Thursday, April 17, 2025
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पितर अब क्यों नहीं आते! कुमाऊनी लोक कथा

कहते हैं पहले मृत्यु को प्राप्त होने के बाद पितर अपने बच्चों के शुभ-अशुभ कार्यों  को देखने के लिए आते थे। और उनके काम -धाम भी हाथ बटा जाते थे।

बहुत पहले की बात है ,पहाड़ में एक माँ बेटी रहती थी। दुर्भाग्यवश माता का देहांत हो गया। बेटी अकेले रह गई। एक बार की बात है, पहाड़  गुड़ाई का काम चल रहा था। बेटी की मृत माँ ने देखा कि मेरी बेटी गुड़ाई में पीछे रह गई है। वह माँ चुपचाप रात में आकर अपनी बेटी के खेत में गुड़ाई कर जाती थी। सुबह जब बेटी अपने खेत में गई तो उसका खेत पहले गोड़ रखा था। अपने खेत में गुड़ाई देख कर बेटी आश्चर्यचकित हुई। दूसरे दिन सुबह फिर वो अपने दूसरे खेत में गई तो, वहां भी गुड़ाई की जा चुकी थी। बेटी की समझ में नहीं आ रहा था ,आखिर रातों रात उसके खेत की गुड़ाई कौन करके जा रहा!!

उस रात को बेटी चुप चाप अपने अगले खेत में गई। उसने देखा कि उसकी माँ रात में उसके खेत में गुड़ाई कर रही थी। वह अपनी माँ के पास गई, और रोते हुए बोली, ईजा तू यहाँ कैसे आई ? तब माँ बोली , चेली मैंने देखा ,सबके खेतों में गुड़ाई हो चुकी थी ! और तेरे खेतों में गुड़ाई बची हुई थी। मेरे से रहा नहीं गया इसलिए तेरी गुड़ाई पूरी करने आ गई !

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माँ पूरी गुड़ाई करने के बाद बेटी के पास आई बोली, चेली मिट्टी का काम करके, मेरे सिर में खुजली हो रही है। जरा ठूँग मार दे तो! (ठूँग मारना मतलब सिर में दोनों अंगूठे गुड़ाकर खुजाना ) बेटी जब अपनी माँ के सिर में ठूंग मार रही थी ,तो उसे अजीब सी मुर्दा जले की बदबू आई ! तब वो अपनी माँ से बोली, ईजा तेरे सिर में से मुर्दा जले की बदबू आ रही है। यह बात माँ को बहुत बुरी लगी ! वो सोचने लगी, अहा रे ! हम अपने बच्चों के लिए मरने के बाद भी चिंतित रहते है! और हमारे पाले बच्चे ,हमसे कह रहे हैं, कि बदबू आ रही है ! अब हमे इनके पास नहीं आना चाहिए!

वो अपनी बेटी से बोली, चेली आज से तुम लोग किसी मृतक का दाह संस्कार करोगे तो ,शव यात्रियों को बोलना कि ,लौटते समय रास्ते में काटें की टहनी दबा कर घर आएं ! तब हम पितर लोग तुम्हारे पास वापस नहीं आएंगे। और तुम लोगों को बदबू भी नहीं आएगी !

तब से यह परंपरा है कि मृतक के दाह संस्कार के बाद वापस आते समय शवयात्री रास्ते में कांटे की टहनी दबा कर आते हैं। कहते हैं तब से पितर वापस नहीं आते हैं।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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