उत्तराखंड में शीतकालीन चार धाम यात्रा – उत्तराखंड, जिसे “देवभूमि” के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप का एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ धर्म, संस्कृति और प्रकृति का अद्भुत संगम होता है। यहाँ स्थित चार प्रमुख धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री, श्रद्धालुओं के लिए एक विशेष स्थान रखते हैं।
लेकिन ये चारों धाम अत्यधिक ठण्ड के कारण सर्दी के मौसम में बंद हो जाते हैं। देवों की पूजा में कोई अवरोध ना आये और पूजा सतत चलती रहे इसलिये इन मंदिरों के देवों के प्रतीकात्मक रूपों को वहां से कम ऊंचाई वाली जगहों पर पूजा जाता है जिन्हे शीतकालीन चार धाम कहते हैं।
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उत्तराखंड में शीतकालीन चार धाम यात्रा –
ऊखीमठ –
यह पवित्र तीर्थस्थल गढ़वाल मंडल के रूद्रप्रयाग जिले के नागपुर परगने के मल्ला कालीफाट में गौरीकुंड से 10 किलोमीटर नीचे मन्दाकिनी घाटी में मन्दाकिनी के बाएं तट पर समुद्र की सतह से 4500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां पर एक अति प्राचीन शिवालय है जिसे केदारनाथ धाम का का अधिष्ठान भी माना जाता है।
क्योंकि शीतकाल में केदारनाथ के कपाट बंद हो जाने पर 6 माह के लिए उनका पूजन यहीं पर किया जाता है। मूल प्रतिमा के इन दो स्थानों पर स्थानान्तरित होते रहने के कारण इसे चल प्रतिमा भी कहा जाता है। मंदिर भव्य, विशाल एवं वास्तुकला की दृष्टि से दर्शनीय है। शायद उत्तराखण्ड के मंदिरों में सबसे ऊंचा है। इसका निर्माण पत्थरों के चबूतरे पर तराशे गये शिलाखण्डों से किया गया है।
मंदिर के भीतर बदरीनाथ, तुंगनाथ, केदारनाथ, ओंकारेश्वर, उषा-अनिरुद्ध, मांधाता एवं तीनों युगो की मूर्तियां विद्यमान हैं। केदारेश्वर के पीठासन के पार्श्व में स्वर्ण की पंचमुखी शिव की प्रतिमा, चांदी का घंटा तथा उसके पार्श्व में वस्त्रांकरणों से अलंकृत पार्वती की प्रतिमा विराजमान है। भववान् मध्यमहेश्वर की शीतकालीन पूजा भी यही की जाती है। मंदिर चारों ओर से परिवेष्टित है। ऐसा भी माना जाता था कि उषा के द्वारा यहां पर एक मठ का निर्माण कराये जाने के कारण ही इस स्थान का ‘नाम ‘उषामठ’ पड़ गया था जो कि बादे में लोकभाषा में विकृत होकर ऊखीमठ कहलाया जाने लगा।
यहां से कुछ दूरी पर लमगौड़ी में एक किले के भग्नावशेष हैं जिसे लोग बाणासुर का किला कहते हैं। पौराणिक परम्परा के अनुसार यहां पर बाणासुर की पुत्री उषा का निवास स्थान था तथा भगवान् कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध से उसका प्रेम विवाह यहीं पर हुआ था। इस सम्बन्ध में यह भी कहा जाता है कि उषा अपने इस महल से मन्दाकिनी के उस पार स्थित गुप्तकाशी में भगवती पार्वती से विद्याध्ययन करने आया करती थी। अनुश्रुति के अनुसार महाभारत काल में पांडवों ने यहां पर स्वयंभू शिवलिंग की पूजा-उपासना की थी।
महापंथ का मार्ग यहीं से होकर जाता है। केदारखंड के रावलों (पुजारियों) का निवास स्थान तथा मंदिर समिति का मुख्यालय भी यहीं है। पैदल यात्रा के दिनों में केदारखण्ड से लौटते समय यात्री लोग अवश्य यहां आया करते थे ।
जब केदारनाथ के कपाट बन्द होते हैं तो भगवान केदार की उत्सव मूर्ति भव्य शोभायात्रा के साथ ऊखीमठ के ओंकारेश्वर के मंदिर में लायी जाती है।
योगध्यान बद्री या पांडुकेश्वर –
यह गढ़वाल मंडल के चमोली जिले में ऋषिकेश से 275 किलोमीटर जोशीमठ से लगभग 20 किलोमीटर और विष्णुप्रयाग से 8 किलोमीटर आगे एवं बद्रीनाथ से 1 किलोमीटर पहले विष्णुगंगा के बांये तट पर स्थित है महाभारत में बताया गया कि राजा पाण्डु ने शाप मुक्ति पाने के लिए यहां पर तप किया था पांचों पाण्डवों का जन्म भी यहीं हुवा था उनका यज्ञोपवीत संस्कार यहीं पर हुआ था। महाभारत में यह भी कहा गया है कि माद्री यहीं पर सती हुई थी।
अन्त में स्वर्गारोहण भी उन्होंने यहीं से आगे संतोपंथ में किया था। किन्तु डा. शिवप्रसाद नैथानी के अनुसार यहां पर केसर की खेती किये जाने के कारण इसका मूलनाम ‘पाण्डुकेशर’ रहा होगा, जो कि वहां के शैव प्रभाव से ‘केश्वर’ हो गया। जो भी हो यह नाम काफी प्राचीन है। पाण्डुकेश्वर ताम्रपत्रों के नाम से विख्यात कत्यूरी शासकों के इन ताम्रपत्रों में इसका उल्लेख किया गया है।
वर्तमान में यहां पर मंदिर में जो ‘अष्टधातु की मूर्ति है उसे योगध्यान बदरी कहा जाता है। बद्रीनाथ धाम के कपाट बन्द हो जाने पर भगवान् के सखा उद्भव तथा कोषाध्यक्ष कुबेर सहित नारायण की उत्सव मूर्ति को यहीं लाकर रखा जाता है। यही पर बद्रीनाथ जी की शीतकालीन पूजा होती है। और फिर बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने के अवसर इन्हें गाजों-बाजों के साथ जुलूस के रूप में वहां से जाया जाता है।
यहां पर कत्यूरी काले के दो मंदिर है।दूसरा मंदिर वासुदेव का है जो अपने स्थापत्य एवं मूर्तिकला के लिए विशेष महत्व रखते हैं। इनमें से एक तो गुम्बद की तरह छतवाला तथा दसरा शिखर वाला है। पहले में मूर्ति पत्थर की और दूसरे में धातु की है। इसके अतिरिक्त यहां पर रामानुज सम्प्रदाय द्वारा निर्मितएक राममंदिर भी है जिसमें राम और सीता की अति भव्य मूर्तियां स्थापित हैं।
शीतकालीन चारधाम यात्रा के लिए योगध्यान बद्री एक शानदार विकल्प हो सकता है। उत्तराखंड के सुन्दर और शांत शहर कर्णप्रयाग में स्थित यह शीतकालीन धाम अभूतपूर्व शांति अवस्थित है। कहते हैं यहाँ भगवान् विष्णु ने ध्यान लगया था इसीलिए इसे योगध्यान बद्री कहते हैं।
शीतकालीन धाम मुखवा –
उत्तराखंड की जनता में गंगा के मायके के रूप में प्रसिद्ध मुखवा जिला उत्तरकाशी की तहसील भट्वाड़ी में जनपद से लगभग 75 किमी. उत्तर में हरीभरी पहाड़ियों के मध्य एक रमणीक स्थान पर अवस्थित है तथा पवित्रधाम गंगोत्री के पुजारियों के पुरखों के पुस्तैनी ग्राम के रूप में प्रसिद्ध है। शीतकाल में गंगोत्रीधाम के कपाट बन्द होने पर गंगा जी की मूर्ति को पूरी शोभायात्रा के साथ यहां के मंदिर में लाकर रखा जाता है।
और ग्रीष्मकाल के प्रारम्भ में कपाट खुलने तक यहीं रखी रहती है , तथा कपाट खुलने की तिथि के अवसर पर पुनः गाजे-बाजों के साथ शोभायात्रा के रूप में गंगोत्रीधाम को ले जाया जाता है। यह गांव शीतकाल में मनाये जाने वाले सेल्कू उत्सव के लिए भी प्रसिद्ध है इस अवसर पर यहां गाजे बाजे की धुनों पर थिरकते हुए लोगों के द्वारा रासौ नृत्य का तथा सेल्कू के उत्सव के अवसर पर उसका भैलों (आग के गोलों) के स्वागत किये जाने के दृश्य दर्शनीय हुआ करते हैं।
लोग भाव विभोर होकर इनका आनन्द लेते हैं। मुखवा उत्तराखंड के चार शीतकालीन धामों में से एक प्रसिद्ध धाम है। यदि आप शीतकाल में यहाँ की यात्रा करना चाह रहे तो आपके लिए एक अच्छा विकल्प बन सकता है।
खरसाली –
खरसाली यमुनोत्री धामके शीतकालीन धाम के विकल्प के रूप में अवस्थित है। शीतकालीन समय में अत्यधिक बर्फवारी की वजह से यमुनोत्री में माँ यमुना की पूजा संभव नहीं होती है ,इसलिए माँ यमुना की पूजा यहाँ की जाती है। खरसाली गढ़वाल मंडल के उत्तरकाशी जिले में यमुनोत्री मार्ग पर जानकी चट्टी के पास हिरण्यबाहु और यमुना के संगम पर स्थित है। यहाँ से यमुनोत्री की दूरी मात्र 06 किलोमीटर होती है। कहते हैं पहले यहाँ खर्सू के घने जंगल होते थे ,इसलिए इसे खरसाली कहते हैं। खरसाली में भारत का सबसे प्राचीन शनि मंदिर है। माँ यमुना की मूर्ति यहाँ के शनि मंदिर में रखी जाती है। इसकी दूरी समुद्रतल से 2675 मीटर है।
निष्कर्ष –
उत्तराखंड के शीतकालीन चार धाम यात्रा न केवल श्रद्धा का अनुभव है, बल्कि यह उत्तराखंड की पहाड़ी जीवनशैली, संस्कृति और प्रकृति के बारे में जानने का एक अद्भुत तरीका भी है। अगर आप सर्दियों में उत्तराखंड की यात्रा करने की योजना बना रहे हैं, तो शीतकालीन चार धाम एक बेहतरीन विकल्प हो सकते हैं। यह यात्रा आपको न केवल आध्यात्मिक संतोष प्रदान करेगी, बल्कि यहाँ की शांति और ठंडी हवाओं में एक अद्वितीय अनुभव भी मिलेगा।
संदर्भ –
- उत्तराखंड ज्ञानकोष – प्रो DD शर्मा
- गढ़वाल का इतिहास – प . हरिकृष्ण रतूड़ी
- उत्तराखंड में आध्यात्मिक पर्यटन – डॉक्टर सरिता शाह
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उत्तराखंड के चार धाम का संक्षिप्त परिचय।
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