संम्पूर्ण देश मे सावन 22 जुलाई 2024 से शुरू हो रहा है, और 19 अगस्त 2024 को खत्म होगा। किन्तु उत्तराखंड में पहाड़ का सावन 16 जुलाई हरेला त्यौहार के दिन से शुरू होगा। उत्तराखंड में सावन का पहला सोमवार 22 जुलाई 2024 को आएगा। 15 अगस्त 2024 को खत्म हो जाएगा पहाड़ियों के सावन। 16 अगस्त को सिंह सक्रांति से भाद्रपद शुरू हो जाएगा। उत्तराखंड पहाड़ी क्षेत्रों तथा नेपाल का सावन अलग और देश के अन्य भागों में सावन अलग अलग क्यों होता है ?
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उत्तराखंड में सावन बाकी देश के सावन की तिथियों से अलग होता है –
उत्तराखंड में सावन, हिमाचली सावन और नेपाल का सावन अलग क्यों होता है? इस सवाल का जवाब हमे काशी के प्रसिद्ध ज्योतिषचार्य पंडित गणेश मिश्र जी ,तथा अन्य ज्योतिश्चरयों के लेख में मिलता है। उनके अनुसार ऐसी स्थिति प्रत्येक वर्ष हिन्दू पंचांग व्यवस्था के कारण होती है। देश के उत्तर मध्य और पुर्वी भागों ने पुर्णिमा के बाद नए हिन्दू महीने की शुरुआत होती है। इस पंचांग व्यवस्था में ,उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश आते हैं। इसलिए उनके सावन पूर्णिमा से शुरू हो कर पूर्णिमा के आस पास खत्म होते हैं।
नेपाल, उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र, हिमाचल के कुछ हिस्सों में सौर पंचांग के अनुसार महीने शुरू व खत्म होते हैं। अर्थात जब सूर्य भगवान् एक राशि से दूसरी राशि परिवर्तन करते हैं। उत्तराखंड और नेपाल में उस दिन से महीना शुरू और ख़त्म होते हैं। सूर्य की राशि परिवर्तन संक्रांति कहते हैं। यह संक्रांति हमेशा आंग्ल महीनों के बीच में पड़ती है। अर्थात प्रतिमाह संक्रांति 15 या 16 या 17 तारीख के आस पास पड़ती है। इसलिए हमेशा उत्तराखंड में सावन का महीना 16 या 17 जुलाई के आस पास से 15, 16 अगस्त में ख़त्म हो जाता है।
भारत के दक्षिण और पश्चिमी भाग में, हिन्दू माह अमावस्या के दिन से शुरू होते हैं। अमावास के आस पास आकर ख़त्म हो जाते हैं। इसलिए इन्हें अमांत माह कहते हैं। इसलिए इन क्षेत्रों के सावन भी अमावास के दिन से शुरू होकर अमावास पर ख़त्म होते हैं।
उत्तराखंड में सावन के दौरान उत्तराखंड का प्रसिद्ध लोकपर्व हरेला मनाया जाता है। कुमाऊं क्षेत्र में बाइस या ग्यारह दिन की भक्ति की जाती है जिसे बैसि कहते हैं।
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सावन माह से जुड़ी पौराणिक कथाएं
कहा जाता है, कि देव और असुरों ने मिल कर इसी माह समुद्र मंथन किया था। जब समुंद्र मंथन से रत्न आभूषण इत्यादि निकले तो सब ने आपस में बाँट लिए और जब समुंद्र मंथन से हलाहल विष निकला तो उसे धारण करने की हिम्मत किसी को नही हुई । तब भगवान शिव ने हलाहल कालकूट विष को धारण किया। विष के भयंकर प्रभाव से भगवान शिव का शरीर जलने लगा, तब समस्त देवों ने भगवान भोलेनाथ पर जल अर्पण किया। तब भगवान शिव की जलन कम हुई। तब से सावन माह और भगवान भोलेनाथ को जल चढ़ाने की शुरुवात हुई।
कांवड़ यात्रा कैसे शुरू हुई ?
कावड़ यात्रा के बारे में कहा जाता है, कि सर्वप्रथम भगवान परशुराम जी भगवान शिव को कांवड़ से लाकर जल चढ़ाया था, तब से कांवड़ की शुरुआत हुई । और कुछ लोगों का मानना है कि, त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने सर्वप्रथम कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी। जब मैदानी क्षेत्रों का सावन यानि पूर्णिमा वाला सावन शुरू होता है तो ,हरिद्वार में कावड़ मेला लगता है। दूर -दूर से कावड़िये आते हैं। भगवान् भोलेनाथ को जल चढ़ाते हैं।
वृद्ध जागेश्वर – जहाँ विष्णु रूप में पूजे जाते हैं भगवान् शिव।
हरेला त्यौहार को बोने की विधि और इसमें प्रयोग किये जाने वाले अनाज।
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