Sunday, November 17, 2024
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सोन कुत्ता- पहाड़ो में अपशकुन का अलर्ट देने वाला सोन कुत्ता या फ्योन।

आज जब मैंने यह खबर देखी, कि उत्तराखंड में सालों पहले विलुप्त हो चुके सोन कुत्तों की खोज दुबारा की जाएगी। और जब मैंने सोन कुत्ते की फ़ोटो देखी, तो अनायास ही मुंह से निकल गया, “अरे इस सोन कुत्ते को तो हमारी पहाड़ी भाषा मे ,चूड़ी स्याव, फयोंन, स्योंन या स्याव आदि नामों से पुकारते हैं। इस लेख में मैंने सोन कुत्ता की फ़ोटो डाल रखी है। फ़ोटो देख कर कमेंट या हमारे फ़ेसबुक पेज देवभूमि दर्शन में जरूर बताइये कि आपकी भाषा मे सोन कुत्ते को क्या कहते हैं ?

सोन कुत्तों के बारे में एक खबर –

उत्तराखंड के कॉर्बेट नेशनल पार्क में सोन कुत्ते जैसा जानवर दिखाई दिया है। यह जानवर काफी दूर से दिखने के कारण , यह स्पष्ट नहीं हो पाया है, कि ये सोन कुत्ते ही हैं या कोई अन्य जीव है। अब इनकी खोज के लिए पार्क प्रशासन बड़े स्तर पर अभियान चलाने जा रहा है। इस अभियान के तहत जंगल मे ट्रेप कैमरा लगाकर जंगली सोन कुत्तों का पता लगाया जाएगा। अब सरकार कार्बेट पार्क , और आस पास के क्षेत्रों में ट्रेप कैमरा और अन्य विधियों द्वारा , सोन कुत्तों पर नजर रख रही है। सरकार इन सोन कुत्तों पर नजर रख कर इनकी जनसंख्या और व्यवहार का अध्ययन करना चाहती है।

 कौन हैं ये सोन कुत्ता –

सोन कुत्ते या भारतीय जंगली कुत्ते, थोड़ा गीदड़ और भेड़िये की तरह दिखने वाले ये कुत्ते इन्हें सोन कुत्ते ( Con Alpine or Indian wild dog ) या ढोल कहा जाता है । यह सोनकुत्ता  कैनिडी वर्ग का जीव है। यह दक्षिण एशिया और दक्षिण पुर्वी एशिया में मुख्यतः पाए जाते हैं। इनका आकर गीदड़ से बड़ा और भेड़िये से छोटा होता है।

उत्तराखंड के तराई, भाभर , राष्ट्रीय पार्क क्षेत्रों में ये अधिक पाए जाते थे। इसी प्रकार के प्राणी उत्तराखंड के पहाड़ी  क्षेत्रों में पाए जाते रहे हैं। कुमाऊँ के कुछ भागों में इस तरह के जानवर को, चुड़ी स्वाव या फयोंन और स्योंन नाम से जानते है। सोन कुत्ते को देसी भाषा मे ढोल कहा जाता है। ये लाल रंग के होते हैं।

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हिमालय के क्षेत्रों में इसे लाल राक्षस ,जंगली राक्षस , भौंसा, भन्सा और बुवानसु आदि नामों से बुलाया जाता है। और हिंदी में इसे जंगली कुत्ता, बन कुत्ता , आदि नामों से जानते हैं। यह अपनी प्रजाति का इकलौता जीवित प्राणी है। इसकी बनावट ,दन्तावली और स्तनों में कुत्तों से अलग होती है। अब यह अंतरराष्ट्रीय संगठन द्वारा विलुप्तप्राय प्रजाति में शामिल कर दिया गया है।

समूह में शेर पर भी भारी पड़ता है सोन कुत्ता –

भारतीय वन्यजीव संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक Dr. Y.B Jhala के अनुसार सोन कुत्ते 1978 के आस पास रिजर्व पार्क और पूर्वी  तराई क्षेत्र था। यह सोन कुत्ता सामान्य कुत्तों की तरह भौकता नही , ये सिटी जैसी आवाज निकलता है। यह जानवर समूह में रहना पसंद करते हैं। और ये अपने सारे कार्य समूह में करते हैं।

समूह में सोन कुत्ते अपने से बड़े आकार के जानवर का शिकार भी कर लेते हैं। और समूह में ही ये कभी कभी शेर बाघ जैसे जानवरों को नाको चने चबवा देते हैं। ढोल दिन में शिकार करना पसंद करते हैं।इनकी सूंघने और सुनने की शक्ति बहुत अच्छी होती है। ये अपनी सिटी वाली आवाज का प्रयोग आपस मे संपर्क बनाए रखने के लिए करते हैं।

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क्यों विलुप्त हुवा सोन कुत्ता ?

सोन कुत्तों के विलुप्ति के कई कारण हैं। उत्तराखंड के अलावा अन्य क्षेत्रों में इनकी विलुप्ति के कारणों में माना जाता है, कि भोजन की कमी, आवास में समस्या, और बीमारियों के संक्रमण के कारण ये विलुप्तप्राय हो रहे हैं। मगर उत्तराखंड में इनकी विलुप्ति  का मुख्य कारण था, सरकार द्वारा इनका सामुहिक संहार करवाना ।

सोन कुत्तों को मरवाने की जरूरत क्यों पड़ी ? इसका जवाब भी इन कुत्तों की आदत में छिपा है। सोन कुत्ते अकेले में खतरनाक नही होते हैं, उलट ये लोगो और अन्य जानवरों से डरते हैं। लेकिन जब ये झुंड में होते हैं तो बड़े बड़े जानवरो पर हमला करने से नही हिचकते हैं।

यही परिस्थियाँ उतपन्न हुई 1978 में उत्तराखंड में। 1970 के दशक में , उत्तराखंड के तराई क्षेत्रों में सोन कुत्तों की जनसंख्या में अत्यधिक बढ़ोतरी होने के कारण इनके अनेक झुंड बन गए। और इनके भोजन की कमी और जनसंख्या अधिक होने के कारण ये मनुष्यों पर हमला करने लगे।

1978 में सरकार को मजबूरी में इन्हें मारने के आदेश देने पड़े। उस समय  स्थिति यहाँ तक गंभीर थी, कि सरकार सोन कुत्तों को मारने वालों को इनाम देने की तक घोषणा की थी। 1990 के बाद ये लगभग विलुप्त हो गए थे। अब दुबारा कॉर्बेट पार्क में इनके दिखाई देने से , वन विभाग फिर से चौकन्ना हो गया है।

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पहाड़ो में सोन कुत्ता –

सोन कुत्ता जैसा जानवर पहाड़ो में बहुतायत होता था। वर्तमान में वो भी बिलुप्त है। पहाड़ो में इसे फ़योंन या स्योंन  कहते हैं। या इसका एक दो और पहाड़ी नाम हैं , चुड़ी स्याव या पहाड़ी स्याव ( पहाड़ी सियार ) , लाल स्याव पहाड़ों में जब यह जानवर भी सिटी वाली  आवाज करता है।

इसकी आवाज को अपशकुन का धोतक माना जाता है। कहते कि जिस क्षेत्र में कुछ अनिष्ट या किसी की मृत्यु होने वाली होती है या कुछ अनिष्ट होने वाला होता है । वहाँ यह जानवर आवाज करता है। वर्तमान में पहाड़ों में इसकी आवाज कम सुनाई देती है। या नही सुनाई देती है। पहाड़ो में अपनी आवाज से अलर्ट करने वाला यह जानवर शायद अब,पहाड़ो से भी विलुप्त हो गया है।

इनके बारे में भी जाने –पूर्णागिरि मंदिर , माँ के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक महत्वपूर्ण शक्ति पीठ।

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
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