Wednesday, April 2, 2025
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कुमाऊनी भाषा में गिनती गिनने का तरीका

आपको ये तो पता ही होगा, कि कुमाऊनी में पैसा को डबल कहते हैं। और पहले जमाने के लोग, हमारे आमा-बुबु ने पढ़ाई लिखाई नही की थी, तो उन्हें हिंदी की गिनती नही आती थी, तो वे गिनने, हिसाब किताब करने के लिए पुरानी पारम्परिक कुमाऊनी भाषा मे गिनती का प्रयोग करते थे। अल्मोड़ा नैनिताल के कुमाऊँ के क्षेत्रों में  पुराने पूर्वजों द्वारा बहुताय प्रयोग किया जाता था।अब शिक्षा व्यवस्था दुरसस्त होने के कारण, आधुनिक पीढ़ी अपनी पारम्परिक दुधबोली भाषा से दूर हो रही है,या हिंदी इंग्लिश मिश्रित कुमाऊनी भाषा प्रयोग हो रही है।

कुमाऊनी भाषा में गिनती–

कुमाऊनी भाषा मे गिनती का आविष्कार किसने किया ये नही पता, किन्तु आवश्यकता के चलते यह गिनती अविष्कार में आई होगी। कुमाउनी भाषा मे गिनती की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि, यह केवल बीस तक है, उसके बाद इसमे नंबरों की पुनरावृत्ति होती है।

आइये मैं यहाँ कुमाउनी भाषा मे गिनती,कुमाउनी शब्दकोश के तहत लिख देता हूँ।आप पढ़िए, और हो सके तो इसका प्रयोग आम जीवन मे कभी कभी  प्रयोग कर सकते हैं , अच्छा लगेगा ।कुमाउनी भाषा मे कहीं कही 1 से 20 तक हिंदी के जैसे ही गिनती रहती है, बस थोड़ा ,कुमाऊनी भाषा में होते हैं।

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जैसे – एक, द्वी, तीन, चार, पाच, छे, सात,  आठ , नोउ ,दस, ग्यार, बार ,तैर, चाऊद,पंदर, शोल,सत्तर ,अठार,उनीस, एक बीसी 

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अब यहाँ पर ध्यान देने लायक यह है कि बीस (२०) कुमाउनी में एक बीसी कहते हैं। अब यहाँ से कुमाउनी गिनती बदल जाती है।

कुमाऊनी भाषा में गिनती
जैसे-
इक्कीस को एकबीसी एक, बाइस को कुमाउनी में एक बीसी द्वी कहते हैं। तीस को एकबीसी दस कहते हैं।

ऐसे ही 39 उन्तालीस तक एक बीसी के आगे 1से 19 तक कि गिनती जोड़ते जाते हैं। फिर  चालीस (40) को द्वी बीसी कहते हैं। 60 को तीन बीसी,80 को चार बीसी, 100 को पाच बीसी या सैकाड़ भी कहते हैं।

कुल मिलाकर यह हुवा कि, पारम्परिक कुमाऊनी या अल्मोड़ा नैनीताल की स्थानीय कुमाउनी में पूर्वज गिनती बीसी यानी 20 के हिसाब से गिनते थे। और पुराने,दादी दादा आज भी वही गिनती गिनते हैं। अपने कुछ पुरखों को मैंने, इन्ही गिनतियों को ,उल्टे रूप में प्रयोग करते हुए सुना। वो हर जगह पर बीस पर आगे को अंक नही जोड़ते थे, कही -कही पर घटा कर भी बोलते थे।

जैसे- दादा जी को अगर पंद्रह बोलना है, तो वो पंदर न बोल कर “एक बीसी में पाच कम “बोलते थे और यदि उनको 33 बोलना होता तो वे ,बोलते थे द्वी बीसी में सात कम ।

इसे भी पढ़े –उत्तराखंड की लोक कला ऐपण पर एक पारम्परिक निबंध।

अब एक बीसी चार ,बोलने वाले पूर्वज अब कम ही रह गए हैं। अब थोड़ा बहुत पढ़े लिखें पूर्वजों की पीढ़ी, थोड़ा वर्तमान गिनती का प्रयोग करते हैं, थोड़ा पारम्परिक गिनती का। इसी गिनती परम्परा से एक प्रसिद्ध कुमाउनी कहावत भी बनी है – “चेला जब ब्या होल तेरो, तब पट्ट चलल कि, कदू बिसिक सैकाङ हुनी कबे ”  मतलब– बेटा जब तेरी शादी होगी ,तब तुझे पता चलेगा,कि असली दुनिया क्या होती है।

इसे भी देखे : कुमाऊनी खड़ी होली गीतों का संकलन PDF में।

निवेदन – 
इस लेख का मूल उद्देश्य , हमारे पहाड़ कुमाऊं ,के आंचलिक क्षेत्र , पुरखों द्वारा बोली जाने या गिनी जाने वाली गिनती पद्वति के बारे में जानकारी देना,या उस परम्परा का प्रसार करना है। यदि इस लेख में कोई साहित्यक या अन्य त्रुटि है,तो कृपया हमें हमारे फेसबुक पेज देवभूमी दर्शन पर हमें अवगत कराएं। हम उचित संसोधन करेंगे । आप सभी से निवेदन है,कि कुमाउनी भाषा के प्रचार प्रसार के लिए, इस लेख को शेयर अवश्य करें। इस पेज पर सोशल मीडिया बटन लगें है। उनपे क्लिक करके आप आसानी से लेख शेयर कर सकते हैं।

 “यशोदा मैया त्यर कन्हैया  बड़ो झगड़ी…पारम्परिक कुमाउनी भजन के लिए यहाँ क्लिक करें।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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