Author: Bikram Singh Bhandari

बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

देहरादून: नव वर्ष और विभिन्न स्थानों पर हो रही बर्फबारी के कारण उत्तराखण्ड में पर्यटकों की भारी संख्या में आगमन का अनुमान लगाया जा रहा है। राज्य के प्रमुख पर्यटन स्थलों पर होटल और होमस्टे की लगभग सभी बुकिंग्स फुल हो चुकी हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए उत्तराखण्ड सरकार ने पर्यटन क्षेत्र से जुड़े प्रतिष्ठानों को 24*7 खुले रखने की अनुमति दी है। श्रम विभाग ने जारी किया आदेश उत्तराखण्ड श्रम विभाग के उप सचिव शिव विभूति रंजन द्वारा जारी एक आदेश में कहा गया है कि “उत्तराखण्ड दुकान और स्थापना (रोजगार, विनियमन एवं सेवा शर्त) अधिनियम 2017…

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अशोक शिलालेख कालसी: उत्तराखंड के देहरादून जनपद में स्थित कालसी, भारतीय इतिहास और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यह स्थल मौर्य सम्राट अशोक द्वारा उत्कीर्ण किए गए 14 शिलालेखों के लिए प्रसिद्ध है, जो उनके धम्म (धर्म) और शांति के संदेश को प्रसारित करते हैं। कालसी, यमुना और टोंस नदी के संगम पर स्थित है, जो न केवल प्राकृतिक दृष्टि से सुंदर है बल्कि ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व भी रखता है। https://youtu.be/npZRvCDAXuU?si=19kpzYXpRAccpNbJ कालसी का ऐतिहासिक महत्व : कालसी का उल्लेख महाभारत और बौद्ध साहित्य में मिलता है। महाभारत काल में इसे राजा विराट की राजधानी माना जाता था, जहां…

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साठी-पासी: भारत के पश्चिमोत्तरी हिमालयी क्षेत्रों की सांस्कृतिक विविधता में लोक मान्यताओं का गहरा प्रभाव है। उत्तराखंड के रवांई-जौनपुर और जौनसार-बावर, तथा हिमाचल प्रदेश के महासू जनपद में बसे जुब्बल और डोडराक्वार क्षेत्र में ‘साठी-पासी’ नामक परंपरा महाभारतकालीन कथा से प्रेरित है। यह शब्द युगल क्रमशः कौरवों और पांडवों के पक्षधरों का बोध कराता है। यहाँ कौरवों के अनुयायियों को ‘साठा’ या ‘साठी’, जबकि पांडवों के अनुयायियों को ‘पासी’ या ‘पाठा’ कहा जाता है . साठी-पासी की परंपरा का ऐतिहासिक आधार : स्थानीय मान्यता के अनुसार, कौरवों की संख्या सौ नहीं, बल्कि साठ मानी जाती है। इस मान्यता के आधार…

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चकराता उत्तराखंड का एक प्रमुख और ऐतिहासिक पर्वतीय क्षेत्र है, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता, सांस्कृतिक धरोहर और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है। यह देहरादून जिले के अंतर्गत, समुद्रतल से 2065 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। चकराता देहरादून नगर के पश्चिम में, कालसी होते हुए करीब 100 किमी की दूरी पर स्थित है। जिस प्रकार मसूरी को पहाड़ों की रानी कहते हैं ,ठीक उसी प्रकार चकराता पहाड़ों का राजा के नाम से प्रसिद्ध हिल स्टेशन है। चकराता का ऐतिहासिक महत्व : ब्रिटिश शासन के दौरान चकराता की स्थापना अंग्रेज सैनिकों के विश्राम स्थल के रूप में की गई…

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आदिबद्री : एक प्राचीन और पवित्र तीर्थस्थल : उत्तराखंड के केदारखंड में स्थित आदिबद्री , पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व का एक प्रमुख तीर्थस्थल है। यह स्थान चमोली जनपद में कर्णप्रयाग-रानीखेत मोटर मार्ग पर, कर्णप्रयाग से 18 कि.मी. तथा गोपेश्वर से 57 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। दूधातोली पर्वत से निकलने वाली उत्तर नारायणगंगा के किनारे, 3800 फीट की ऊंचाई पर बसे इस तीर्थ को भगवान विष्णु की आदि तपस्थली माना गया है। पांच बद्री तीर्थों में प्रथम स्थान : आदिबदरी, बदरीनाथ से जुड़े पांच बद्री तीर्थस्थलों में सबसे पहले आता है। इसीलिए इसे ‘आदि’ नाम दिया गया है। इस…

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गणतंत्र दिवस परेड 2025 के लिए नई दिल्ली में कर्तव्य पथ पर प्रदर्शित की जाने वाली उत्तराखंड की झांकी का चयन अब तय हो चुका है। इस बार उत्तराखंड की झांकी में राज्य के साहसिक खेलों (एडवेंचर स्पोर्ट्स) को प्रदर्शित किया जाएगा, जिसे भारत सरकार ने अंतिम रूप से स्वीकार कर लिया है। यह चयन राज्य के लिए गर्व का विषय है, खासकर जब हम यह याद करते हैं कि 2023 में उत्तराखंड की “मानसखण्ड” झांकी ने प्रथम स्थान प्राप्त किया था। मुख्यमंत्री का बयान : उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने इस चयन पर खुशी जताते हुए…

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प्रतिवर्ष नए साल पर मसूरी में होती है एक अनोखी प्राकृतिक घटना , जो सभी आगंतुकों और स्थानीय लोगो के नए साल के जश्न को दुगुना कर देती है। मसूरी में होने वाली इस प्राकृतिक घटना का नाम है विंटर लाइन कॉर्निवाल। यह प्राकृतिक घटना प्रतिवर्ष मसूरी के अलावा चकराता , कैप्टोन और स्विजरलैंड में भी होती है। 2024 में 26 दिसंबर से 30 दिसंबर 2024 के बीच आयोजित किया जाएगा विंटरलाइन कॉर्निवाल। क्या है नए साल पर मसूरी में होने वाला विंटर लाइन कॉर्निवाल – विंटर लाइन मंसूरी का एक प्रसिद्ध प्राकृतिक दृश्य है। यह लाइन जब सूर्योदय या…

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देवभूमी उत्तराखंड में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जैसे वीर सपूत ने जन्म लिया। जिनके अंदर देशप्रेम ,मानवता कूट कूट कर भरी हुई थी। इसी मानवता के कारण उनका नाम पेशावर कांड से जुड़ा। और देशभक्ति के जज्बे को देख गाँधी जी बोलते थे ,”मुझे एक और चंद्र सिंह मिल जाता तो देश कबका आजाद हो जाता। वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का प्रारंभिक जीवन :- उत्तराखंड के वीर सपूत वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जी का जन्म 25 दिसम्बर 1891 को पौड़ी जिले के चौथान पट्टी के गावं रोनौसेरा में हुवा था। उनके पिता जाथली सिंह एक किसान और वैद्य थे। बचपन…

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घुघुतिया त्यौहार पर निबंध – उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में मकर संक्रांति को घुगुतिया पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस त्यौहार को उत्तराखंड में उत्तरायणी ,मकरैण ,खिचड़ी संग्रात आदि नामो से मनाया जाता है। इस दिन भगवान् सूर्यदेव मकर राशी में प्रवेश के साथ दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं। अल्मोड़ा में प्रवाहित होने वाली सरयू नदी के पूर्वी भाग के निवासी इस पर्व को पौष मासांत पर मनाते हैं ,इसलिए वे इसे पुषूडियां त्यौहार कहते हैं। सरयू के पक्षिम भाग वाले इसे माघ की पहली तिथि को त्यौहार के रूप में घुघुतिया मानते है। कुमाउनी में घुघूती फाख्ता पक्षी…

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लोक संस्कृति दिवस – संस्कृति का अर्थ है सम्यक रूप से किया जाने वाला आचार ,व्यवहार ! सामान्य व्यवहार या बोलचाल में संस्कृति का अर्थ होता है सुन्दर ,रुचिकर और कल्याणकारी परिस्कृत व्यवहार। श्री देव सिंह पोखरिया अपनी प्रसिद्ध पुस्तक लोक संस्कृति के विविध आयाम में संस्कृति की सरल शब्दों में परिभाषा देते हुए लिखते हैं ,” परम्परा से प्राप्त किसी मानव समूह की निरंतर उन्नत मानसिक अवस्था ,उत्कृष्ट वैचारिक प्रक्रिया ,व्याहारिक शिष्टता ,आचरण पवित्रता , सौंदर्याभिरुचि आदि की परिस्कृत , कलात्मक तथा सामुहिक अभिव्यक्ति ही संस्कृति है। संस्कृति पुरे समाज का प्रतिबिम्ब होती है। कोई जन्मजात सुसंस्कृत नहीं होता…

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