना की जाती है। लेकिन इसके बिपरीत कुमाऊं मंडल में एक निश्चित स्थानों पर…
लोकनृत्य किसी समाज या संस्कृति को प्रदर्शित करने वाले नृत्य होते हैं ,जो किसी व्यक्ति विशेष द्वारा सृजित न होकर एक खास समाज या संस्कृति के लोगो द्वारा सामुहिक रूप में सृजित किये होते हैं। इनमे किसी व्यक्ति विशेष या संस्था का पेटेंट या कॉपीराइट न होकर पुरे समाज या उस संस्कृति से जुड़े लोगो का हक़ होता है। इन गीतों या नृत्यों को उस विशेष संस्कृति के लोग अपने समाज या परिवार में होने वाले विशेष अवसरों पर करते हैं। उत्तराखंड राज्य में लोक नृत्यों की परम्परा बहुत प्राचीन है। उत्तराखंड की लोक संस्कृति में विभिन्न अवसरों पर लोक…
कैंची धाम के जाम से कब मिलेगी निजात – कैंची धाम आज भारत के सबसे बड़े धामों में शुमार है। पिछले कुछ सालों में कैंची धाम आस्था का बड़ा केंद्र बनकर उभरा है। बीते तीन चार सालों से कैंची में श्रद्धालुओं की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। यहाँ बढ़ती हुई भीड़ का मुख्य कारण है सोशल मीडिया पर कैंचीधाम का जबरदस्त प्रचार और बीते कुछ समय में यहाँ भारत सहित विदेशी सेलेब्रिटियों का आगमन। जिससे इस मंदिर को काफी प्रचार मिला और यहाँ अचानक श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ गई। श्रद्धालुओं की संख्या अचानक बढ़ने से यहाँ प्रतिदिन जाम लग…
उत्तराखंड के चम्पावत जिले यानी काली कुमाऊं में द्वापर युग के घटोत्कच पूजे जाते हैं घटकू देवता के रूप में। घटकू देवता का मंदिर काली कुमाऊं चम्पावत दो ढाई किलोमीटर दूर दिशा में चम्पावत तामली मोटरमार्ग पर स्थित है। यह मंदिर चम्पावत तामली मार्ग पर गिडया नदी के तट पर स्थित है है। महाभारत युद्ध में घटोत्कच का सर यहाँ गिरा था – स्कंदपुराण के मानसखंड के अनुसार महाभारत युद्ध में कर्ण की अमोघ शक्ति से कटकर घटोत्कच का सर यहाँ एक जलाशय में गिर गया था। अपने पुत्र का सर न मिलने के कारण पांडव बहुत दुखी थे। तब…
ठठोरी देवी – उत्तराखंड को देवभूमि कहते हैं ,उत्तराखंड ही नहीं सम्पूर्ण हिमालयी भू भाग देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध है। हिमालयी भू भाग के परत प्रत्येक भू भाग प्रत्येक कण कण में देवों का वास है। यहाँ दैवीय दिव्य शक्तियों का वास हमेशा रहता है। और समय समय पर ये अपनी उपस्थिति और अपनी दिव्यता का प्रमाण देती रहती हैं। आज उत्तराखंड के माता के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं ,जिसे पहाड़ के छोटे छोटे बच्चों ने अपनी बाल श्रद्धा से अपनी बाल समस्याओं के निवारण हेतु स्थापित किया और माँ भी बाल आग्रह…
पांच पत्थरों से खेला जाने वाला खेल विश्व के कई शहरों में फाइव स्टोन गेम ( five stones game) के नाम से जाना जाता है। यह खेल जापान चीन ,स्पेन ,इटली , अफ्रीका सिंगापुर आदि देशों में पारंपरिक खेल के तौर पर खेला जाता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि विश्व के कई देशों का पारम्परिक खेल फाइव स्टोन गेम के नाम से प्रसिद्ध यह खेल उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों का पारंपरिक खेल दाणी या नौगी है ,या इसे गुट्टा खेल भी कहते हैं। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र ही नहीं अपितु भारत के कई राज्य की किशोरी लड़कियां इस खेल…
बूढ़ी दिवाली 2024 – हिमालयी क्षेत्रों में दीपावली एक से अधिक बार मनाने की परम्परा है। उत्तराखंड से लेकर हिमाचल प्रदेश तक पहाड़ी इलाकों में बूढ़ी दिवाली मनाने की परम्परा है। यह बूढ़ी दिवाली हिमालयी क्षेत्रों में अपनी अपनी सुविधानुसार मनाई जाती है। उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र और गढ़वाल के कुछ हिस्सों में में हरिबोधनी एकादशी के दिन बूढ़ी दिवाली इगास और बूढ़ी दिवाली के रूप में मनाई जाती है। इसके बाद मुख्य दीपावली के ठीक एक महीने बाद जौनपुर उत्तरकाशी की गंगाघाटी में मंगसीर बग्वाल के रूप में बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है। वहीं रवाई घाटी में बूढी दीवाली…
घुघुतिया उत्तराखंड का प्रसिद्ध लोकपर्व है। यह लोकपर्व प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के दिन मनाया जाता है। इस दिन आटे और गुड़ के साथ मिलाकर विशेष पकवान घुघुते बनाये जाते हैं। घुघुतिया के दिन घुघुते बनाने के पीछे अनेक लोककथाएं और किवदंतियां जुड़ी हैं। जिसमे से अधिकतम कहानियाँ आपको पता ही होगा। अगर नहीं पता तो इस पोस्ट के अंत में घुघुतिया पर्व से जुडी कथाओं का लिंक दे रहे हैं ,जरूर पढियेगा। अब आते आज के शीर्षक की मूल कहानी पर। घुघुतिया के दिन घुघुतों के साथ ढाल तलवार भी बनाते हैं ,और साथ में हुड़का रस्सी और लकड़ी लाने…