लोकनृत्य किसी समाज या संस्कृति को प्रदर्शित करने वाले नृत्य होते हैं ,जो किसी व्यक्ति विशेष द्वारा सृजित न होकर एक खास समाज या संस्कृति के लोगो द्वारा सामुहिक रूप में सृजित किये होते हैं। इनमे किसी व्यक्ति विशेष या संस्था का पेटेंट या कॉपीराइट न होकर पुरे समाज या उस संस्कृति से जुड़े लोगो का हक़ होता है। इन गीतों या नृत्यों को उस विशेष संस्कृति के लोग अपने समाज या परिवार में होने वाले विशेष अवसरों पर करते हैं। उत्तराखंड राज्य में लोक नृत्यों की परम्परा बहुत प्राचीन है। उत्तराखंड की लोक संस्कृति में विभिन्न अवसरों पर लोक गीतों के साथ लोकनृत्य करने की परम्परा है। उत्तराखंड के प्रमुख लोक नृत्य इस प्रकार है –
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उत्तराखंड का प्रसिद्ध लोकनृत्य छोलिया नृत्य –
छोलिया नृत्य उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल का प्रसिद्ध लोक नृत्य है। यह नृत्य खासकर कुमाऊं मंडल में शादियों के अवसर पर किया जाने वाला लोक नृत्य है। यह नृत्य ढाल तलवार के साथ किया जाता है। यह नृत्य ढोल, दमाऊ, नगाड़ा, तुरी, मशकबीन आदि वाद्य यंत्रों की संगति पर विशेष वेश -भूषा में हाथों में सांकेतिक ढाल तलवार के साथ युद्ध कौशल का प्रदर्शन करने वाला , उत्तराखंड कुमाऊं मंडल का विशिष्ट लोक नृत्य है। इस नृत्य के बारे विस्तार से यहाँ पढ़े
झोड़ा नृत्य –
कुमाऊं क्षेत्र का यह नृत्य बसंत के आगमन ,होली के बाद खासकर चैत्र माह में किया जाने वाला सामूहिक नृत्य है। इसे झोड़ा चांचरी लोक गीत के साथ ,पैरो की लय ताल मिलाकर में वृत्ताकार घूम कर किया जाता है।
भड़ो नृत्य –
गढ़वाल एवं कुमाऊं क्षेत्र में ऐतिहासिक वीरों की कहानियां इस नृत्य के माध्यम से दिखाई जाती है। ऐसी मान्यता है की उत्तराखण्ड के ऐतिहासिक वीरो की आत्माएं उनके वंशजो के शरीर में अवतरित होती है और उनके शरीर के माध्यम से नृत्य करती है इस लोक नृत्य को भड़ो नृत्य कहा जाता है।
रणभूत नृत्य –
उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के वीरगति प्राप्त वीरों की आत्माओं की शांति के लिए यह लोक नृत्य किया जाता है। इस नृत्य को देवता घिराना भी कहते हैं।
चांचरी नृत्य –
उत्तराखंड के पहाड़ों में किया जाने वाला यह नृत्य झोड़ा नृत्य के सामान होता है। उत्तराखंड के कुमाऊं का प्रसिद्ध लोक नृत्य है, चाँचरी। इसमे स्त्री और पुरुष दोनों समान नृत्य करते हैं। यह झोड़े का एक रूप है। शायद इसका उदभव झोड़े से हुवा है या झोड़े का जन्म चाँचरी से हुवा है। इसका स्वरूप झोड़ा नृत्य से काफी मिलता जुलता है। झोड़ा और चाँचरी में ज्यादा अंतर नही होता है। चांचरी के बारे में विस्तार से पढ़े
छोपती नृत्य –
गढ़वाल का एक लोक नृत्य है। वर्तमान में यह लोक नृत्य केवल रवाई घाटी और जौनपुर तक ही सिमित रह गया है।इस नृत्य में पहले और तीसरे नर्तक के हाथ दूसरे नर्तक के कमर के पीछे जुड़े होते है।हाथों के जुड़ाव की गोल श्रृंखला नर्तक कंधे से कंधा मिलाकर जुड़े रहते हैं। इस स्थिति में सबके पैर दो कदम आगे और एक क़दम पीछे चलते हैं। इस नृत्य के साथ गाये जाने वाला गीत छोपती गीत कहा जाता है। इस नृत्य के बारे में विस्तार से पढ़े।
पांडव नृत्य –
गढ़वाल क्षेत्र में पांडवो के जीवन प्रसंगो पर आधारित नवरात्र में 09 दिन चलने वाले इस नृत्य आयोजन में विभिन्न प्रसंगो पर आधारित नवरात्र में 09 दिन चलने वाले इस नृत्य का आयोजन में विभिन्न प्रसंगो के 20 लोक नाट्य होते हैं। चक्रव्यूह ,कमल व्यूह ,गैंडी – गैंडा वध आदि नाट्य विशेष प्रसिद्ध है।
मंडाण नृत्य –
गढ़वाल क्षेत्र में देवी देवता पूजन ,देव जात और शादी -ब्याह के मौके पर यह नृत्य होता है। देव जात और शादी व्याह के मौके पर यह नृत्य किया जाता है।
इनके अलावा उत्तराखंड के लोक नृत्यों में थड़िया नृत्य ,सरौं नृत्य , हारुल नृत्य ,बुड़ियात लोक नृत्य ,झुमेलो लोक नृत्य ,भैला लोक नृत्य प्रसिद्ध लोक नृत्य हैं।
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