परिचय – कोटगाड़ी देवी मंदिर उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल है। यह मंदिर देवी भगवती को समर्पित है, जिन्हें स्थानीय लोग न्याय की देवी के रूप में पूजते हैं। यह मंदिर पिथौरागढ़ मुख्यालय से 55 किमी और डीडीहाट से 23 किमी की दूरी पर थल के निकट पांखू गांव में स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए थल से 2 किमी की पैदल यात्रा करनी पड़ती है। यह स्थान न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि मध्यकालीन व्यवसायिक कस्बे के रूप में भी जाना जाता है। कोटगाड़ी देवी की मान्यताएं – कोटगाड़ी देवी…
Author: Bikram Singh Bhandari
कोटिप्रयाग, उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में रुद्रप्रयाग जनपद की कालीमठ घाटी में स्थित एक पवित्र तीर्थ स्थल है। यह स्थान मंदाकिनी और कालीगंगा नदियों के संगम पर बसा है, जिसे इसके पुराणोक्त महत्व के कारण ‘उत्तरगया’ और ‘कोटिप्रयाग’ के नाम से जाना जाता है। यह स्थान न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य और ऐतिहासिकता का भी अनूठा संगम है। इस लेख में हम कोटिप्रयाग के धार्मिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक महत्व को विस्तार से जानेंगे। कोटिप्रयाग का धार्मिक महत्व – कोटिप्रयाग का उल्लेख स्कंद पुराण के केदार खंड (अध्याय 90) में मिलता है, जहां इसे गंगा के…
हिमालयी राज्य उत्तराखंड की गोद में पलने वाली झूला घास, जिसे वैज्ञानिक भाषा में लाइकेन (Lichen) कहा जाता है, प्रकृति का एक अनोखा चमत्कार है। यह फफूंदी (Fungus) और शैवाल (Algae) के परस्पर लाभकारी (Symbiotic) संबंध से बना एक जीव है, जो पेड़ों की छालों और चट्टानों पर उगता है। सतह पर यह मामूली प्रतीत हो सकता है, किंतु इसके पारिस्थितिक और आर्थिक महत्व को समझना आवश्यक है। जैविक संरचना और पारिस्थितिक भूमिका – झूला घास लाइकेन एक हेलोटिज्म (Helotism) संबंध का परिणाम है, जिसमें शैवाल प्रकाश संश्लेषण से कार्बोहाइड्रेट बनाता है और फफूंदी उसे जल, खनिज, और सुरक्षा प्रदान…
गुप्तकाशी, उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में रुद्रप्रयाग जनपद की केदारघाटी में मंदाकिनी नदी के तट पर समुद्रतल से 1,319 मीटर (लगभग 4,850 फीट) की ऊंचाई पर बसा एक प्राचीन और पवित्र स्थल है। इसके ठीक सामने ऊखीमठ स्थित है, जो इस क्षेत्र का एक अन्य महत्वपूर्ण स्थान है। यह स्थान अपनी धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है। गुप्तकाशी का नाम पौराणिक कथाओं से जुड़ा है, जो इसे ‘गुप्त काशी’ यानी ‘छिपी हुई काशी’ के रूप में पहचान देता है। यह स्थान ऋषिकेश से 185 किलोमीटर और केदारनाथ से मात्र 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। भौगोलिक…
उत्तराखंड के इंटरनेट मीडिया में एक उभरते सितारे के रूप में राहुल कोटियाल ने अपनी प्रतिभा और निडर पत्रकारिता से सभी का ध्यान आकर्षित किया है। उनका जन्म 12 मार्च को हुआ, हालांकि उन्होंने सोशल मीडिया पर जन्म का साल छिपा लिया है। इसलिए हम भी यहाँ उनका जन्म वर्ष अपडेट नहीं कर रहे हैं। पुरानी टिहरी में पले-बढ़े राहुल का बचपन कोटी कॉलोनी में बीता, जहाँ उनके पिता, अधिवक्ता राजेंद्र कोटियाल, प्रैक्टिस करते थे। राहुल कोटियाल का प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि – राहुल का बचपन टिहरी बांध के निर्माण के दौरान कोटी कॉलोनी में गुजरा,। उनके पिता राजेंद्र…
सनातन धर्म की सबसे अनोखी विशेषता यह है कि यहाँ देवताओं के साथ-साथ असुरों को भी उतने ही सम्मान और श्रद्धा से पूजा जाता है। यही उदारता और समरसता देवभूमि उत्तराखंड को विशेष बनाती है। यहाँ पांडवों की पूजा होती है, तो वहीं दुर्योधन को भी देवता का दर्जा प्राप्त है। पांडवकालीन हिडिम्बा देवी की भी पूजा होती है। यही कारण है कि उत्तराखंड को “देवभूमि” कहा जाता है — जहाँ शुभ ग्रह ही नहीं, अशुभ ग्रहों की भी पूजा होती है। आज हम आपको एक ऐसे दुर्लभ और पौराणिक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे भारत…
उत्तराखंड, जहाँ हर चट्टान, हर झरना और हर नदी एक कहानी कहती है — वहीं सरस्वती नदी की कहानी हजारों वर्षों से वेदों, पुराणों और महाभारत जैसे ग्रंथों में जीवित है। अधिकतर लोग मानते हैं कि सरस्वती अब अदृश्य है, लेकिन माणा गांव में यह आज भी दृश्यमान है। सरस्वती नदी का स्थान: माणा गांव, उत्तराखंड यह नदी चमोली जिले के माणा गांव के पास बहती है। यह बद्रीनाथ धाम से 3 किमी दूर स्थित है। नदी का स्रोत हबूतौली बॉक हिमानी (विष्णुनाभि) है। वैदिक और पौराणिक मान्यता “अम्बितमे नदीतमे देवितमे सरस्वति, अप्रशस्ता इव स्मसि प्रशस्तिमम्ब नमस्कृषि।” ऋग्वेद में सरस्वती…
उत्तराखंड की गोद में बसा एक अलौकिक अंचल — दानपुर, न केवल हिमालय की अद्भुत सुंदरता से सजा हुआ है, बल्कि यह इतिहास, लोकमान्यताओं, और सांस्कृतिक विरासत का भी जीवंत उदाहरण है। यह क्षेत्र वर्तमान में बागेश्वर ज़िले में आता है और अपने भीतर पिंडारी ग्लेशियर से लेकर कव्वालेख जैसी दुर्लभ मान्यताओं तक, कई रहस्यमयी और रोचक तथ्य समेटे हुए है। दानपुर की सीमाएँ जोहार, गढ़वाल, पाली, बारामंडल और गंगोली जैसे क्षेत्रों से मिलती हैं। इसके उत्तर में बर्फ से ढकी पहाड़ियाँ और दक्षिण में ऊँचे पर्वत शिखर हैं। यहाँ के प्रमुख हिमालयी शिखरों में नंदाकोट, नंदाखाट, नंदादेवी, सुन्दरढुंगा और…
गंगा दशहरा पूरे देश मे मनाया जाता है। गंगा दशहरा जेष्ठ शुक्ल दशमी को मनाया जाता है। जेष्ठ शुक्ल दशमी के दिन गंगा माता स्वर्ग से पृथ्वी लोक को आगमन हुआ था। माँ गंगा के धरती के आगमन के उपलक्ष्य में इस दिन को मनाया जाता हैं। उत्तराखंड कुमाउनी लोग इस दिन अपने द्वार पर विशेष अभिमंत्रित पत्र लगाते हैं। जिसे गंगा दशहरा द्वार पत्र कहते हैं। गंगा अवतरण की कथा जेष्ठ शुक्ल दशमी के दिन भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने मा गंगा को धरती पर अवतरण के आदेश पर माँ गंगा धरती पर अवतरण के…
कुमाऊनी भड़ गाथा : मित्रों आपने इस कहानी से पहले इस कहानी के पहले 2 भाग भ्यूराजी और स्यूंराजी बोरा पढ़ लिए हैं। आज आपके लिए लाएं हैं इस वीर भड़ गाथा सीरीज का तीसरा भाग रणजीत बोरा और दलजीत बोरा। इस कहानी के पहले 2 भागों का लिंक इस कहानी के अंत में दिया है , जिसने नहीं पढ़ा वे इन भागों को जरूर पढ़े :- बोरीकोट के दो राजकुंवर-रणजीत बोरा और दलजीत बोरा भ्यूराजी और स्यूंराजी बोरा के पुत्र थे। कुमाऊं -चंपावत के राजा भारतीचंद को ध्यानीकोट के बाईस भाई झिमौड़ों ने तंग कर रखा था। भारतीचंद के…