Friday, April 19, 2024
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फ्योंली का फूल – इस फूल के खिलने से शुरू होता पहाड़ में बसंत

फरवरी मार्च के आस पास हिमालयी के पहाड़ों में एक सुन्दर पीला फूल खिलता है। यह फूल पहाड़ों में बसंत का आगाज का प्रतीक माना जाता है। इस फूल को प्योंली फूल या फ्योंली का फूल कहते हैं। फ्योंली फूल से स्थानीय लोगो की भावनाएं भी जुडी हैं।यह फूल हिमालयी संस्कृति में रचा बसा है। इसे एक सुन्दर सुन्दर राजकुमारी का दूसरा जन्म मानते हैं।पथरीले पहाड़ो में उगने वाला यह फूल जिंदगी में सकारत्मकता का सन्देश देता है।

फ्योंली का फूल का वैज्ञानिक महत्त्व-

फ्योंली का फूल का वानस्पतिक नाम रेनवर्डटिया इंडिका है। इसे Yellow flax और गोल्डन गर्ल भी कहते हैं। यह चीन से हिमालयी क्षेत्र और उत्तरी भूभाग में होता है। फ्योंली का फूल लगभग 1800 मीटर की ऊंचाई खिलता है। यह एक छोटे आकर का फूल होता है। प्योली फूल में चार या पांच पंखुड़ियां होती हैं। फ्योंली का फूल पीले गाढ़े रंग बनाने में प्रयोग किया जाता है। इस फूल में कोई खुशबु नहीं होती है। इस फूल का वैज्ञानिक नाम हालैंड के प्रसिद्ध वनस्पतिज्ञ Caspar Georg Carl Reinwardt के नाम पर पड़ा है।

फ्योंली का फूल का सांस्कृतिक महत्त्व-

हिमालयी लोक संस्कृति में प्योंली फूल का बहुत बड़ा महत्व है। और उत्तराखंड की लोक संस्कृति में भी यह फूल रचा बसा है। उत्तराखंड के लोक गीतों में सुंदरता का प्रतीक के रूप में इस प्योंली के फूल को जोड़ा जाता रहा है। बसंत पंचमी पर इसी फूल से कुलदेवों की पूजा की जाती है। और फूलदेई विशेषकर इस फूल का प्रयोग किया जाता है।

फ्योंली का फूल
फ्योंली का फूल

फ्योंली की कहानी –

कहते हैं पहाड़ में प्योंली नामक एक वनकन्या रहती थी। वह जंगल मे रहती थी। जंगल के सभी लोग उसके मित्र थे। उसकी वजह जंगल मे हरियाली और सुख समृद्धि थी। एक दिन एक देश का राजकुमार उस जंगल मे आया,उसे फ्योंली  से प्यार हो गया और  वह राजकुमार उससे शादी करके अपने देश ले गया। फ्योंली (Pyoli flower ) को अपने ससुराल में मायके की याद आने लगी।

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उधर जंगल मे प्योंली बिना पेड़ पौधें मुरझाने लगे, जंगली जानवर उदास रहने लगे। इधर फ्योंली की सास उसे  बहुत परेशान करती थी।  उसकी सास उसे मायके जाने नही देती थी। फ्योंली अपनी सास से और अपने पति से उसे मायके भेजने की प्रार्थना करती थी। मगर उसके ससुराल वालों ने उसे नही भेजा। प्योंलि मायके की याद में तड़पते लगी। मायके की याद में  तड़पकर एक दिन फ्योंली  मर गई । राजकुमारी के ससुराल वालों ने उसे घर के पास में ही दफना दिया। कुछ दिनों बाद जहां पर प्योंली को दफ़नाया गया था, उस स्थान पर एक सुंदर पीले रंग का फूल खिल गया था। उस फूल का नाम राजकुमारी के नाम से फ्योंली का फूल रख दिया ।

#Image credit – इस लेख में प्रयुक्त  फ्योंली फूल के फोटो उत्तराखंड सोमेश्वर निवासी राजेंद्र सिंह नेगी जी ने उपलब्ध कराएं हैं। राजेंद्र नेगी जी गावं में रहकर , पहाड़ के जनजीवन पर बहुत अच्छे ब्लॉग बनाते हैं। यहाँ क्लिक करके आप उनके सुन्दर ब्लॉग देख सकते हैं। 

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
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