Thursday, April 17, 2025
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केदारनाथ की कहानी | पांडवों से रुष्ट होकर जब जमीन में अंतर्ध्यान होने लगे भोलनाथ।

केदारनाथ की कहानी ( Kedarnath ki kahani ) – उत्तराखंड के चारों धामों के कपाट खुल चुके हैं। उत्तराखंड में चारों धामों में यात्रा अपने चरम पर है। यात्रियों के रोज नए रिकॉर्ड बन रहे हैं। कही कही अव्यवस्थाएं भी  देखने को मिल रही हैं ,लेकिन प्रशाशन पूरी मुस्तैदी से यात्रा को सफल बनाने में जुटा हुवा है। स्कंदपुराण के केदारखंड भाग में  उत्तराखंड के चार धामों में और पंचकेदारों में भगवान् शिव के ग्यारहवें ज्योतिर्लिंग केदारनाथ जी को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।और स्कंदपुराण में इसे भगवान् शिव का उत्तम स्थान बताया गया है।

नन्दापर्वतमारभ्य यावत् काष्ठगिरिर्भवेत् ।
तावत्केदारकं क्षेत्रं शिवमन्दिरमुत्तमम् ।।
राजा भोज ने अपने शिलालेख में अन्य ज्योतिर्लिंगों के साथ केदार ज्योतिर्लिंग का भी उल्लेख किया है। इससे व्यक्त है कि तब यह अस्तित्व में आ चुका था। यहाँ भगवान् के निवास और उनकी मूर्ति विग्रह के संबंध अनेक पौराणिक कहानियां प्रचलित हैं। उन सभी में एक पांडवों से जुडी केदारनाथ की कहानी प्रचलित है जो इस प्रकार है –

केदारनाथ की कहानी ( Kedarnath ki kahani ) या केदारनाथ का रहस्य –

केदारनाथ के रहस्य के बारे में कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव अपनी तपस्या ,योग ध्यान के लिए शांत जगह ढूंढ रहे थे। वे पुरे हिमालय में घूमते -घूमते इस स्थान पर पहुंचे तो उन्हें स्थान रमणीक और शांत लगा तो वे यही ध्यान में बैठ गए।

केदारनाथ की कहानी

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केदारनाथ के गर्भगृह में जो शिवलिंग है वो थोड़ा बड़ा त्रिकोण आकर में है। जैसा बैल या भैष की पीठ होती है ठीक उसी आकर का है। इस अनोखे शिवलिंग की कहानी पांडवो से जुडी है।

गोत्रहत्या के पाप से मुक्त होने के लिए शिव को प्रसन्न करना चाहते थे पांडव –

महाभारत युद्ध के बाद पांच भाई पांडव अपने भाइयों की हत्या ( गोत्रहत्या ) के पाप से मुक्त होने लिए भगवान् भोलेनाथ का आशीष लेने के लिए काशी पहुंचे। भगवान् भोलेनाथ इन गोत्रघातियों की परीक्षा लेने और इनसे बचने के लिए हिमालय की ओर चले गए। पांडवों को पता चल गया कि भोलेनाथ हिमालय की तरफ चले गए हैं। वे भी उनके पीछे पीछे हिमालय की तरफ चल दिए।

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गुप्तकाशी से गायब हो गए भगवान् शिव –

जब पांडव भी शिव के पीछे पीछे हिमालय की ओर चल पड़े तो भगवान् शिव को पता चल गया कि पांडव भी उनके पीछे -पीछे आ रहे हैं ,वे गुप्तकाशी नामक स्थान पर गायब हो गए या गुप्त हो गए। इसलिए उस स्थान का नाम गुप्त काशी है। केदारनाथ की कहानी के अनुसार गुप्तकाशी से गायब होने के बाद भगवान् शिव केदार नामक स्थान पर प्रकट हुए।

तो इस प्रकार उत्पन्न हुए भगवान् केदारनाथ –

केदारनाथ नामक स्थान में भगवान् शिव ने एक भैंस का रूप धारण किया और पास में घास चर रहे भैसों के झुण्ड के बीच में चरने लगे। भगवान् शिव का पीछा करते करते पांडव भी केदारनाथ पहुंच गए। उन्होंने इधर उधर ढूंढा तो भैंसो के बीच भैंस रूप में चरते हुए भगवान् शिव को पहचान गए। तब भीम उस दर्रे के ऊपर टांग फैलाकर बैठ गए जहाँ से भैसों के झुण्ड को निकलना था।

केदारनाथ की कहानी | पांडवों से रुष्ट होकर जब जमीन में अंतर्ध्यान होने लगे भोलनाथ।
फोटो साभार – istock

भगवान् शिव को पांडवों के टांगों के नीचे से गुजरना अपमानजनक लगा । वे वहां से तुरंत गायब होने के लिए वहीँ मैदान में ही जमीन में धसने लगे। भीम ने फुर्ती दिखाते हुए जल्दी से उनकी पूंछ पकड़ ली। जिस कारण उनकी पीठ वाला भाग वहीँ रह गया और शरीर के बाकी अंग अलग -अलग जगह से बाहर निकले। जो बाद में पंचकेदार कहलाये।

इसी समय आकाशवाणी हुई ,” हे पांडवों मैं तुमसे खुश हूँ। मेरे इस पृष्ठ भाग को घृत इत्यादि से नवनीत करके इसका अभिषेक करके तुम गोत्रहत्या के पाप से मुक्त हो जाओगे। इसके बाद पांडवों ने भगवान् भोलेनाथ के इस पृष्ठरूपी शिवलिंग की पूजा अर्चना करके यहाँ मंदिर का निर्माण करवाया। जिसका कलयुग में शंकराचार्य जी ने जीर्णोद्वार करवाके शिथिल हो चुके सनातन धर्म में नवचेतना का संचार किया।

केदारनाथ की कहानी (Kedarnath ki kahani ) आपको अच्छी लगी हो तो अपने परिचितों के बीच इस कहानी को अवश्य साँझा करें।

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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