Sunday, November 17, 2024
Homeइतिहासरामेश्वर मंदिर उत्तराखंड जिसकी स्थापना भगवान राम ने वैकुंठ जाने से पहले...

रामेश्वर मंदिर उत्तराखंड जिसकी स्थापना भगवान राम ने वैकुंठ जाने से पहले की थी।

कुमाऊं का पुण्यतीर्थ माना जाने वाला रामेश्वर मंदिर उत्तराखंड चम्पावत जिले में टनकपुर -चम्पावत -पिथौरागढ़ रोड पर लोहाघाट से उत्तरपूर्व में सरयू रामगंगा के संगम पर स्थित है। स्कन्द पुराण मानस खण्ड में रामेश्वर पौराणिक महत्व के संदर्भ में लिखा है कि इस स्थान पर अयोध्या के सूर्यवंशी शासक राम द्वारा शिवलिंग की स्थापना किये जाने के कारण इसका नाम रामेश्वर कहा गया है।’ साथ ही इसमें यह भी कहा गया है कि ‘भगवान् राम ने वैकुण्ठधाम प्रस्थान करने से पूर्व इस स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की थी।

इसकी पौराणिक मान्यता के अनुसार , इसके पूजन से भक्तों को काशी विश्वनाथ के पूजन की से भी दस गुना अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है ‘पुरातन सर्वेक्षण विभाग के अनुसार यहां की मूर्तियों का समय छठी-सातवीं शताब्दि है। इसके प्रबंधकों के पास राजा उद्योतचन्द्र का शाके 1604 का एक विशाल ताम्रपत्र है जिसके शीर्ष में एक ओर ‘श्री रुद्रचन्द्र’ तथा दूसरी ओर ‘श्री रामेश्वर’ छपा है।

इससे यह पता चलता है कि इस मंदिर की पूजा के लिए इससे पूर्व राजा रुद्रचन्द (1565-97 ई.) के द्वारा व्यवस्था की गयी थी, जिसकी पुष्टि राजा उद्योचन्द (1678-98) ने इस नवीन ताम्रपत्र के द्वारा की थी। इसी प्रकार 1789 में राजा महेंद्रचंद्र का भूमिदान संबंधी आदेश भी है जिसमे वहां नियमित पूजा और अखण्ड दीपसेवा का आदेश दिया गया है।
यहाँ शिवरात्रि को विशाल मेले का आयोजन होता है। यहाँ से लगभग एक किलोमीटर दक्षिण रामपौड़ी के बौतड़ी गांव में वशिष्ठाश्रम के खंडहर हैं। मान्यता है कि यहाँ भगवान् राम और उनके चारों भाइयों ने गुरु वशिष्ठ से शिक्षा ग्रहण की थी। यहाँ रामगंगा और सरयू के संगम के थोड़ा नीचे  कुंड है जिसे ‘सूरजकुंड ‘ कहा जाता है। यहीं इसके बायीं ओर एक गुफा है, जिसमे दो चरण चिन्ह है इनमे ही राम की पौड़ी कहा जाता है। स्कंदपुराण में रामेश्वर मंदिर उत्तराखंड के पौराणिक महत्व के बारे में कहा गया है –

हिमालयतटे रम्ये सिद्धगन्धर्वसेविते ।।8।।
पूजयन्ति हरे: पुण्यं चरणं देवतागणाः।
तेनेव विष्णोश्चरणाद्वामा दिव्या सरिद्वारा।

Best Taxi Services in haldwani

इसके अतिरिक्त पौराणिक कहानियों के अनुसार नंदनी गाय के लिए महर्षि वशिष्ठ और राजा विश्वामित्र का युद्ध इसी आश्रम में हुवा था। कहते हैं स्थानीय खसों ने इस युद्ध में महर्षि वशिष्ठ का साथ दिया था।

Follow us on Google News Follow us on WhatsApp Channel
Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
RELATED ARTICLES
spot_img
Amazon

Most Popular

Recent Comments