नई दिल्ली: केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी ने द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी के बह्मलीन होने पर विश्वविद्यालय परिवार की ओर से शोक संवेदना व्यक्त करते हुए। अपने शोक संदेश में वरखेड़ी ने कहा है कि स्वामी जी का पार्थिव शरीर भले ही हमारे बीच अब नहीं रहा। लेकिन उनके सनातनी समन्वित चिन्तन तथा दर्शन भारतीय जीवन पद्धति को सर्वदा आलोकित करता रहेगा। स्वामी जी का व्यक्तित्व देश, समाज तथा विश्व कल्याण के लिए अर्पित रहा है। स्वामी स्वरूपानंद जी का व्यक्तित्व समन्वित राष्ट्र निर्माण, त्याग, तपस्या, मानवता की रक्षा, भारतीय तथा सनातनी धर्म का पर्याय था। कुलपति प्रो वरखेड़ी ने अपना भाव पूरित श्रद्धांजलि देते हुए यह भी कहा कि भारतीय संस्कृति उनके दर्शन से सदा आलोकित होती रहेगी क्योंकि भारत की आत्मा साधु-सन्तों की वाणी में भी वसती है। अत: उनका दर्शन तथा चिन्तन राष्ट्र को सर्वदा जागृत रखेगा।
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी, का जन्म 02 सितम्बर 1924 को मध्यप्रदेश के सिवनी के दिघोरी गांव में ब्राह्मण परिवार में हुवा था। इनके पिता का नाम श्री धनपति उपाध्याय और माता का नाम गिरिजा देवी था। माता पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा था। नौ वर्ष की उम्र में उन्होंने घर छोड़ कर धार्मिक यात्राएं शुरू की यही से उनका पोथीराम उपाध्याय से शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद बनने का सफर शुरू हुवा।
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